एवरेस्ट फतह किया लेकिन पुलिस से हार गई अरुणिमा

arunima-loss-fight-with-police-बरेली । विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट नापने वाली अपाहिज अरुणिमा सिन्हा ने भले दुनिया में अपने जज्बे का डंका बजाया, विकलांगों के लिए मिसाल कायम की मगर कभी होनहार खिलाड़ी रही यह बाला अपनी ही पुलिस से हार गई। जिस वारदात के कारण अरुणिमा को अपना एक पैर गंवाना पड़ा, बरेली जीआरपी ने उसे झूठा करार दे दिया। करीब डेढ़ साल तक जांच पड़ताल चली। तमाम लोगों के बयान हुए। इसके बावजूद मुकदमे को फर्जी साबित कर फाइनल रिपोर्ट लगाकर गुपचुप तरीके से फाइल बंद कर दी।

12 अप्रैल 2011 की मनहूस रात को अरुणिमा ताउम्र नहीं भूल पाएगी। उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में रहने वाली अरुणिमा सिन्हा इसी रात पद्मावत एक्सप्रेस में सवार होकर लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। वह नौकरी की तलाश में निकली थी। बकौल अरुणिमा, ट्रेन में गेट पर कुछ लोगों ने उससे बदतमीजी की। लूटपाट के बाद तड़के साढ़े चार बजे लुटेरों ने उसे चलती ट्रेन से फेंक दिया। दो घंटे तक वह रेलवे ट्रैकपर पड़ी रही।

साढ़े छह बजे चनेहटी के पास लोगों ने उसे देखा, तब जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान अरुणिमा की एक टांग काटनी पड़ी। पहले तो पुलिस मामले को टालने में जुटी रही। यह पता लगने पर कि अरुणिमा एथलीट है और नेशनल प्लेयर है, तब जीआरपी ने आनन-फानन में लूट व हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज किया। नेशनल खिलाड़ी के साथ हुई घटना का मामला दिल्ली और लखनऊ तक में गूंजा।

उसके बाद तमाम बड़ी हस्तियां उससे मिलने बरेली के जिला अस्पताल पहुंची। अखिलेश यादव से लेकर सांसद मेनका गांधी तक ने उसकी मदद की। रेलवे बोर्ड के आला अधिकारी भी जांच को पहुंचे। कई दिनों तक मामला मीडिया में छाया रहा। बावजूद इसके बरेली जीआरपी शुरू से ही इस मामले में उल्टा रुख अपनाती रही। जीआरपी ने अपनी जांच के दौरान करीब तीन दर्जन से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए। जांच के दौरान पता चला कि हादसे में अरुणिमा का मोबाइल भी गिर गया था।

करीब दो महीने बाद पुलिस के हत्थे अरुणिमा का मोबाइल व सिम लगा। चनेहटी के पास ही रहने वाले एक रिक्शा चालक के पास से अरुणिमा दोनों चीजें बरामद हुईं। रिक्शा चालक ने बताया कि 12 अप्रैल का सुबह वह घर जा रहा था, तभी उसे एक मोबाइल मिला। जीआरपी ने अरुणिमा के मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवाई। उससे भी कुछ हासिल नहीं हो सका। इसके बाद पुलिस उसके एसएमएस की डिटेल निकलवाना चाहती थी। लिहाजा सिम को सीबीआइ की लैब में भेजा गया।

जीआरपी की पूरी जांच सीबीआइ की लैब रिपोर्ट पर टिककर रह गई थी। करीब छह महीने बाद जब रिपोर्ट आई तो पुलिस को मायूसी हाथ लगी। रिपोर्ट में कोई एसएमएस न भेजना पाया गया। इसके बाद जीआरपी पूरी तरह से निराश हो गई। लुटेरों को पकड़ने के बजाए जीआरपी ने मुकदमे को झूठा साबित करते हुए कुछ महीनों पहले फाइनल रिपोर्ट लगाकर केस बंद कर दिया। एसपी रेलवे आरके भारद्वाज का कहना है कि अरुणिमा ने जो बयान दिए गए थे वह जांच में झूठे पाए गए। तमाम पहलुओं पर गौर करने के बाद ही मुकदमे में फाइनल रिपोर्ट लगाई गई है।

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