कानपुर। 1857 के गदर में 10 मई को मेरठ के ज्वाला की आग जब कानपुर पहुंची तो कई नवाब यहां से लखनऊ चले गए। जिन्हें बाद में अंग्रेज गिरफ्तार करके ऊंट पर बिठाकर कानपुर ले आए और मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। सामान कुर्क कर उन्हें कैद कर लिया।
1अक्टूबर 1896 में सैयद कमालुद्दीन हैदर ने अपनी पुस्तक तारीख-ए-अवध में लिखा है कि नवाब दूल्हा हाता पटकापुर में एक मेम मारी गईं। इस जुर्म में अंग्रेजों ने नवाब दूल्हा और उनके भांजे नवाब मौतमुद्दौला को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद नवाब निजामुद्दौला, नवाब बाकर अली खां लखनऊ चले गए। अंग्रेजों ने नवाबों को लखनऊ में गिरफ्तार किया और उन्हें ऊंट से कानपुर लाकर अदालत के सामने पेश किया। नवाबों के घर का सारा सामान कुर्क कर उन्हें कैद कर लिया। इस सदमे में नवाब बाकर खां के बेटे की मौत हो गई।
हैवलाक ने 3000 लोगों को फांसी दी
वरिष्ठ उर्दू पत्रकार डॉ. इशरत अली सिद्दीकी ने बताया कि इलाहाबाद से कत्लेआम करते हुए जनरल हैवलाक की फौज बकरमंडी स्थित सूबेदार के तालाब पर पहुंची तो अहमद अली वकील और कुछ महाजनों ने जनरल का स्वागत किया। लेकिन अंदर ही अंदर वे अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तैयार करते रहे। उन्होंने बताया कि जनरल हैवलाक की फौज ने 3000 लोगों को फांसी दी। बड़ी करबला नवाबगंज में सबील के लिए लगाए गए अहमद अली वकील के कारखास राना को अंग्रेजों ने पकड़ लिया तो राना ने पूछा कि मेरा कसूर क्या है। जनरल हैवलाक ने कहा कि तुम्हें तीसरे दिन फांसी देंगे। तुम्हारी कौम हमारे बेगुनाह लोगों को मार रही है।