मजबूरी ने बेटी को बनाया मजदूर

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सराड़ा। पिता का गौरव,भाई की इज्जत और मां का प्यार होती है बेटी। ऐसी ही दो बेटियों को मजबूरी की रस्सी से बांधने को मजबूर है एक परिवार। ऐसी ही एक परिवार कहानी उदयपुर जिले के सराड़ा उपखण्ड की झाड़ोल पंचायत के बटुका गांव में खानफला के भैरा मीणा की है।

कुछ साल पहले तक चार बेटियों के पिता का वक्त ठीक-ठाक गुजर रहा था। एक हादसे ने उनके हाथ-पैरों की सलामती क्या छीनी,घर की तमाम चिंता दो छोटी बेटियों पर आन पड़ी। पढ़ाई छूट गई और घर चलाने की जिम्मेदारी का भार कंधों पर आ गया। मजबूर बाप को राज से भी कोई मदद नहीं मिली। ऐसी बदकिस्मती और सरकारी बेरूखी झेल रहे भैरा और उसकी सबसे छोटी बेटी ही एक-दूसरे का सम्बल बने हुए हैं।

भैरा मीणा तीन साल पहले अनाज से भरी बोरी के नीचे आने से अपंग हो गया। दो बेटियों की शादी कर दी। अब सबसे छोटी बेटी गीता ही उसके परिवार में कमाऊ सदस्य है। परिवार की स्थिति देखते हुए तीन साल पहले उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। वह मजदूरी करने लगी और मेहनताने से दवा व राशन का बंदोबस्त करने लगी। मां भूरी बाई (57) घर के काम-काज में पुत्री की मदद करती हैं।

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