दीवाली अमीरो की नही गरीबो की भी होती है

poor family01अजमेर। अँधेरे में ज्योति पुंज बन कर दुसरो को आलोकित करने में ही दीपावली की सार्थकता है। वैभव और समृद्धि की कामना कर दीपावली मनाने वालो से हट कर कुछ लोग ऐसे भी है जो इस पर्व को दुसरो के चेहरो पर हंसी और मुस्कुराहट लाने का दिन मानते है। अजमेर के कोटड़ा इलाके की झुग्गी झोपड़ी के बाशिंदो के लिए हर साल दीपावली पर खुशियो कि सौगात ले कर आते है अजमेर यूनिक और डीआरके मेमोरियल ट्रस्ट के सदस्य।
दीपावली को वैभव और समृद्धि कि कामना का पर्व मानने वालो ने भले ही आज के दौर में इसे बाजार का पर्व बना दिया हो लेकिन इस दौर में भी कुछ लोग है जो इस पावन पर्व की सार्थकता को समझते है। अजमेर के कोटड़ा इलाके में यह है पत्रकार कॉलोनी के पास आबाद झुग्गी बस्ती। इस बस्ती में अधिकांश लोग दैनिक मजदूरी कर अपने और अपने परिवार का भरण पोषण करते है। आर्थिक तंगी इनका नसीब है। कभी वो दौर भी था जब मध्य प्रदेश के पन्ना जिले से यहा आये इन गरीबो के जीवन में दीपावली भी काली और स्याह रात की तरह थी। लेकिन इनके मुरझाये चहरो को मुस्कुराहट कि सौगात दी अजमेर यूनिक और डीआरके मेमोरियल ट्रस्ट के लोगो ने। दलितो कि इस बस्ती में रहने वाले रैगर समाज के इन लोगो में आज दीपावली का जो उत्साह नजर आ रहा हे उस के पीछे भी यह दो संस्था ही है।
poor family02दीपावली पर्व पर यहा भी आज रौनक है। पकवानो से सजे थाल भले ही ना हो लेकिन संस्था के सहयोग से यहा खीर पुड़ी और सब्जी का इंतजाम हर दीपावली पर किया जाता है। अमीरी गरीबी और भेदभाव से दूर इस बस्ती के बाशिंदो ने जब से नशा मुक्ति और सफाई का संकल्प लिया तभी से संस्था इनके सहयोग के लिए आगे आयी। यहंा दीपावली की रौनक हो और यहां रहने वाले भी लक्ष्मी का स्वागत कर सके इस का इंतजाम भी संस्था करती है। पूजन सामग्री के साथ ही कपड़ो का इंतजाम भी संस्था ने किया है।
संस्था के सदस्यो का मानना है की दीपावली कि सार्थकता ही तभी है जब अँधेरे जीवन को रौशन किया जाए। यही वजह है कि संस्था के सदस्य अपने घर को दीपो से सजाने से पहले उपहारों के रूप में रौशनी की किरण ले कर यहां पहंुचते है। संस्था द्वारा यहंा रहने वालो को सामाजिक बुराई से दूर रखने के जतन किया जाते है साथ ही बात चाहे हारी बिमारी की हो या शादी की ,संस्था द्वारा यहां रहने वालो का हमेशा सहयोग किया जाता है। साथ बैठकर भोजन करते सस्ंथा के सदस्यांे और यहां के बाशिंदो को देख कर अहसास करना मुश्किल है कि यह किसी एक परिवार के सदस्य नहीं है।
बात करते है इन परिवारो के बच्चेा की जैसे ही अजमेर यूनिक और डीआरके के सदस्य इस बस्ती में पहुंचते है मानो बच्चो को ख्ुाशी के पंख लग गए हो। खेलकूद के साथ व्यंजन और उपहारो की बरसात ने इन्हें दीवाली का सचमुच अहसास करा दिया।
दीपोत्सव कि सार्थकता तभी है जब देश में रहने वाला हर वर्ग समभाव से इस पर्व पर उत्साहित हो। बाजारो कि रौनक में खोने वाले लोग भूल जाते है कि देश में कुछ लोग ऐसे भी है जिनके लिए रोटी आज भी चाँद है जो दिखती तो हे लेकिन मिलती नहीं। आज शायद इस संकल्प को लेने कि जरूरत है कि इन चहरो पर भी मुस्कुराहट बनी रहे।

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