बाल साहित्य पर राष्ट्रीय सेमिनार में हो रहा सार्थक चिन्तन
अजमेर /इंडियन सोसायटी ऑफ ऑथर्स तथा राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संयुक्त तत्तावधान में सूचना केन्द्र में चल रही बाल साहित्य-लेखन और विकास पर केन्द्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में आज रविवार को हुए तीन विचार सत्रों में महत्वपूर्ण विषयों पर सार्थक चर्चा हुई। संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने बताया कि यह राष्ट्रीय सेमिनार वरिष्ठ बाल साहित्यकार मनोहर वर्मा के प्रति समर्पित की गई है। विविध सत्रों के दौरान अनेक साहित्यकारों ने श्री वर्मा के साहित्य का उल्लेख भी प्रमुखता के साथ किया।
प्रथम सत्र में बाल विकास में बाल साहित्य का योगदान विषय पर विचार मंथन हुआ। यह समेंकित विचार आया कि बच्चों के लिए साहित्य उपदेशात्मकता के स्थान पर उनमें सजगता और समझ बढ़ाने वाला होना चाहिए। वर्तमान समय में हर कोई बच्चों पर शिक्षा लादने और सिखाने पर आमादा है। बच्चा बच्चा न रहे यह कुचेष्टा हो रही है। बच्चों को थोड़ा मौजमस्ती करने की भी नैसर्गिक जरूरत है। फूल-पत्ते और परियों की कथाएं भी उनके लिए उतनी ही जरूरी हैं जितनी आधुनिक संसाधनों से युक्त वैज्ञानिक रचनाएं। आज के बच्चों को सहज उपलब्ध सूचना संसार से प्रभावित व्यवहार और बाल साहित्य के परस्पर संबंधों पर भी विचार होना चाहिए। बालसाहित्य ऐसा हो जो बच्चों में सृजनात्मकता और कौतुहल के गुण को विकसित करके सकारात्मक दृष्टि व विवेक प्रदान करे। प्रत्येक प्रसिद्ध व्यक्ति के बचपन का कोई पल ही उनके जीवन की प्रेरणा बन जाता है, उस विशेष पल को स्वाभाविक रूप से बच्चों को महसूस करने देना चाहिए। इस सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डॉ दिविक रमेश ने की तथा विशिष्ट अतिथि डॉ अनन्त भटनागर रहे। सत्र का प्रभावी संचालन दिल्ली की विख्यात अभिनेत्री व रचनाकार नमिता राकेश ने किया। वेदप्रकाश कंवर, पुष्पा सिन्हा, अमरनाथ त्यागी, राजन पाराशर, डॉ हरीश गोयल, अशोक मैत्रेय, लोकायत के संपादक बलराम, श्रीमती के.एल. सत्यार्थी ने आलोख पत्र प्रस्तुत किये।
द्वितीय सत्र में बाल साहित्य की वैश्विक सोच और भारतीय बाल साहित्य विषय पर खुलकर चर्चा हुई। यह विचार उभरकर सामने आया कि बाल साहितय की वैश्विक सोच सामान्य तौर पर यही है कि साहित्य मनोरंजक व सूजनात्मकता को निखारने में सहायक होना चाहिए। विश्वभर में बच्चों के लिखी जाने वाली विविध विधा की पुस्तकों में सक्रियता और क्रियाशीलता का तत्व दिखाई पड़ता है। विविध स्तर पर उनके व्यवहार और मूल्य पृथक हो सकते हैं। भारतीय बाल साहित्य में प्राचीन समय से ही घुले रहे नैतिक मूल्यों और परम्परागत संस्कारों की महत्ता को विश्वभर में सम्मान से देखा जाता है। पौराणिक कथाएं हों, जातक कथाएं या पंचतंत्र की कथाएं सभी में मनोरंजन का तत्व भी भरपूर है और साथ ही बच्चों में जीवन मूल्यों के प्रति जागरूक करने की क्षमता भी है। इस तथ्य को नवोदित बाल सहित्यकारों को ध्यान में रखना भी चाहिए। सत्र की अध्यक्षता अमरनाथ त्यागी ने की तथा संचालन डॉ चेतना उपाध्याय ने किया।
तृतीय संयुक्त सत्र में बाल पत्रिकाओं की दशा और दिशा तथा बच्चों में पढ़ने की आदत का विकास विषयों पर गहन विचार मंथन किया गया। सत्र में 1914 से 2016 तक प्रकाशित हुई बाल पत्रिकाओं और वर्तमान परिदृश्य पर विस्तार से चर्चा की गई। हिन्दी, अंग्रेजी और इतर भाषाओं में प्रकाशित बाल पत्रिकाओं के के विकास, उनकी सामग्री की उपयोगिता और लोकप्रियता के मानदण्ड पर उनकी उपयोगिता पर भी जानकारियां सामने आईं। वक्ताओं ने उन मूलभूत बातों पर गंभीर चर्चा की जिनसे बच्चों में पढ़ने की आदतों का विकास हो सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि अभिभावक घरों में पत्र-पत्रिकाओं को नियमित मंगवाना शुरू करें। स्वयं भी उन्हें पढें ताकि बच्चों में उनके प्रति उत्सुकता बन सके। यह भी कहा गया कि बड़ों की पुस्तकें बेशक केवल बड़ों के लिए होती हैं लेकिन बच्चों की पुस्तकें सबके लिए होती हैं। बच्चों को उपदेश देने के स्थान पर उनका विवेक जागृत करने की आवश्यकता है। बच्चों में सही और गलत की समझ को विकसित करने की आज जरूरत है। बच्चों को केवल सुनाएं ही नहीं उनकी भी सुनें। सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय ने की तथा संचालन मनोज अबोध ने किया। विशिष्ट अतिथि डॉ प्रताप सहगल रहे। सत्र में श्रीमती सुखवर्ष कंवर, डॉ राजन पराशर व श्रीमती शशि सहगल ने आलेख पत्र प्रस्तुत किये।
मुख्य संयोजक अनिल वर्मा ‘मीत‘ ने बताया कि सोमवार 29 फरवरी को प्रातः समापन समारोह का आयोजन होगा, जिसमें मुख्य अतिथि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो बी.एल. चौधरी होंगे तथा विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ शिक्षाविद् व साहित्यकार डॉ बद्रीप्रसाद पंचोली होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार डॉ दिविक रमेश करेंगे। समारोह में तीनांे दिन सेमिनार में हुए विस्तृत विचार विमर्श मे माध्यम से प्रत्यक्ष हुए महत्वपूर्ण बिन्दुओं की जानकारी दी जाएगी। प्रयास रहेगा कि संगोष्ठी का निष्कर्ष देशभर के बाल साहित्यकारों तक पहुँचाया जाए ताकि सभी लाभान्वित हो सकंे।
उमेश कुमार चौरसिया
संयोजक
संपर्क-9829482601