
अत्यँत कोमल हृदय और सरल व्यक्तित्व के स्वामी। स्वभाव से दिल जीतने वाले। सेवा भावी। दानी। 82 वर्ष के स्वामी पाठशाला कभी गए नहीँ। कुल मिलाकर अति सामान्य पात्र। लोगोँ का उनके प्रति आकर्षण बढ सके. वे ऐसे पात्र नहीँ। लेकिन अलग नजरिया रखने वाले पात्र समाज मेँ अपनी महक भी अलग ही तरह से फैलाते हैँ। सँस्कृत, उर्दू, अरबी, गुरमुखी. अँग्रेजी और हिन्दी लिखने -पढने और धारा-प्रवाह बोलने मेँ पारँगत। हँसमुख। कसरती बदन। पुलिस महकमेँ से सेवानिवृत्त किँतु आज भी कुछ खास सेवाएँ देने के लिए तत्पर। सहारा लिए बिना चलने वाले। स्वयँ दूसरोँ का सहारा बनते आए। स्वामी का जीवन एक खुली किताब। हाँ, कुछ लोगोँ ने स्वामी को रहस्यमयी करार दिया था। ऐसे लोगोँ की दलील अपनी जगह है। वे कहते हैँ, स्वामी के परिवार के बारे मेँ उनके पड़ोसियोँ को भी पूरी जानकारी नहीँ। इसी वजह से रहमान को स्वामी के बारे मेँ जानने की उत्सुकता हुई। प्रयास किए तो रहमान को जानकारियाँ मिलने लगी। वो एक निरक्षर के सफर का पीछा करने लगा। अकारण नहीँ, रहमान को स्वामी के जीवन मेँ झाँकने का कारण भी मिल गया। साधन – सँसाधन भी। क्योँकि. स्वामी के जीवन सँघर्ष का मामला समाज और राष्ट्रीयता से जोड़ दिया गया था। स्वामी का भाग्य। उन्हेँ युवाओँ के लिए प्रेरणा पुरुष के रूप मेँ मँडित होना था। ताकि स्वामी के समान परिस्थितियोँ को भोगने वाले उन अनेकोँ परिवारोँ को आशा की ज्योति मिल सके, जिनको अवसाद के अँधेरे ने घेर लिया।
रहमान ने अवसर पाया तो स्वामी के बारे मेँ जानने मेँ सफलता भी अपने नाम करनी शुरू की। अपनी जानकारियाँ प्रतिदिन लिखने लगा। डायरी के पहले पन्ने पर लिखा – स्वामी ने 1931 मेँ कराँची के एक निर्धन परिवार मेँ जन्म लिया। उस कालखँड और उस भू – भाग मेँ जन्म लेने की विडँबना। जो सदियोँ से एक रहा। बेरहमी से विभाजित कर दिया गया। … 2 रा दिन … जारी
हॉस्टल मेँ पढे लिखे बच्चे बड़े हुए तो विदेश चले गए। पड़ोसी इसीलिए स्वामी के बारे मेँ अधिक नहीँ जानते।
रहमान ने डायरी के तीसरे पन्ने पर लिखा –
स्वामी एक समाज का प्रतिनिधि है। विभाजन की त्रासदी भोग कर अर्श से फर्श पर आ जाने के बावजूद वह फिर नवनिर्मित इमारत का कँगूरा बन गया है। अपने सतत् परिश्रम से दूसरोँ की प्रेरणा है। वह एकाकी जीवन पसँद नहीँ करता है क्योँकि एकाकी रह गया है। उसने अपना जीवन देश को दे दिया। अपनी जन्मस्थली से दूर कर दिया गया। लेकिन अपनी बोली भाषा साहित्य और सँस्कृति का सँरक्षण विपरीत परिस्थितियोँ मेँ भी करता रहा। राष्ट्र विकास मेँ सर्वाधिक सहयोग दिया। स्वामी पुरस्कार का सच्चा हकदार है।
रहमान ने अपनी रिपोर्ट सरकार को भेज दी। कुछ दिन बीतने पर 26 जनवरी को गणतँत्र दिवस समारोह हुआ। रहमान ने देखा , स्वामी दूसरोँ को पुरस्कृत होते देख खुश हो रहा है। रहमान स्वामी के नाम की पुकार सुनने की प्रतीक्षा करने लगा। समारोह समाप्त हो गया लेकिन स्वामी को नहीँ पुकारा गया। रहमान ने अपने अधिकारी से पूछा तो जवाब मिला – नेताजी ने कँगूरे पर अपने लँगूर बैठा दिए। भूभाग पर रेखाएँ खीँचने वाले भाषा बोली लोक सँस्कृति को नहीँ बाँट सकते । सँस्कृति सँस्कारोँ से धनवान निर्धन परिवार के मुखिया बाबा जशन ने स्वामी को समृध्द बना दिया। स्वामी 12 साल की उम्र से आजादी के दीवानोँ की टोली मेँ शामिल हो गया।
वरिष्ठ क्राँतिकारियोँ के लिए दुभाषिये का काम उसकी पहचान बन गया। आजादी के बाद स्वामी को निरक्षर होने के बावजूद पुलिस विभाग की गुप्तचर शाखा मेँ महत्वपूर्ण कार्य का दायित्व मिल गया। स्वामी के जीवन मेँ झाँक रहे रहमान की उत्सुकता बढती गई। रहमान 40 साल का है। सरकारी कारिँदा। राष्ट्रीय पुरस्कार चयन समिति का अध्यक्ष। स्वामी को 26 जनवरी को पुरस्कृत करने का प्रस्ताव मिला तो चयन समिति को आवश्यक रिपोर्ट देने का निर्देश प्राप्त हुआ। अब रहमान के लिए स्वामी से मिले और उनकी जानकारी मेँ लाए बगैर काम करना था। रहमान ने अपनी डायरी के दूसरे पन्ने पर लिखा – अविभाजित भारत की विभिन्न बोलियोँ, भाषाओँ और प्रदेशोँ की लोक सँस्कृतियोँ की महक ने एक व्यक्तित्व को गुलजार बना दिया। शिक्षा के लिए आज के तय मानक और कागजोँ पर अँकित उपाधियोँ की वास्तविक जीवन मेँ सार्थकता पर व्यावहारिक ज्ञान को स्वामी के रूप मेँ पुनर्स्थापित कर दिया। यह जीवन का शाश्वत सत्य है। भाषा -बोलियाँ अभिव्यक्ति का माध्यम हैँ। स्वामी सदृश्य व्यक्तित्वोँ का माध्यम लिए राष्ट्र भक्ति और राष्ट्र सेवा का मार्ग भी।
-मोहन थानवी