मानसून को आने दो…

मोहन थानवी
मोहन थानवी

-मोहन थानवी- आजकल पड़ रही है गर्मी। भीषण गर्मी। जेठ में गर्मी यौवन पर होती ही है। चुनाव पूर्व बढ़ी हुई राजनीतिक सरगर्मियों की तरह। गर्मी और सरगर्मी में कुछ तो है जो समान लगने लगता है। जेठ में। चुनाव पूर्व वर्ष में। जेठ के चलते मानसून की शिददत से राह देखी जाती है। चुनावी साल से पहले ‘‘चुनावी घोषणाओं के मानूसन’’ का इंतजार नहीं करना पड़ता। दोनों तरह के मानसून के आने पर ‘‘हम लोग’’ खुश होते ही हैं। गर्मी के बाद मानसून मानस को ठंडक देता और धरा को तर कर खेतों में लहलहाती फसलों की कामना पूर्ति के लिए परिश्रम को उद्यत करता है। मानसून को देखते हुए ‘‘जमाना’’ अच्छा होने की खुशी से चेहरे खिल उठते हैं। चुनावी घोषणाओं के मानसून की बौछारों से मतदाता को खुश कर कुर्सी पर बिराजने की संभावना प्रबल होते देखने वाले चेहरों पर खुशी लहलहाती दिखती है। इस लिए मानस और मतदाता समवेत स्वर में गाते हैं, मानसून को आने दो। मानसून आएगा, खुशियां लाएगा। इस बार भीषण गर्मी से राहत दिलाने मानसून ने आहट भी कुछ जल्दी ही दी है। ठीक वैसे ही जैसे चुनाव पूर्व वर्ष में बजट से भी पहले राहतों की बौछारें चुनावी मानसून के सामान्य से अधिक की उम्मीदें जगा चुकी हैं। यह तो जानी मानी बात है, इधर मानसून आएगा उधर खेत आबाद होंगे। यह भी जग जाहिर है, इधर चुनावी वर्ष के स्वागत में घोषणाओं का मानसून आबादी को उम्मीदों से तर कर रहा है। चुनाव खर्च से बढ़ने वाला आर्थिक बोझ अभी किसी को महसूस नहीं हो रहा और ऐसे में मन कहता है घोषणाओ ंके मानसून को आने दो। आने दो। याद आता है बीती सदी के आठवें-नौवें दशक में प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध करणी माता जी के धाम देशनोक के पहले बीकानेर की तरफ पलाना – बरसिंहसर में बिजली घर बनने और उसमें हजारों युवकों को नौकरी मिलने का सपना। बिजली घर तो बना लोगों को नौकरियां भी मिली लेकिन प्रदेश के बेरोजगारों का सपना साकार नहीं हुआ। सदी बदल गई मगर आज भी क्षेत्र के बेरोजगार नौकरी में अपना हक मांगते हैं। बाड़मेर में भी कहीं ऐसा ही कुछ न हो जाए, इस आशंका से उधर की तरफ तो विचार मुड़ता ही नहीं। हालांकि अभी अभी प्रदेश का कुद पूर्वी भाग प्री मानसून के छींटों से भीगा है। और रिफाइनरी और तेल कंपनियों में एक लाख से अधिक नौकरियों के खुलने की सुखद मुनादी भी सुनी है। कहीं यह मानसून पूर्व की बारिश तो नहीं ! कामना है कि मानसून भी सामान्य से अधिक ही रंग दिखाए। क्योंकि… इसके ठीक बाद जनता को चुनावी महाकुंभ में भी गोता लगाना और फिर से अपनी पसंदीदा पार्टी की सरकार बनाना है। जो होगा अच्छा ही होगा। फिलवक्त तो मानसूनी बौछारों से भीगते रहें। जय हो।

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