बख्शीशसिंह की नयी कृति पर विचार गोष्ठी

100_3014अजमेर / कविता को ईश्वर का दर्जा देने वाली पंजाबी सभ्यता के कवियों ने ही भारत में सूफिज्म का आधार तैयार किया और उसे फैलाया भी है। समाज को नैतिक रूप से संतुलित करने के लिए जिस आध्यात्मिक सोच और दृष्टि की आवश्यकता थी, उसे सूफी कवियों ने बखूबी अपनी रचनाओं में उकेरा और जन-जन तक पहुंचाया। बुल्लेशाह भी ऐसे ही सूफी कवि थे जिन्होंने लोकगीतों के माध्यम से ईश्वर के प्रति प्रेम के सच्चे दर्शन को प्रस्तुत किया। ‘बुल्ला की जाणां मैं कौन…‘गीत में बुल्लेशाह स्वयं की पहचान पर प्रश्न करते हुए शारीरिक आकर्षण से इतर आत्मा और परमात्मा के प्रेम की बात कहते हैं। बख्शीश सिंह ने ऐसी ही सूफी काफियों को सरल भाषा में भावार्थ सहित आम पाठक तक पहुँचाने का सार्थक प्रयास किया है। ये बात पद्मश्री डॉ. चन्द्रप्रकाश देवल ने ‘शब्द‘ संस्था द्वारा कवि बख्शीश सिंह की नयी कृति ‘सूफी कवि बुल्लेशाह‘ पर शुक्रवार शाम स्वामी काम्प्लेक्स में आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्या वक्ता के रूप में कही। अध्यक्षता करते हुए शायर मन्नान राही ने कहा कि सूफी वही हो सकता है जो व्यवहारिक जीवन में एक मुकम्मल इंसान हो। सूफी कवि बुल्लेशाह खुदा को आशिक और माशूक दोनों ही रूप में देखते हैं। वे जैसा मानते हैें खुदा उन्हें वैसा ही दिखता है। सूफिज्म को समझना अच्छा इंसान बनने की ओर ले जाता है, इसे इस नयी कृति के द्वारा सरलता से महसूस किया जा सकता है। पुस्तक के लेंखक कवि बख्शीशसिंह ने कहा‘वो सर क्या जो हर दर पे झुक जाये और वो दर क्या जिस पर कोई सर न झुके‘ यही सूफिज्म का सार है। इस कृति में उन्होंने पंजाबी सूफी कविताओं को सरल हिन्दी भाषा में स्पष्ट करने का प्रयास किया है ताकि नयी पीढी के पाठक उसे समझ सकें।
गोष्ठी में पुस्तक पर चर्चा करते हुए संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने कहा कि बुल्लेशाह की कविताआंे में सांसारिक प्रेम से इतर ईश्वर के प्रति गहरे प्रेम को दर्शाया गया है। बख्शीशसिंह ने भावार्थ देकर इनका मूलभाव समझाने का सार्थक प्रयास किया है। डॉ. अनन्त भटनागर ने कहा कि ये सूफी रचनाएं अलौकिक प्रेम की आनन्ददायक अनुभूति देती हैं। डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली ने बताया कि बुल्लेशाह ने खेती करते हुए ही मन को भौतिक संसार से उखाड़कर परमात्मा में लगाने का दर्शन सहज भाव से अभिव्यक्त कर दिया था। सूफी कवि प्रेम को केन्द्र में रखकर जीवन और समाज का चिन्तन करने की प्रेरणा देता है। संचालन हास्य कवि रासबिहारी गौड़ ने किया तथा श्याम माथुर ने आभार अभिव्यक्त किया। गोष्ठी में जोगेन्द्रसिंह दुआ, जे.एस.सोढी, कालिंदनंदिनी, इमरान चिश्ती, कंवलप्रकाश किशनानी, जुल्फीकार, गोविन्द भारद्वाज, नरेन्द्र छाबड़ा, नवलकिशोर भाभड़ा, डॉ कमला गोकलानी आदि ने भी विचार व्यक्त किये।
-उमेष कुमार चौरसिया
संयोजक
संपर्क-9829482601

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