रेलवे में कुर्सी के खेल से वाकिफ थे सिन्हा

cbi chief ranjit sinhaअंबाला। भारतीय रेलवे में प्रमोशन के लिए रिश्वत या फिर जुगाड़ से कुर्सी हथियाने के हथकंडों से वाकिफ रहे हैं सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा। रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) में अपने कार्यकाल की बदौलत सिन्हा हर उस पैंतरे से वाकिफ हैं, जिसे रेलवे अधिकारी मलाईदार पद हथियाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। सीबीआइ निदेशक बनने के बाद सिन्हा ने ही रेलवे के इतिहास में पहली बार अवैध वेंडरों की धरपकड़ के लिए देशभर में छापे मारे थे।

उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, उत्तर रेलवे के बड़ौदा हाउस में आइजी सुधीर अवस्थी के सख्त रवैये से अफसर चिंतित थे। आइजी को कुर्सी से हिलाने के लिए रेलवे बोर्ड से लेकर गृह मंत्रालय तक जुगाड़ हुआ जिसके बाद हरियाणा कैडर के आइपीएस पीके मेहता को जिम्मेदारी सौंप दी गई। उस समय मेहता डेपुटेशन पर रेल महकमे में सेवाएं दे रहे थे। इसके बाद मेहता की प्रमोशन हुई लेकिन उनकी निगाहें तो आरपीएफ निदेशक की कुर्सी पर टिकी थी।

रंजीत सिन्हा आरपीएफ के डीजी थे, जबकि पीके मेहता एडीजी आरपीएफ। एडीजीपी की तैनाती रेलवे बोर्ड में होती है लेकिन मेहता बड़ौदा हाउस ही बैठते रहे। इसी बीच डीजी ने पश्चिम मध्य रेल आरपीएफ के मुख्य सुरक्षा आयुक्त महिम स्वामी का वेस्टर्न रेलवे हेडक्वार्टर मुंबई तबादला कर दिया। कायदे से ये तबादला अक्टूबर 2011 में होना था। अच्छे पद न भर जाएं, इसलिए पहले ही पोस्टिंग की गई। इससे यह मामला तूल पकड़ गया। 31 अगस्त 2011 को रंजीत सिन्हा का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनका तबादला आइटीबीपी में कर दिया गया। तबादले से खफा सिन्हा की आइपीएस अधिकारी से भी मामूली कहासुनी हुई जिसकी चर्चाएं रेलवे बोर्ड में भी रही। बाद में सिन्हा सीबीआइ के निदेशक बने गए और रेलवे में भ्रष्ट मगरमच्छों तक पहुंचने के लिए रेलवे के अपने ‘सूत्रों’ को प्रयोग किया।

अवैध वेंडरों पर छापामारी, फिरोजपुर मंडल में दस साल पुराने मुकदमे में छापामारी और आरपीएफ के इंस्पेक्टर संजय सिंह के कार्यालय और घर पर छापामारी कर आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दर्ज करवाया। संजय इंस्पेक्टर ही नहीं बल्कि एसोसिएशन में भी रुतबे वाले पद पर रह चुके हैं। रेलवे के अफसरों में अब खौफ है कि सीबीआइ के निशाने पर कौन होगा। घूसखोरी मामले में सीबीआइ और अफसरों से भी पूछताछ कर सकती है।

error: Content is protected !!