फीरोजाबाद। घर में बंटवारे के लिए बेटे या ‘बहुओं’ को दोष देने वालों को खुद के दिए संस्कार पर मंथन करना चाहिए। यदि परिवार में ‘संस्कार’ की डोर मजबूत हो तो ‘जायदाद’ की बात तो छोड़ ही दीजिए ‘रसोई’ भी नहीं बंटती। फीरोजाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाश चंद्र चतुर्वेदी का घर इस संस्कार से रोशन है।
घर में भी आधा दर्जन से ज्यादा बच्चों के परिवार हैं, लेकिन मजाल क्या कि कभी तिनके जैसी असहमति की आवाज भी आती हो। कारोबार तो दूर की बात, रसोई भी आज तक नहीं बंटी। परिवार में ढाई दर्जन से ज्यादा सदस्यों का भोजन साथ पकता है। इस कार्य को ‘गृह लक्ष्मी’ अंजाम देती हैं। विश्व परिवार दिवस पर संयुक्त परिवार की यह विशेष मिसाल है।
तीन भाइयों के बेटे-बहू रहते हैं साथ-साथ:
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाश चंद्र चतुर्वेदी चौबान मोहल्ला स्थित घर में भाई ओमप्रकाश चतुर्वेदी (सीबीसीआइडी से सेवानिवृत्त) व व्यापारी प्रभाष चंद्र चतुर्वेदी के साथ रहते हैं। तीनों के बेटे और उनके परिवार भी साथ ही रहते हैं। एक भाई की मौत हो चुकी है, लेकिन उनकी पत्नी भी परिवार का अंग हैं।
प्रकाश चंद्र चतुर्वेदी के बेटे पीयूष वकील हैं। दिलीप व धीरज चूड़ी की फैक्ट्री देखते हैं। राजीव सीए हैं। परिवार के साथ में इसी घर में रहते हैं। एक पुत्र नीरज, सरकारी नौकरी में होने के कारण परिवार के साथ बाहर रहते हैं। ओम प्रकाश चतुर्वेदी के पुत्र विनय भी अपने परिवार सहित इसी मकान में रहते हैं। प्रभाष चंद्र चतुर्वेदी के पुत्र मधुर भी परिवार के साथ मे इसी घर में रहते हैं। विनय और मधुर पेट्रोल पंप और चूड़ी की दूसरी फैक्ट्री देखते हैं।
इसके अलावा प्रकाश चतुर्वेदी के भाई स्व. शिव प्रकाश की पत्नी लक्ष्मी चतुर्वेदी भी परिवार का हिस्सा हैं। उनकी एक बेटी की आगरा में शादी हुई है। इसके अलावा परिवार के आधा दर्जन से ज्यादा छोटे बच्चे हैं।
जिम्मेदारी:
परिवार में महिलाओं की जिम्मेदारी बंटी हुई है। घर की दो बुजुर्ग ममता चतुर्वेदी प्रथम एवं द्वितीय पूरी तरह सासू मां की जिम्मेदारी निभाती हैं। वो ढाई दर्जन सदस्यों के लिए सब्जी काटने में बहुओं की मदद करती हैं। सुबह के नाश्ते की जिम्मेदारी अलका एवं अंजू के जिम्मे है। दोपहर की भोजन व्यवस्था अल्पा के साथ मानसी संभालती हैं। मानवी सभी कामों में मदद करती हैं। मुख्य जिम्मेदारी वाली बहुओं में से भी कोई बाहर चला जाता है तो मानवी उसकी जगह मदद करती हैं।
जिम्मेदारियों के सिवाए कुछ नहीं बंटा:
परिवार में सारा कारोबार साझा है तो जिम्मेदारियां बंटी हुई। प्रकाश चंद्र चतुर्वेदी बताते हैं हमें तो आज तक यह भी नहीं पता कि घर का खर्चा कौन चलाता है। जरूरत के वक्त जो सामने होता है, वही जिम्मेदारी को उठा लेता है। शाम को बच्चों की पढ़ाई का वक्त होता है, ऐसे में शाम को रोटियां या परांठे सेंकने के लिए एक सहायक आती है।
पहले बुजुर्ग, अंत में खाती हैं महिलाएं:
परंपराओं से बंधे परिवार में आज भी पहले बुजुर्ग खाना खाते हैं। उनके बाद बच्चों को खाना दिया जाता है, जो सभी एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। इसके बाद घर के युवा पुरुषों के खाने की बारी आती है। अंत में सभी महिलाएं बैठ कर भोजन करती हैं।
आपसी सामंजस्य से संभव है यह सब:
”यह सब संस्कारों की देन है। हम भाइयों में तथा बच्चों में सामंजस्य है। जो परिवार को एक सूत्र में बांधे रखता है। यही वजह है हमें नहीं पता खर्चा कौन चला रहा है।”
-प्रकाश चंद्र चतुर्वेदी बादशाह वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता फीरोजाबाद
संस्कारों की खान होता है संयुक्त परिवार:
”संयुक्त परिवार संस्कारों की खान होता है। इसमें जिम्मेदारियां बंट जाती हैं, संयुक्त परिवार के बच्चे ज्यादा समझदार, सहनशील एवं समायोजनशील होते हैं, जो उन्हें भविष्य में आगे बढ़ने में मदद करता है। ऐसे बच्चों का भाषा विकास अच्छा होता है। एकल परिवार के बच्चे अंर्तमुखी एवं जिद्दी हो जाते हैं।”