तांगा सवारी धीरे-धीरे हो रही है विलुप्त

taanga01अजमेर। आवागमन के आधुनिक संसाधनों की भीड़ में पारम्परिक तांगा सवारी विलुप्त होती जा रही है। किसी जमाने में तांगे की सवारी करना रईसी अंदाज का प्रतीक था आज मंहगी-मंहगी कारे रईसी का प्रतीक बन गयी है। 40 साल पहले जहां अजमेर मे सैकडो घोडा गाडी ओर तांगा सवारी सडकों पर दौडती थी आज उनकी जगह कारों ने ले ली है। सडकों पर जगह कम ओेर वाहन ज्यादा हो गये है। कुछ वक्त पहले अजमेर रेलवे स्टेशन ओर आगरा गेट पर बाकायदा एक तांगा स्टैंड हुआ करता था लेकिन आज शहर मे कहीं भी तांगा स्टैंड नाम की कोई चीज नही है। अब शहर में तांगे भी गिनती के बचे है जिनको चलाने वाले तांगा चालक बमुश्किल अपना ओर अपने परिवार का भरण पोषण कर पाते है।
इस रोजगार पर शहर में चंद बचे तांगा चालको से बात की तो तांगा चालक शाहिर खान ने बताया कि वह 1985 से तांगा चलाकर अपना परिवार चला रहा है। इस पेशे में दिनो दिन जलालत तो बढी़ है लेकिन आमदनी घटती जा रही है। शहर में कही भी तांगा स्टैंड नही होने से ट्रैफिक पुलिस का एक अदना सा सिपाही भी सवारीयों के बीच गालियां देकर जलील कर देता है। बढ़ती मंहगाई में घोडे को खिलाने के लिये चारा ओर परिवार को खाना खिलाने के लिये भी प्र्याप्त आमदनी नही हो पाती। 60 साल में कांग्रेस सरकार ने तांगा चालकों के लिये कोई योजना नही बनाई। लेकिन आज भी शहर के अधिकतर तांगा चालक कांग्रेस को ही वोट देते आ रहे है।
1968 से तांगा चला रहे बुर्जुग कानजी ने बताया की आज की मंहगाई के जमाने में घोडे की परवरिश नही होती तो बच्चों की परवरिश क्या कर पायेगें। चुनाव के टाइम वोटों के लिये हर छोटा बडा नेता हमें याद कर रहा है लेकिन जब हम कोई फरियाद लेकर इन नेताओ के पास लेकर जाते है तो कोई सुनने को तैयार नही होता।
दिल्ली से आये प्र्यटक नीना शर्मा ओर परिक्षित ने बताया कि सरकार को गरीब तांगे वालो को प्रोत्साहित करने के लिये योजनायें बनानी चाहिये। आज के इस दौर में घोडे़ की खुराक का पैसा दिनभर मेें वसूल हो जाये तो बडी बात है। शाम तक 200 – 300 रूप्ये कमाना टेढी खीर हो गयी है। अब तांगे की सवारी अजमेर के बाहर से आने वाले जायरीन ओर प्र्यटकों की पंसद बन कर रह गयी है।

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