नई दिल्ली। कर्नाटक फतह के बाद कांग्रेस नेतृत्व अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ छीनने के लिए बेताब है। इसी के मद्देनजर कांग्रेस दोनों भगवा किलों की दरारें तलाशने और अपने नेताओं के बीच की खाई पाटने में जुटी है। कांग्रेस मान रही है कि दोनों सूबों की भाजपा सरकारों के खिलाफ 10 साल की सत्ता विरोधी लहर को यदि ठीक से भुनाया जा सके, तो बाजी पलटी जा सकती है। हालांकि, उसके लिए कांग्रेस को अपने घर की कलह को निपटाकर एकजुट होकर चुनाव में उतरना होगा। इसके मद्देनजर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी खुद ही खास तौर से मध्य प्रदेश की एक-एक सियासी लहर को गिन और आंक रहे हैं।
कांग्रेस मान रही है कि यदि सभी इलाकाई क्षत्रपों को एकजुट कर आंतरिक कलह व भितरघात को वह रोक सके तो मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ दोनों जगह हालात दूसरे होंगे। दोनों ही सूबों में खास तौर से आदिवासियों में पैठ बनाने के लिए कांग्रेस पूरी ताकत झोंक रही है। मध्य प्रदेश के धार में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश आधा दर्जन बड़ी जनसभाएं करेंगे, जिसमें उनसे जुड़ी विकास योजनाओं के बारे में बताया जा रहा है। पिछली बार इसी क्षेत्र से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। इसी तरह छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में जहां, गत चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ था, वहां भी पार्टी बेहद ध्यान दे रही है।
केंद्रीय योजनाओं व राज्य सरकार के प्रति सत्ता विरोधी लहर को भुनाने के लिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व ने ऊर्जा मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी की तरफ से पेश करने का फैसला कर लिया है। उन्हें जल्द ही राज्य चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी देकर इसके संकेत भी दे दिए जाएंगे। राहुल गांधी मध्य प्रदेश पर अलग-अलग करीब आधा दर्जन बैठकें कर चुके हैं। इनमें राज्य के पार्टी प्रभारी महासचिव बीके हरिप्रसाद से लेकर वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तक से सघन चर्चाएं हुई हैं।
राहुल का मानना है कि मध्य प्रदेश में यदि कांग्रेसी ही कांग्रेस को न हराएं तो शिवराज सरकार को हराना असंभव नहीं। भाजपा को एक चेहरा होने का फायदा है, उसे ध्वस्त करने को कांग्रेस ने युवा नेता ज्योतिरादित्य पर दांव लगाने का मन बना ही लिया है। अब कांग्रेस के सामने चुनौैती है धड़ों में बंटी कांग्रेस को मिलकर चुनाव लड़ाना। टिकट वितरण में ही सबसे ज्यादा लड़ाई मुखर होती है। इसके लिए राहुल सर्वेक्षण के आधार पर सख्ती से टिकट वितरण फार्मूले पर काम कर रहे हैं। वरना तो दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी, सुभाष यादव, कांति लाल भूरिया व ज्योतिरादित्य जैसे धड़े अपने-अपने लोगों के लिए पूरी जान झोंकते हैं।
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने साफ कह दिया है कि अपने लोगों को टिकट दिलाने के बजाए सर्वेक्षण के आधार पर प्रत्याशी चुने जाएं और उन्हें सब मिलकर लड़ाएं। छत्तीसगढ़ के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था बनाने की बात है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को काबू में रखने के बाद वहां पर गुटबाजी में थोड़ी कमी आई है। इसी आशावाद पर पार्टी अपनी रणनीति तय कर रही है।