लक्ष्मीनारायण मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा

Photo Manish 001अजमेर। लक्ष्मीनारायण मंदिर हाथीभाटा, अजमेर में वृंदावन के विख्यात कथावाचक भागवत भ्रमर आचार्य मयंक मनीष की समधुर वाणी द्वारा गत दो दिवस स ेचल रही भागवत कथा में दूसरे दिन श्रीमद्भागवत कथा में आचार्य मयंक मनीषी ने श्रीमद्भागवत कथा में श्रोता के लक्षण, भगवान के 24 अवतारेां का वर्णन, विदूर के घर भगवान का पधारना, हरि पाषर्द जय विजय को सनत कुमारों द्वारा शाप, वाराह अवतार की कथा एवं गृहस्थ धर्म का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि आश्रम में गृहस्थ आश्रम में सर्वश्रेष्ठ है। गृहस्थ वो धर्म है जहां स्वयं भगवान भी जन्म लेकर आते हैं। सभी आश्रम में गृहस्थ आश्रम श्रेष्ठ है और यह धर्म की पहली सीढी है। उन्होंने कथा में भगवान की आलोकिक छवि का वर्णन करते हुए कहा कि – एकमात्र वृन्दावन-विहारी श्रीकृष्ण स्वयं भगवान है। अन्य जितने भी भगवत्स्वरूप हैं, वे सब उन्हीं के अवतार हैं या अंष हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान् श्रीकृष्ण ही स्वयं को अनेक रूपों में प्रकटित करते हैं। शास्त्रों में पुराणों में अनेक स्थानों पर यह वर्णित किया गया है: ‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयं’। परम आनन्दकन्द स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण की छवि अलौकिक है, अवर्णनीय है। श्रीकृष्ण सौन्दर्य की सीमा है। मधुराति-मधुर आपका स्वरूप है। योगेष्वर कृष्ण ने सदा साथ रहने वाली सौभाग्यषालिनी बांसुरी और मस्तक पर मोरमुकुट धारण किया हुआ है। महाराज ने कथा में मोर पंख के विषय में कहा कि जो पीडा ,दर्द को ग्रहण कर सृष्टि का सृजन कर दे वो षिरोधार्य है। मनुष्य का सर्वोच्च भाग मस्तक है। भगवान को मोर पंख अत्यन्त प्रिय है इसलिए सर्वोच्च सम्मान प्रदान कर वे उसे सर्वदा अपने मस्तक पर धारण करते हैं। भगवन योगेष्वर हैं और मोर को भी योगेष्वर कहा जाता है। भगवान को मोर अत्यन्त प्रिय हैं। वैसे ह बात प्रचलित है कि मोर चिर ब्रह्मचर्य युक्त प्राणी है। आनन्दातिरेक में प्रफुल्लित हुए मोर के आंखों से गिरे हुए अश्रु बिन्दुाअें का मोरनी द्वारा पान किये जाने पर उनकी सृष्टि वर्धित होती है। ऐसे आदरणीय मोर पंख जिसे भगवान ने स्वयं अपने मस्तक पर सम्मान के साथ सदा-सर्वदा धारण किया है। कथा दिनांक 23 जुलाई तक प्रतिदिन प्रातः 9 से12 एवं सायं 3 से 6 बजे तक लक्ष्मीनारायण मंदिर हाथी भाटा में चल रही है।
नारायण स्वरूप गर्ग
वासुदेव मित्तल
सतीष अग्रवाल
मो. 8890379007

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