

प्रस्तावों के वाचन के पश्चात कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री अनिल जी ओक ने हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है इस विषय पर प्रकाश डालते हुए उद्बोधन किया। उन्होने बताया कि हिन्दू यह शब्द किसी पूजा पद्धति का पर्याय नहीं है अपितु संस्कृति है। लाखों वर्षो से संचित ऐसे मुल्यों का पर्याय है जिसकी बड़ी कीमत हमारे पूर्वजों ने चुकाई है। राम, भरत, सावित्री, चाफेकर बन्धुओं की मां और गुरूगोविन्द सिंह के पुत्रों का उदाहरण देते हुए उन्होने यह स्पष्ट किया कि कीमत चुकाने पर ही मूल्य स्थापित होते हैं। भारत की धरती पर इसी प्रकार के मुल्यों का संचय हिन्दुत्व इस नाम से जाना जाता है। यही हिन्दुत्व का भाव जब-जब कमजोर हुआ तब तक भारत पर संकट आये। विभिन्न लघु कथाओं के माध्यम से उन्होंने बताया कि तीन प्रकार की एष्णाओं यथा वित्तेष्णा, लोकष्णा, पुत्रेष्णा की पूर्ति के लिये सामान्य मनुष्य जीवन जीता है ऐसे मुनष्य महापुरूषों के रूप में नहीं पूजे जाते। सावरकर का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कि स्वंय निर्वंश होकर देश हित में जीवन जीने वाले ही हमारे वास्तविक पूर्वज है जो युगो तक प्रेरणा देते है। अपने घरों पर हम ऐसे महापुरूषों के चित्र ही लगाते है जिन्होने अपना जीवन देशहित में जिया है। हमारे यहां धन की नहीं त्याग की पूजा की जाती है। अपने वक्तव्य के अन्त में उन्होंने समाज से आव्हान किया कि वे हिन्दुत्व और संघ के सन्दर्भ में अनुभव के आधार पर अपना प्रबोधन स्वयं करें और संघ के समर्थक ही नहीं अपितु स्वयंसेवक बने ताकि विश्व को भारत के जिस स्वरूप की प्रतीक्षा है वह शक्ति वैभव-सम्पन्न भारत हम शीघ्र निर्मित कर सकें।
कार्यक्रम में प्रबुद्ध नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अन्त में माननीय महानगर सह संघचालक जगदीश जी राणा द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यक्रम का समापन वन्दे मातरम् के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन श्री सुशील जी बिसु द्वारा किया गया। अतिथियों का परिचय निरंजन जी शर्मा द्वारा करवाया गया।
सुनील दत्त जैन
महानगर संघचालक