लखनऊ। हाई कोर्ट के आदेशों को मानने में देरी करने वाले कई आला अफसरों को हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में मंगलवार को कड़ी फजीहत झेलनी पड़ी। अदालती आदेशों की अवमानना के मामले में दो अलग-अलग पीठों ने प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव स्टांप व निबंधन बीएम मीना, अपर आयुक्त प्रशासन फैजाबाद शैलेंद्र कुमार सिंह सहित तमाम अधिकारियों को दिनभर अपनी हिरासत में रखा।
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पीठ ने कहा कि अधिकारी यह कहकर बच नहीं सकते कि उनकी जिम्मेदारी नहीं थी। सायं चार बजे न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल व न्यायमूर्ति डॉ. सतीश चंद्रा की अलग-अलग पीठों ने सभी अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए बिना शर्त माफी मांगने व भविष्य में गलती न होने का शपथ पत्र देने पर 10-10 हजार रुपये का हर्जाना जमा करने के बाद मुक्त कर दिया।
प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव को बिना शर्त माफी मांगे जाने पर बुधवार सुबह सवा दस बजे तक की मोहलत दी गई है। पीठ ने प्रमुख सचिव को बुधवार को फिर उपस्थित होने को कहा है। पूर्व बसपा मंत्री रामवीर उपाध्याय को सुरक्षा दिए जाने के मामले में पीठ ने प्रमुख सचिव गृह को तलब किया था, जबकि दूसरी पीठ ने बीएम मीना प्रमुख सचिव स्टांप, बस्ती के बीएसए राम सकल वर्मा व अपर आयुक्त प्रशासन, फैजाबाद शैलेंद्र कुमार सिंह को अदालती आदेश का पालन देर से किए जाने के मामले में तलब किया था। अफसरशाही के टालू रवैए से आजिज आकर पीठ ने मंगलवार को इन अधिकारियों को तलब कर अदालत में हिरासत में ले लिया। पीठ ने कई अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आरोप तय करने की तिथियां निश्चित कर दीं।
पीठ के समक्ष प्रमुख सचिव बीएम मीना की ओर से कहा गया कि उन्होंने जुलाई 2012 में विभाग में कदम रखा और जब उनको अवमानना नोटिस मिली तो उन्होंने आदेश का पालन कर दिया। पीठ ने कहा कि अधिकारी यह बहाना बनाकर बच नहीं सकते कि पूर्व अधिकारी की जिम्मेदारी थी। पीठ ने सुबह ग्यारह बजे बीएम मीना को हिरासत में लेते हुए तीन दिन जेल की सजा सुना दी, बाद में बिना शर्त माफी का हलफनामा लेकर याची को 10 हजार रुपये हर्जाना देने की बात पर छोड़ा गया।
क्या था मामला
पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय की वाई श्रेणी की सुरक्षा 2007 में वापस कर ली गई थी। इस पर उपाध्याय ने याचिका दायर कर वाई श्रेणी सुरक्षा दिए जाने की मांग की। पीठ ने प्रत्यावेदन पर विचार किए जाने को कहा था। आदेश का पालन न होने पर अवमानना याचिका दायर की गई जिस पर पीठ ने कड़ा रुख अपनाया।
अपर आयुक्त फैजाबाद के मामले में याची ने एक मामले में दाखिल खारिज की मांग करते हुए दावा प्रस्तुत किया। आदेश का पालन न होने पर याची ने अवमानना याचिका दायर की थी। इसी क्रम में प्रमुख सचिव स्टांप एवं निबंधन बीएम मीना ने वर्ष 2007 में पारित आदेश का पालन 2012 में किया। पीठ को बताया कि जब अवमानना मामले का पता चला और नोटिस प्राप्त हुई तब आदेश का पालन किया गया। इस पर पीठ ने कड़ी फटकार लगाई। पीठ ने कहा कि अवमानना मामला कोई आम मामला नहीं है और अधिकारियों को इसे सहजता से नहीं लेना चाहिए। यदि नौकरशाह पीठ के आदेश का पालन ठीक से करें तो अवमानना की आवश्यकता ही न पड़े। अदालत का कहर इससे पहले भी यूपी के अधिकारी झेल चुके हैं।
नोएडा डेवेलपमेंट अथारिटी में तैनात अखिलेश यादव सरकार के चहेते आईएएस अफसरों राकेश बहादुर और संजीव सरन पर अदालत ने कड़ा शिकंजा कसा था। हाईकोर्ट ने इन दोनों दागी अफसरों को अदालत के आदेश के बावजूद उनको पदों से न हटाये जाने पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने यूपी के चीफ सेक्रेटरी को इन्हें तीन दिनों में हटाने या फिर कोर्ट में हाजिर होकर अवमानना की कार्यवाही का सामना करने को कहा था।
उत्तर प्रदेश सरकार ने खाद्यान्न घोटाले में आरोपी 18 अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी कोर्ट ने दी थी। जिसके बाद हड़कंप मच गया था।