मंडी। ऐतिहासिक मंडी शहर के चार स्मारकों को राष्ट्रीय महत्व की दृष्टि से धरोहर का दर्जा तो दिया गया है लेकिन इनके इर्द-गिर्द किए गए अतिक्रमण को आज तक पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग हटा नहीं पाया है। इन चार स्मारकों के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए भारत सरकार ने राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया है।
यहां मुख्यत शिव मंदिर हैं। समेखतर स्थित अर्द्धनारीश्वर मंदिर,पुरानी मंडी स्थित त्रिलोकीनाथ, ब्यास नदी के किनारे पंचवक्त्र महादेव मंदिर व मंगवाई में मंडी रियासत के राजाओं व उनके संबंधियों के स्मृति के प्रतीक बारसेला इनके आसपास अतिक्रमण होने से संरक्षण को तरस रहे हैं। हैरत इस बात की है कि मंदिरों के आसपास कब्जे हो गए हैं मगर इसकी किसी को चिंता नहीं है।
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यहां हुए अवैध कब्जे हटाने में नाकाम रहा है। कार्रवाई के नाम पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने आरोपियों को नोटिस देने के अलावा कोई कार्रवाई नहीं की है। इससे स्थानीय लोग काफी खफा हैं। 16वीं सदी के अर्द्धनारीश्वर मंदिर को नौ जून 1982 में भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय धरोहर के तौर पर घोषित किया गया। बावजूद इसके मंदिर के दिन अभी तक नहीं फिरे हैं।
16वीं सदी में निर्मित अर्द्धनारीश्वर मंदिर में भव्य मूर्ति है जिसमें आधा रूप शिव का तथा आधा पार्वती का है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर पत्थर पर गजब की नक्काशी है। गर्भगृह का तोरणद्वार भी अलंकृत है। गंधर्व कन्याओं के हाथ में वीणा है। मुख्य प्रतिमा के एक ओर सिंह तथा दूसरी ओर नंदी की मूर्तियां हैं।
वैसे इस मंदिर को कलेसर का मंदिर भी कहते हैं। मंडी के राजा सिद्धसेन ने इस मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। इस मंदिर में हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। इसके बाद भी इसकी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में कोई सुधार नहीं किया गया।
पंचवक्त्र मंदिर में शिव की पंचमुखी मूर्ति:-
पंचवक्त्र महादेव मंदिर का निर्माण मंडी के राजा सिद्धसेन ने 1717 ई. में करवाया था। मंदिर के विशाल मंडल के अंदर स्थापित शिव की मूर्ति के पांच मुख हैं। चार मुख चारों दिशाओं की ओर हैं, जबकि पांचवा मुख आसमान की तरफ है। 28 जुलाई 1952 को इस ऐतिहासिक मंदिर को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर केंद्र सरकार ने इसके संरक्षण की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंपी है।
त्रिलोकीनाथ मंदिर में नक्काशी:-
त्रिलोकीनाथ मंदिर करीब 500 साल पुराना है। यह मंदिर अपनी वास्तुकला व पत्थरों पर की गई नक्काशी के अपनी खास पहचान रखता है। मंदिर का निर्माण मंडी के राजा अजबर सेन की रानी सुनयना ने 1520 ई. में करवाया था। पत्थर शिला पर सिंह व वृषभ की प्रतिमाएं हैं तथा दो चरण एवं अष्टदल कमल अंकित हैं।
शिव का मुकुट अलंकृत तथा विशद है। शिव के गले में सर्प तथा मुडंमाला भी है। हाथों में डमरू, शंख, चक्र व दंड लिए हुए हैं। स्वयं शिव विशिष्ट ध्यान मुद्रा में हैं। बाहर नारदा-शारदा की दो मूर्तियां हैं।
बारसेला राजाओं के स्मृति प्रतीक:-
350 वर्ष पहले के मंडी रियासत के राजाओं की स्मृति के प्रतीक ऐतिहासिक बारसेला में अलग-अलग ऊंचाई के स्मृति स्तंभों पर राजा, उनकी रानी तथा सती होने वाली अन्य उपरानियों का उल्लेख मिलता है। यह अकंन अध्यारोपित पट्टों में हैं। इनमें राजप्रसाद, मंदिर आदि के दृश्य उकेरे गए हैं। कुछ बारसेला पर टांकरी लिपि में अभिलेख भी मिले है। इसमें राजा का नाम, देहावसान का वर्ष तथा सत्ती होने वाली रानी व उपरानियों की संख्या का विवरण मिलता है।
ये बारसेला साल 1662 ईस्वी से 1838 ईस्वी के मध्य काल से संबंधित है। इन स्तम्भों को भारत सरकार की अधिसूचना संख्या एफ 4-1/52-ए 2 दिनांक 26 मार्च 1952 के अंतर्गत इन्हें राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
शीघ्र होगी कार्रवाई:-
मंडी के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के इंचार्ज पीके डोगरा ने बताया कि मंडी शहर की चारों राष्ट्रीय धरोहर में किए गए अतिक्रमण के मामले में संबंधित व्यक्तियों को नोटिस दिए गए हैं। इस पर शीघ्र ही कार्रवाई विभाग द्वारा की जाएगी। स्मारकों के आसपास बिना अनुमति के भवन निर्माण करने के लिए सूचना बोर्ड लगाए गए हैं। इसके बाद भी कोई निर्माण कार्य करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।