समष्टि के कल्याण के लिए किया गया प्रत्येक कर्म योग होता है और इसे
ही कर्म की कुशलता कहा जाता है। महर्षि अरविंद ने योग को राष्ट्रभक्ति से जोड़
कर व्यक्ति से राष्ट्र तक के एकात्म योग दर्शन की व्याख्या की और व्यष्टि से
समष्टि की चैतन्यता के विस्तार को ही योग का नाम दिया। भारत का डीएनए
त्याग और सेवा है तथा केवल बुद्धयांक अथवा भावनांक से ही जीवन में योग
नहीं आता अपितु उसके लिए आध्यात्मांक का होना भी आवश्यक है। उक्त विचार
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा अजमेर द्वारा आयोजित योग सत्र के तीसरे
दिन विभाग प्रमुख डॉ. स्वतन्त्र शर्मा ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जीवन में
धर्मचक्र निरंतर चलता रहता है और समाज से व्यक्ति का योगक्षेम होने के पश्चात
कर्मानुसार कर्मफल प्राप्ति के उपरांत यदि कर्मफल का कुछ हिस्सा पुनः यज्ञ के
रूप में समाज को नहीं लौटाया जाता तो यज्ञ की प्रक्रिया बाधित होती है तथा
समाज और राष्ट्र का विकास भी रुक जाता है अतः निरंतर यह प्रक्रिया चलती
रहे इसके लिए पितृयज्ञ, नरयज्ञ, ऋषि यज्ञ, देव यज्ञ और ब्रह्मयज्ञ की संकल्पना
समाज द्वारा धारित किया जाना आवश्यक है।
आज के अभ्यासों में केन्द्र की जीवन व्रती कार्यकर्ता श्वेता टाकलकर,
रविन्द्र जैन, सहनगर प्रमुख क्षितिज तोषनीवाल द्वारा श्वसन एवं शिथलीकरण के
अभ्यासों के साथ सूर्यनमस्कार का समूह में अभ्यास करवाया गया। डॉ. शर्मा ने
बताया कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के परिप्रेक्ष्य में नगर के प्रमुख स्थानों पर लगाए
जा रहे योग सत्रों की शृंखला में विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा अजमेर
द्वारा दस दिवसीय योग सत्र का आयोजन प्रातः 5.30 से 7.00 बजे तक गाँधी
भवन उद्यान, आदर्श नगर, अजमेर में किया जा रहा है इस योग सत्र का समापन
12 मई को होगा ।
(डॉ0 स्वतन्त्र शर्मा)
विभाग प्रमुख
9414259410