शिक्षा को युगानूकूल और देशानुकूल बनाए जाने की जरूरत

वासुदेव देवनानी
वासुदेव देवनानी

अजमेर। शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने कहा है कि शिक्षा को युगानुकूल बनाने की आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि जरूरत इस बात की भी है कि स्कूल, उच्च और तकनीकी षिक्षा में परस्पर समन्वय हो।

श्री देवनानी आज यहां विवेकानंद इन्स्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलोजी में आयोजित ‘स्कूल शिक्षकों के उच्च एवं तकनीकी षिक्षा एवं आधुनिक तकनीक के विकास में योगदान’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने शिक्षा में सामाजिक सरोकारों का भाव पैदा किए जाने पर जोर देते हुए कहा कि भारत विष्वगुरू था नहीं बल्कि है। हमारे जो पुराण हैं, उनमें निहित विज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोड़े जाने की जरूरत है। उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान संजय द्वारा धृतराष्ट्र को युद्धस्थल का आंखोदेखा हाल सुनाने, रामायण मंे वर्णित पुष्पक विमान आदि के उदाहरण देते हुए कहा कि आधुनिक वैमाानिकी विज्ञान और वायुयान का आविष्कार का मूल हमारा वह पुरातन विज्ञान ही तो रहा है। उन्होंने नई पीढ़ी को इनका ज्ञान करवाने तथा युग की षिक्षा को देषानुकूल बनाते हुए षिक्षा क्षेत्र में देष को अग्रणी किए जाने का आह्वान किया।
षिक्षा राज्य मंत्री ने कहा कि कक्षा एक से 12 वीं तक विद्यालयों में जो हम पढ़ाते हैं, उससे बच्चे के व्यक्तित्व का विकास कैसे हो, इस पर भी विचारा जाए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति की सोच को बदलने में जितनी अधिक षिक्षा की भूमिका है, उतनी अन्य किसी क्षेत्र की नहीं। उन्होंने कहा कि स्कूल षिक्षा ही तमाम षिक्षा का वास्तव में मूल आधार है। स्कूल और उच्च एवं तकनीकी षिक्षा को अलग-अलग नहीं बल्कि एक दूसरे की पूरक देखा जाना चाहिए। उन्होंने पर्सनल कम्प्यूटर की चर्चा करते हुए कहा कि तिीन ‘पी’ और तीन ‘सी’ के अंतर्गत बच्चों को षिक्षित किया जाए। तीन पी हैं-परफेक्ट यानी पूर्णता, पोलाइटनेष यानी विनम्रता, पेषेंष यानी धैर्य तथा तीन सी हैं, क्रिएटिविटी यानी रचनात्मकता, काॅन्फीडेंष यानी आत्मविष्वास तथा कम्यूनिकेषन यानी संवाद। इन गुणों का विकास यदि षिक्षा के दौरान बच्चों में होगा तभी वे जीवन मे आगे बढ़ सकेेंगे।
पूर्व सांसद एवं चिंतक श्री महेष शर्मा ने कहा कि बौद्धिक चर्चाएं बौद्धिक व्यायाम की भांति है। इससे बुद्धि की ऊर्जा बढ़ती है। उन्होंने ज्ञान दान में भाषा को बाधक नहीं बनाए जाने पर जोर देते हुए कहा कि विद्यालयों में बच्चे किन संस्कारों को प्राप्त कर रहे हैं, इस पर भी गंभीरता से विचारा जाए। उन्होंने षिक्षा के जरिए बच्चों में देष की उद्यमिता, उत्पादन विकसित किए जाने की सोच के तहत भी कार्य किए जाने पर जोर दिया।
भारतीय प्रषासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी एवं मुख्यमंत्री के सचिव डाॅ. के.के पाठक ने ज्ञान के स्त्रोतों का विषद् विवेचन करते हुए कहा कि प्रकृति के हर तत्व और घटक में ज्ञान निहित है परन्तु जरूरी यह है कि ज्ञान के साथ षिक्षक स्नेह भी बांटे। उन्होंने कहा कि जीवन कौषल के साथ जीवन कला की षिक्षा भी जरूरी है। उन्होंने महापुरूषों के जीवन प्रसंगों का उल्लेख करते हुए षिक्षा के महत्व, उसको दिए जाने के तरीकों का सांगोपांग विवेचन किया।इससे पहले विवेकानंद इन्स्टीट्यूट के उपाध्यक्ष श्री एम. रायसिंघानी ने संगोष्ठी के उद्देष्यों पर प्रकाष डालते हुए संस्थान की विभिन्न गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।
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