पता नहीं,कछुए छोड़ने से गंगा का भला हुआ या नहीं

varanasiवाराणसी। गंगा में रामनगर से लेकर राजघाट के बीच बनाई गई सेंक्चुअरी में कछुओं के चलते मोक्षदायिनी का कितना भला हुआ है, यह अब तक पता ही नहीं है। दूसरी ओर करीब 23 वर्ष पूर्व कछुआ सेंक्चुअरी स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य ही गंगा के प्रदूषण को कम करने का रहा।

सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में काशी वन्य जीव प्रभाग, रामनगर के प्रभागीय वनाधिकारी डॉ. पीपी वर्मा ने बताया कि 1987 से 2010 के बीच गंगा कछुआ सेंक्चुअरी एरिया में करीब 33,356 कछुए छोड़े गए। सात किमी लंबे इस वन्य जीव विहार में कछुओं को छोड़े जाने का उद्देश्य लघु व सूक्ष्म पारिस्थितिकी तंत्र में स्थानीय स्तर पर कछुआ प्रजाति की भूमिका को सक्रियता प्रदान करना था। साथ ही कछुआ सेंक्चुअरी एरिया के माध्यम से गंगा के वृहद पारिस्थितिकीय तंत्र को पुनर्जीवित कर निरंतर गतिशीलता प्रदान करना है। रामनगर निवासी डॉ. अवधेश दीक्षित द्वारा डाली गई नौ बिंदुओं की आरटीआइ में यह भी सवाल किया गया था कि इन कछुओं के चलते गंगा प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में क्या प्रभाव पड़ा है।

जवाब में पता चला कि अभी तक ऐसी कोई अध्ययन या रिपोर्ट सामने नहीं आई है जिससे यह पता चल सके कि कछुओं से मोक्षदायिनी के पारिस्थितिकीय तंत्र या प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में सकारात्मक या नकारात्मक किसी तरह का कोई प्रभाव पड़ा भी है या नहीं। अलबत्ता यह जरूर कहा गया है कि इस बारे में प्रस्तावित शोध व अध्ययन कार्य किए जा रहे हैं जिसके नतीजे प्राप्त होने पर ही जानकारी दी जा सकेगी।

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