बच्चों में डालें बचत की आदत

save money for childrenनई दिल्ली। बच्चों को पैसे की कीमत समझाने का एक तरीका यह भी है कि आप अपने जीवन की या अपने घर की कहानी उसे सुनाएं। अक्सर बच्चों को यह खुशफहमी हो जाती है कि उनके मां-बाप को पैसों की कोई कमी नहीं है। कमी हो या न हो, सवाल यह नहीं है। बात यह है कि उन्हें उसका मोल समझना चाहिए। आप यह बता सकते हैं कि आपने इतने साल पहले जब नौकरी शुरू की थी तो आपको इतने पैसे मिलते थे। उसके बाद आपका अनुभव बढ़ता गया तो आपके काम के पैसे भी बढ़े। आप यह बता सकते हैं कि फलां साल में हमारे घर ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन खरीदा गया। उसके एक साल बाद हमने स्कूटर खरीदा। फलां साल में रेंिफ्रजरेटर खरीदा गया।

बच्चे के काम को करें पुरस्कृत:

बच्चों को छोटे-छोटे काम करने की आदत डलवानी चाहिए। इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। आप उनको अपने बगीचे की सफाई का काम दे सकते हैं। आप उनको अपने कमरे की सफाई का काम भी सौंप सकते हैं। इसके अलावा अपने कोर्स से अलग एक किताब खत्म करने का काम भी दिया जा सकता है। इन कामों के खत्म होने पर आप बच्चे को पुरस्कार दें। इससे इन कामों के प्रति उनका उत्साह बढ़ेगा। लेकिन यहां एक बहुत बारीक रेखा है। ध्यान रखें कि आपके इस तरह के व्यवहार से बच्चे लालची न होने लगें। बच्चे केवल पैसे के लिए ही काम न करने लगें। यहां आपका उद्देश्य काम और पैसे का महत्व बताना है। आपका यही लक्ष्य पूरा होना चाहिए।

खरीदारी की आदत:

अपने बच्चों में खरीदारी की आदत डालना एक बेहतर तरीका है। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते जाएं, उनको छोटी-छोटी खरीदारियों के लिए प्रेरित करना चाहिए। हो सकता है कि वे गलतियां करें, हो सकता है कि वे जोड़ने-घटाने में भूल करें, हो सकता है कि वे कुछ अधिक पैसे दे कर चले आएं, हो सकता है कि वे ठगे जाएं, लेकिन आपको उनकी गलतियों के लिए उन्हें डांटना नहीं चाहिए। हम सब गलतियां करते हुए बड़े होते हैं और नई-नई चीजें सीखते जाते हैं। इसलिए अपने बच्चों को खरीदारी करने के लिए उत्साहित करना चाहिए। इससे बच्चे की आप पर अनावश्यक निर्भरता खत्म होती है। साथ ही वह वित्तीय निर्णय लेना सीखते हैं।

हर मांग पूरी करना सही नहीं:

बच्चे अपने दोस्तों या क्लास के सहपाठियों की चीजों को देखते हुए अलग-अलग मांगें करने लगते हैं। बच्चों की हर मांग को पूरा करना सही नहीं होता है। अगर मां-बाप उनकी कुछ मांगों को पूरा करते हैं तो कुछ मांगों को नकारना भी जरूरी है। ऐसा मां-बाप और बच्चे, सबके लिए फायदेमंद होता है। धीरे-धीरे ही सही, उनके मन में जरूरी और गैरजरूरी चीजों के बीच का फर्क बिठाते जाना चाहिए। कुछ चीजें जरूरी होती हैं, उनके बिना काम नहीं चलता। लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनके बगैर काम चल सकता है। अगर शुरू से ही ऐसे समझाया गया होता तो अनिकेत की समस्या पैदा ही नहीं होती। साथ ही, उन्हें भिन्न उदाहरणों के जरिए यह बताना चाहिए कि कंजूसी और मितव्ययिता में फर्क होता है।

गुल्लक की आदत:

पिछली पीढ़ी के मां-बाप अपने बच्चों को बचपन से ही गुल्लक की आदत डलवा देते थे। इससे बच्चों में बचत की आदत का विकास होता था। यह आदत बड़े होने पर भी काम आती थी। आज के मां-बाप को भी यही करना चाहिए। बच्चों को आप पॉकेट मनी देते रहते हैं, इसके अलावा दादी-नानी से या रिश्तेदारों से भी उन्हें पैसे मिलते रहते हैं। धीरे-धीरे अपने बच्चों को प्रेरित करना चाहिए कि उसमें से कुछ हिस्सा वे अपने गुल्लक में डालते जाएं। जब उनका गुल्लक भर जाए और उसमें कुछ सौ रुपये जमा हो जाएं तो उनमें कुछ पैसे अपनी ओर से मिला कर अपने नजदीकी बैंक या पोस्ट ऑफिस में उनका खाता खुलाया जा सकता है। यकीन मानिए, पास बुक में अपना नाम और उसके आगे दर्ज रुपए देख कर बच्चे काफी खुश होते हैं। साथ ही बचत के प्रति प्रेरित भी होते हैं।

बचत और बढ़त:

जब बच्चे के नाम से किसी बैंक या पोस्ट ऑफिस में कुछ रुपए जमा हो जाते हैं तो जाहिर है, उस पर उनको ब्याज भी मिलता है। बच्चों को ब्याज के बारे में समझाएं। उन्हें बताएं कि पैसे जमा करने के बदले बैंक या पोस्ट ऑफिस हर महीने उस पर ब्याज देते हैं। पास बुक में दर्ज ब्याज की राशि देख कर बच्चे उत्साहित हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया जा सकता है कि वह हर महीने कुछ राशि बैंक या पोस्ट ऑफिस के अपने खाते में डालें। साथ ही, बच्चों को यह भी समझाया जाना चाहिए कि बचत के कुछ किल्प ऐसे हैं जिनमें ब्याज पर भी ब्याज मिलता है।

बचत से हासिल चीजें:

अपने बच्चों को बचत की सीख देना ही पर्याप्त नहीं होता। बचत सिखाने के साथ ही साथ इसके बेहतर इस्तेमाल की बात भी बताई जानी चाहिए। बच्चे अपनी बचत से अपनी मनपसंद किताबें खरीद सकते हैं या अपना पसंदीदा खिलौना खरीद सकते हैं। वह मौका देखने लायक होता है जब बच्चा अपनी मां या पिता के जन्मदिन के मौके पर अपनी बचत से गिफ्ट खरीद कर देता है। इस तरह के छोटे-छोटे काम करते हुए बच्चा खुश तो होता ही है, साथ ही साथ पैसे का महत्व भी समझता जाता है।

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