क्या फिर वसुंधरा की गोदी में बैठेंगे सिंघवी?

chandra raj singhavi 2जनता दल यू के राष्ट्रीय महासचिव चंद्रराज सिंघवी के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर स्वार्थी होने का आरोप लगाते हुए पार्टी पद से इस्तीफा देने के साथ ही यह सवाल खड़ा हो गया है कि खुरापाती स्वभाव के चलते वे अब क्या करेंगे? उनके लिए सबसे मुफीद चुनावी मौसम में किस दल में जाएंगे? इससे भी बड़ा सवाल ये है कि उन्हें अब पचाएगा कौन?
सबको मालूम है कि सिंघवी पुराने कांग्रेसी चावल हैं। कांग्रेस की पोल पट्टी के विशेषज्ञ। राजनीति के शातिर खिलाड़ी। जमीन पर पकड़ हो न हो, जोड़तोड़ में माहिर हैं। उसी के दम पर राजनीति करते हैं। उनका उपयोग कितना सकारात्मक करेंगे, इससे कहीं अधिक कितना सामने वाले की बारह बजाएंगे, इसमें है। कांगे्रस में तो पहले से ही शातिरों की भरमार है। जब वहां दाल न गलती दिखी और वसुंधरा के उगते सूरज को सलाम कर दिया। वसुंधरा को भी ऐसे ही खुरापाती की जरूरत थी, जो कांगे्रस की लंका भेद सके। उन्होंने सिंघवी को खूब तवज्जो दी। सिंघवी की चवन्नी भी अठन्नी में चलने लगी। चाहे जिस को चूरण बांटने लगे। केडर बेस पार्टी के नेता व कार्यकर्ता भला ऐसे आयातित तत्व को कैसे बर्दाश्त कर सकते थे। विशेष रूप से संघ लॉबी को तो वे फूटी आंख नहीं सुहाते थे। आखिरकार उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ा। राजनीति ही जिनका दाना-पानी हो, वे भला उसके बिना जिंदा कैसे रह सकते थे। दोनों बड़े राजनीतिक दलों से नाइत्तफाकी के बाद गैर कांग्रेस गैर भाजपा की राजनीति करने लगे। इधर-उधर घूम कर आखिर जदयू में जा कर टिके। जिस जदयू का राजस्थान में नामलेवा नहीं, उसे तो ऐसे नेता की जरूरत थी, सो वहां बड़ा सम्मान मिला। यकायक राष्ट्रीय क्षितिज पर आ गए। चूंकि वसुंधरा से उनका पुराना नाता था, इस कारण जदयू हाईकमान को भी लगता था कि वे राजस्थान में भाजपा से तालमेल में काम आएंगे। हालांकि यूं तो वे किरोड़ी लाल मीणा के साथ मिल कर तीसरे मार्चे की बिसात बिछाने लगे हुए थे, मगर उम्मीद कुछ ज्यादा नहीं थी। पिछले विधानसभा चुनावों में भी सिंघवी ने तीन पार्टियों का गठबंधन बनाया था, लेकिन उनके उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा पाए। जहां तक जदयू का सवाल है, उसके पास अभी कुशलगढ़ विधायक फतेह सिंह एकमात्र विधायक हैं। हालांकि जेडीयू और भाजपा ने आपसी तालमेल के साथ पिछला चुनाव लड़ा था,मगर इस बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुद्दा बना कर जदयू ने भाजपा से नाता तोड़ दिया तो अब यहां भी सिंघवी की उपयोगिता समाप्त हो गई। ऐसे में पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने उनके बड़बोलेपन को बहाना बना कर पद से हटा दिया। अब उनके लिए जदयू में रहना बेमानी हो गया है। ऐसे में हर किसी की निगाह है कि अब वे कहां जाएंगे। कांग्रेस के खिलाफ इतना विष वमन कर चुके हैं कि वहां जा नहीं सकते। कांग्रेस भी ऐसे नेता को लेकर अपने यहां गंदगी नहीं करना चाहेगी। वैसे भी बदले समीकरणों में भाजपा से दूरी बनाने के बाद नीतीश की कांग्रेस से कुछ नजदीकी दिखाई देती है। जब से हटे ही नीतीश पर हमला बोल कर हैं तो वहां जाने की कोई संभावना नहीं है।
रहा सवाल वसुंधरा का तो वे चूंकि येन-केन-प्रकारेन सत्ता पर काबिज होना चाहती हैं, सो संभव है वे उन्हें फिर से पपोलने लगें। जाहिर तौर पर न सही, गुप्त रूप से तो वे उनका काम कर ही सकते हैं। तीसरे मोर्चे की कवायद के चलते संभव है दिखाई तो किरोड़ी लाल मीणा के साथ दें, मगर ज्यादा संभावना इसी बात की है कि वे वसुंधरा से गुप्त समझौता कर लेंगे। जानते हैं कि गर उनकी सत्ता आई तो मलाई खाने को मिल सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

error: Content is protected !!