लोभ ने खत्म किए रिश्ते

Photo 1आज बेटों के लिए बूढ़े माता-पिता भार हो जाते हैं। बहुओं के लिए बुजुर्ग जैसे घरेलू काम करने वाले बन जाते हैं। ऐसे में मौसी को मां की तरह प्यार और सम्मान से रखना सराहनीय ही है। भीलवाड़ा में एक ऐसा परिवार है, जिसमें मौसी ने भांजे को बेटे की तरह पाला। मेहनत-मजदूरी करके पढ़ाया लिखाया। बड़ा किया। वहीं, भांजे ने भी मौसी को मां जैसा मान-सम्मान दिया। सौ साल की उम्र में भी वह मां की तरह मौसी की सेवा कर रहा है। यह परिवार है सुभाष नगर निवासी श्रीमती कस्तूरी बाई ओझा का।
जीवन के सौ बसंत देख चुकी कस्तूरी बाई से बात की तो उन्होंने पुरानी यादें ताजा करते हुए कहा, जब मैं 14 बरस की थी। तब नियति ने दगा दे दिया। पति (चंपालाल ओझा) का निधन हो गया। चचेरी बहन भी छह माह के दूधमुंहे बच्चे (श्यामलाल) को छोड़ गई। ससुराल में परिस्थिति ऐसी बदली कि 75 साल पहले गांव बटेरी (उदयपुर) छोड़ भीलवाड़ा आना पड़ा। भांजे को पालने के लिए धारीवालों के घर रोटी बनाती। मजदूरी में चांदी के 10 सिक्के मिलते। इसी से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ होता। श्याम के लिए शिक्षा विभाग में नौकरी तक करनी पड़ी। उसे पढ़ाया-लिखाया। बड़ा किया।
Photo 2उत्कृष्ट कार्य के लिए शिक्षा निदेशक, बीकानेर द्वारा 2 अक्टूबर 1992 को सम्मानित श्रीमती कस्तूरी बाई कहती हैं कि श्याम ने भी कभी मुझे मौसी या काकी नहीं समझा। परिवार के सभी सदस्यों ने मुझे श्याम की मां के समान मान-सम्मान दिया। आज भी सेवा कर रहे हैं। मुझे तो पूरा जीवन जब तक श्याम घर नहीं आता, गले से रोटी का कौर नहीं उतरा। चिंता होती थी। वह भी आते ही पूछता, बाई, तू कैसी है। तभी दिल को सुकून मिलता।
दोनों हाथ जोड़ते हुए उन्होंने कहा, बेटा, आज जमाना खराब है। कैसी कैसी घरेलू कहानियां सुनती हूं। मां-बेटों में झगड़ा चल रहा है। बस, पैसों का प्रेम रह गया है। जो बेटा ज्यादा पैसा कमा कर लाए, उसे मां भी अच्छा खाना खिलाए। बेटे भी मां-पिता की सेवा पैसे, जमीन-जायदाद के लालच में करते हैं। बेटों को मां से बात करने का कई-कई दिन तक समय नहीं मिलता। पहले बुजुर्गों के हुकम पर काम होते थे। आज बुजुर्गों पर हुकम चलता है। बुजुर्गों की कोई सुनता ही नहीं। न सास-बहू में उतना प्रेम रहा है। न भाइयों में।
-श्री ललित ओझा, वरिष्ठ पत्रकार, भीलवाड़ा

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