अजमेर / रंगकर्मी व नाटककार उमेष कुमार चौरसिया द्वारा लिखित नाटक ‘‘नरेन्द्र से विवेकानन्द‘‘ का प्रदर्षन आंध्र प्रदेष की राजधानी हैदराबाद में आगामी 12 जनवरी, 2014 को भारतीय विद्या भवन किंग कोटी स्थित रंगमंच पर शाम 7 बजे होगा। यह प्रदर्षन वहां के प्रतिष्ठित रंगकर्मी अरूण गौड़ के निर्देषन में गीता परिवार के तत्वावधान में किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि चौरसिया का यह नाटक पुस्तक रूप में 2012 में प्रकाषित हुआ है, जिसे देषभर में सराहा गया है तथा कई अन्य स्थानों पर भी प्रदर्षन की तैयारी की जा रही है।
नाटक का परिचय
नरेन्द्र से विवेकानन्द
– स्वामी विवेकानन्द के जीवन प्रसंगों पर आधारित द्विअंकी पूर्णकालिक प्रेरक नाटक। नास्तिकता की कगार तक जिज्ञासु क्रांतिधर्मा युवक नरेन्द्र का एक पूर्ण श्रद्धालु योद्धा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द के रूप में रूपान्तरण एक अद्भुत ऐतिहासिक घटना है, स्वामीजी के जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण भाग ही इस नाटक की कथावस्तु है। ठाकुर रामकृष्ण परमहंस से प्रथम परिचय के दृश्य से आरंभ हुए इस नाटक में नरेन्द्र के अपने गुरू के प्रति अद्वितीय संबंध को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है। माता भुवनेश्वरी का वात्सल्य, नरेन्द्र का परिवार के लिए त्याग, नाटकों के प्रति उनकी रूचि, अध्यात्म की ओर आकर्षण, सन्यास ग्रहण कर विवेकानन्द बनने के प्रसंगों के माध्यम से विवेकानन्द के अचंभित कर देने वाले व्यक्तित्व का पता चलता है। परिव्राजक काल में अलवर, खेतड़ी और मैसूर के राजाओं से संवाद में अध्यात्म, समाज और राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण का भाव दिखता है। कन्याकुमारी मे ध्यान के उपरान्त भारत के पुनरूत्थान का ध्येयदर्शन और अमरीका चात्रा की बाधाओं को पार करते हुए शिकागो धर्मसंसद में विश्व प्रबोधन की सार्थक प्रस्तुति तक ले जाने वाला यह नाटक विवेकानन्द की सम्यक जीवनदृष्टि को दर्शाता है। अंत में संबंधित चित्रावली भी दी गई है। प्रकाशक-ग्रन्थ विकास,जयपुर/वर्ष 2012/हिन्दी
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स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद जी आधुनिक भारत के एक महान चिंतक, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे । स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी सन् 1863को कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। स्वामी विवेकानंद संत रामकृष्ण के शिष्य थे और स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
विश्वभर में जब भारत को निम्न दृष्टि से देखा जाता था, ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर, 1883 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म पर प्रभावी भाषण देकर दुनियाभर में भारतीय आध्यात्म का डंका बजाया। उन्हें (स्वामी विवेकानंद )प्रमुख रूप से उनके प्रेरणात्मक भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके (स्वामी विवेकानंद )संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। विश्व धर्म सम्मेलन में उपस्थित 7000 प्रतिनिधियों ने तालियों के साथ उनका (स्वामी विवेकानंद )स्वागत किया।
विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को अन्तरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया। भारतीय केंद्र सरकार ने वर्ष 1984 में मनाने का फैसला किया था ।राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस (12 जनवरी) पर वर्ष 1985 से मनाया जाता है । भारत में स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती, अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद जी ने हमेशा युवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया और युवाओं को आगे आने के लिए आह्वान किया । स्वामी विवेकानंद ने अपनी ओजस्वी वाणी से हमेशा भारतीय युवाओं को उत्साहित किया है । स्वामी विवेकानंद के विचार सही मार्ग पर चलते रहने कीप्रेरणा देते हैं। युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था:-
“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।”-उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपने लक्ष्य तक ना पहुँच जाओ।
भारतीय युवा और देशवासी स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनके विचारों से प्रेरणा लें।
युद्धवीर सिंह लांबा “भारतीय” (Yudhvir Singh Lamba Bharatiya)
प्रशासनिक अधिकारी, हरियाणा इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलॉजी,
दिल्ली रोहतक रोड (एनएच -10) बहादुरगढ़, जिला. झज्जर, हरियाणा राज्य, भारत