अमृतसर। ऑपरेशन ब्लू स्टार के जख्मों को भूलकर पंजाब आज प्रगति की राह पर आगे निकल चुका है। लेकिन 29 वर्ष पहले 5 जून 1984 की उस रात की टीस अब भी यहां महसूस की जा सकती है। तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में छिपे चरमपंथियों के खिलाफ सैनिक कार्रवाई का आदेश दे दिया जो ऑपरेशन ब्लू स्टार के नाम से चर्चित हुआ। पांच जून को सेना ने टैंकों की आड़ में स्वर्ण मंदिर पर धावा बोल दिया।
देश में पहली बार आस्था के सबसे बड़े मंदिर को आतंकवादियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए हथियारबंद होकर पहुंची सेना ने मंदिर को आतंकियों से आजाद कराने में सफलता तो हासिल कर लिया लेकिन साथ ही गहरे जख्म भी दे गया। इस कार्रवाई में लगभग 800 चरमपंथी और 200 जवान मारे गए। बाद में इंदिरा गांधी को इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
5 जून 1984 को समय शाम 7 बजे ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू हो चुका था। सेना का मिशन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के चंगुल से छुड़ाना था। सिख चरमपंथी नेता संत जरनैल सिंह भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर में ही शरण ली थी। बातचीत से बात न बनी तो सेना ने मार्च में ही स्वर्ण मंदिर को चारों ओर से घेर लिया। मंदिर परिसर के बाहर दोनों ओर से रुक-रुक कर गोलियां चल रही थीं।
सेना को जानकारी थी कि स्वर्ण मंदिर के पास की 17 बिल्डिंगों में आतंकवादियों का कब्जा है। इसलिए सबसे पहले सेना ने स्वर्ण मंदिर के पास होटल टैंपल व्यूह और ब्रह्म बूटा अखाड़ा में धावा बोला जहां छिपे आतंकवादियों ने बिना ज्यादा विरोध किए समर्पण कर दिया।
रात साढ़े दस बजे के करीब शुरुआती सफलता के बाद सेना ऑपरेशन ब्लू स्टार के अंतिम चरण के लिए तैयार थी। कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल केएस बरार ने अपने कमांडों को उत्तरी दिशा से मंदिर के भीतर घुसने के आदेश दिए। लेकिन यहां जो कुछ हुआ उसका अंदाजा बरार को नहीं था। चारों तरफ से कमांडों पर फायरिंग शुरू हो गई। मिनटों में 20 से ज्यादा जवान शहीद हो गए। जवानों पर अत्याधुनिक हथियारों और हैंड ग्रेनेड से हमला किया जा रहा था। अब तक साफ हो चुका था कि बरार को मिली इंटेलिजेंस सूचना गलत थी।
सेना की मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं। हरमिंदर साहिब की दूसरी ओर से भी गोलियों की बारिश हो रही थी। लेकिन बरार को साफ निर्देश थे कि हरमिंदर साहिब की तरफ गोली नहीं चलानी है। नतीजा ये हुआ कि सेना की मंदिर के भीतर घुसने की तमाम कोशिशें बेकार गईं और घायलों व मृतकों की संख्या बढने लगीं।
आधी रात तक सेना मंदिर के अंदर ग्राउंड फ्लोर भी साफ नहीं कर पाई थी। बरार ने अपने दो कमांडिंग अफसरों को आदेश दिया कि वो किसी भी तरह पहली मंजिल पर पहुंचने की कोशिश करें। सेना की कोशिश थी किसी भी सूरत में अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की, जो हरमिंदर साहिब के ठीक सामने है। यही भिंडरावाले का ठिकाना था। लेकिन सेना की एक टुकड़ी को छोड़ कर कोई भी मंदिर के भीतर घुसने में कामयाब नहीं हो पाया था।
अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की कोशिश में सेना को एक बार फिर कई जवानों की जान से हाथ धोना पड़ा। सेना की रणनीति बिखरने लगी थी।
तमाम कोशिशों के बाद अब साफ होने लगा था कि आतंकवादियों की तैयारी जबर्दस्त है और वो किसी भी हालत में आत्मसमर्पण नहीं करेंगे। सेना अपने कई जवान खो चुकी थी। इस बीच मेजर जनरल के एस बरार के एक कमांडिंग अफसर ने बरार से टैंक की मांग की। बरार ये समझ चुके थे कि इसके बिना कोई चारा भी नहीं है। सुबह होने से पहले ऑपरेशन खत्म करना था।
बरार को सरकार से टैंक इस्तेमाल करने की इजाजत मिली। लेकिन टैंक इस्तेमाल करने का मतलब था मंदिर की सीढि़यां तोडना। सिखों के सबसे पवित्र मंदिर की कई इमारतों को नुकसान पहुंचाना। सुबह करीब 5 बजकर 21 मिनट पर सेना ने टैंक से पहला वार किया। आतंकवादियों ने अंदर से एंटी टैंक मोर्टार दागे। अब सेना ने कवर फायरिंग के साथ टैंकों से हमला शुरू किया। चारों तरफ लाशें बिछ गईं।
सूरज की रोशनी ने उजाला फैला दिया था। अब तक अकाल तख्त सेना के कब्जे से दूर था और सेना को जानमाल का नुकसान बढ़ता जा रहा था। इसी बीच अकाल तख्त में जोरदार धमाका हुआ। सेना को लगा कि ये धमाका जानबूझकर किया गया है, ताकि धुएं में छिपकर भिंडरावाले और उसका मिलिट्री मास्टरमाइंड शाहबेग सिंह भाग सकें। सिखों की आस्था का केंद्र अकाल तख्त को जबर्दस्त नुकसान हुआ।
अचानक बड़ी संख्या में आतंकवादी अकाल तख्त से बाहर निकले और गेट की तरफ भागने लगे लेकिन सेना ने उन्हें मार गिराया। उसी वक्त करीब 200 लोगों ने सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। लेकिन अब तक भिंडरावाले और उसके मुख्य सहयोगी शाहबेग सिंह के बारे में कुछ पता नहीं लग पा रहा था। भिंडरावाले के कुछ समर्थक सेना को अकाल तख्त के भीतर ले गए जहां 40 समर्थकों की लाश के बीच भिंडरावाले, उसके मुख्य सहयोगी मेजर जनरल शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह की लाश पड़ी थी। अमरीक भिंडरावाले का करीबी और उसके गुरु का बेटा था।
6 तारीख की शाम तक स्वर्ण मंदिर के भीतर छिपे आतंकवादियों को मार गिराया गया था लेकिन इसके लिए सेना को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। सिखों की आस्था का केन्द्र अकाल तख्त नेस्तनाबूद हो चुका था। इस वक्त तक किसी को अंदाजा नहीं था कि ये घटना पंजाब के इतिहास को हमेशा के लिए बदलने वाली है।
स्वर्ण मंदिर के बाद मंदिर परिसर के बाहर की बिल्डिंगें खाली करवाने में सेना को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। हालांकि पूर्व सेना अधिकारियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की जमकर आलोचना की। उनके मुताबिक ये ऑपरेशन गलत योजना का नमूना था।
देश ने चुकाई बड़ी कीमत:-
31 अक्टूबर 1984 को अपने घर से निकल रहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर उनके दो सिख सुरक्षा गाडरें सतवंत और बेअंत सिंह ने गोलियों की बौछार कर दी। ऑपरेशन ब्लू स्टार से पैदा हुई सांप्रदायिकता और कट्टरपंथ ने प्रधानमंत्री की जान ले ली। प्रधानमंत्री की हत्या के बाद शुरू हुए दंगों ने करीब तीन हजार लोगों की जान ले ली। इनमें से ज्यादातर सिख थे।