देहरादून [सुमन सेमवाल]। केदार घाटी में तबाही की वजह पर छाया कुहासा काफी हद तक छंट गया है। भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान [आइआइआरएस] के सैटेलाइट अध्ययन में सामने आया कि यहां न तो कोई बादल फटा और न ही केदारनाथ मंदिर के ऊपर बने गांधी सरोवर के टूटने के कारण सैलाब आया। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट बताती है कि केदार घाटी को बर्बाद करने के पीछे दो ग्लेशियर रहे, इनकी ऊपरी परत पिघलने से पानी का सैलाब फूट पड़ा और रास्ते में पड़ने वाली हर एक चीज को बहा ले गया। रीसैट-1 नाम के सैटेलाइट से ली गई तबाही की तस्वीरें भी आइआइआरएस ने जारी की हैं।
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आइआइआरएस की रिपोर्ट के मुताबिक केदारनाथ में उत्तर-पूर्व में पड़ने वाले कंपेनियन ग्लेशियर की ऊपरी परत पिघलने से इतनी भारी मात्रा में पानी फूटा कि वह गांधी सरोवर को तोड़ते हुए केदारनाथ की तरफ बढ़ने लगा। करीब इसी समय उत्तर-पूर्व के चूराबारी ग्लेशियर पिघलने से फूटा पानी का रेला अपने साथ बड़े-बड़े पत्थर व भूभाग को भी बहाकर ले गया। दोनों ग्लेशियर से उठा पानी का रेला केदारनाथ मंदिर से कुछ पहले एक साथ मिल गया और दोगुनी रफ्तार से केदारनाथ मंदिर की तरफ बढ़ने लगा। इसके बाद शुरू हुई तबाही जिसे देख पूरी दुनिया स्तब्ध है।
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त्रासदी बयां करते हैं सैटेलाइट चित्र
आइआइआरएस ने सैटेलाइट चित्रों को क्रमवार विभाजित किया है। जिसमें ग्लेशियर से लेकर गांधी सरोवर व उसके बाद फूटी दो मुख्य जलधाराओं को तबाही मचाते दिखाया गया है। चित्रों से पता चलता है कि पानी ने किस तरह इलाके को दो घाटियों में बांट दिया है। कंपेनियन ग्लेशियर से भारी मात्रा में पानी बहा, जो उतना खतरनाक नहीं था। जबकि चूराबारी ग्लेशियर का पानी अपना साथ भारी मात्रा में चट्टानें व भूभाग भी बहा ले गया, जिससे तबाही का ग्राफ बढ़ गया। पूरी तरह तबाह हो चुका रामबाड़ा कस्बा इसका उदाहरण है।
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क्यों पिघली ग्लेशियर की ऊपरी परत
विशेषज्ञों के मुताबिक भारी बारिश होने पर ग्लेशियर की ऊपर की कमजोर परत पिघलने लगती है। बर्फ का तापमान बेहद कम होता है, जबकि बारिश के पानी का तापमान अधिक होता है। बारिश के पानी से ग्लेशियर के ऊपरी परत का तापमान प्रभावित होने लगता है और इसी वजह से ये परत पिघलने लगती है। 16 जून को भी भारी बारिश हुई थी।