आधुनिक परिवेश में नैतिक मूल्यों को संजोना होगा

बाल साहित्य पर राष्ट्रीय सेमिनार का हुआ समापन
new 11अजमेर/अनेकानेक सूचनाओं की उपलब्धता लिये नये संचार माध्यमों के इस आधुनिक परिवेश में भी बाल साहित्यकारों को अपनी रचनाओं में नैतिक मूल्यों को संजोये रखना होगा। बदलते समय के अनुरूप लेखकों को भी अपनी शैली को रोचक बनाना होगा तभी बच्चे उनकी ओर आकर्षित हो सकेंगे। इसी बात को प्रमुखता से स्वीकारते हुए इंडियन सोसायटी ऑफ ऑथर्स तथा राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संयुक्त तत्तावधान में आयोजित बाल साहित्य पर केन्द्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज सोमवार को समापन हुआ। संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने बताया कि वरिष्ठ बाल साहित्यकार मनोहर वर्मा के प्रति समर्पित इस राष्ट्रीय सेमीनार में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उड़िसा, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडू व बंगाल प्रान्तों से विविध भाषाओं के 64 विख्यात बाल साहित्यकारों ने बाल साहित्य के लेखन और विकास पर सार्थक चर्चा करते हुए जो निष्कर्ष निकाला है उसे पूरे देश में पहुँचाया जाएगा।
समापन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष व प्रसिद्ध शिक्षाविद् प्रो. बी.एल.चौधरी ने कहा कि बच्चों के लिखा जाने वाली किताबें बच्चों की स्वाभाविक प्रवृति को विकसित करने में सहायक होनी चाहिए। बाल साहित्य ऐसा हो जिससे बच्चे की जिज्ञासा की संतुष्टि भी हो और वह स्वदेश के गौरव से परिचित भी हो सके। बच्चों का स्वभाव उनके पारिवारिक वातावरण के अनुसार ही बनता है। इसलिए अभिभावकों की यह महत्ती जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को सकारात्मक व भारतीय संस्कृति के अनुरूप वातावरण दें। बच्चों में पुस्तकें पढ़ने की प्रवृति को जागृत करें। देश में बहुत श्रेष्ठ बाल पुस्तकंे लिखी जा रही हैं किन्तु वे बच्चों तक पहुँच नहीं पा रही हैं। जिन बच्चों के पास पुस्तकें खरीदने के पैसे न हों पर पढ़ने की रूचि है तो उन्हें पुस्तकें उपलब्ध कराने पर भी सोचना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि चाहे जितने आधुनिक साधन आ जाएं पुस्तकों का महत्व सदैव बना ही रहेगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वेदविज्ञ साहित्यकार डॉ बद्रीप्रसाद पंचोली ने वेदों में वर्णित छोटे-छोटे सूक्तों का उदाहरण देते हुए कहा कि वेदकाल से लेकर वर्तमान तक हमेशा ही बाल साहित्य गतिमान रहा है। किसी शब्द का सही प्रयोग उसे कामधेनु बना सकता है,इसलिए साहित्यकारों को सार्थक दृष्टि से शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने राजस्थान के लोक में रची-बसी लघु बाल कथाओं का जिक्र करते हुए कहा भारतीय साहित्यिक परम्परा में बच्चों के स्वभाव से अनुकूलता बनाये रखने की प्रवृति रही है, उसे बनाये रखने की आवश्यकता है। समारोह का कुशल संचालन करते हुए मुख्य संयोजक अनिल वर्मा ‘मीत‘ ने बताया कि विविध सत्रों में बीस से अधिक आलेख पत्र पढ़े गए हैं उन्हें यथाशीघ्र स्मारिका के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रारम्भ में सोसायटी के अध्यक्ष प्रख्यात गजलकार व लेखक डॉ लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने स्वागत भाषण में संस्था के नियमित साहित्यिक आयोजनों की जानकारी दी।
समापन समारोह से पूर्व हुए विशेष लेखक-बाल संवाद सत्र में वरिष्ठ बाल सािहत्यकारों ने बच्चों के प्रश्नों के उत्तर दिए। बच्चों ने कुछ रचनाएं भी सुनाईं और साहित्य कैसा हो इस पर अपनी रूचि के बारे में भी खुलकर बताया। लेखकों ने विविध विधाओं की रचनाएं भी पढ़कर बच्चों के साहित्य के प्रति रूझान को आंका। इसमें टर्निंक पाइंट स्कूल के बच्चों का प्रमुख योगदान रहा। तीन दिवसीय संगोष्ठी की रिपोर्ट अशोक मैत्रेय ने प्रस्तुत की। राजन पाराशर, डॉ सुरेश उनियाल, डॉ सुरेशचन्द्रा, डॉ प्रेम जनमेजय, डॉ दिविक रमेश, नमिता राकेश, अर्चना चतुर्वेदी ने अतिथियों का शॉल व श्रीफल से अभिनन्दन किया। स्वागताध्यक्ष सोमरत्न आर्य ने आभार अभिव्यक्त किया। काव्य गोष्ठी में खूब जमा रंग-पूर्व संध्या पर आयोजित काव्य गोष्ठी में देशभर की विविध भाषायी कविताओं ने खूब रंग जमाया। प्रमिला भारती ने सस्वर सरस्वती वन्दना से शुरूवात की। प्रख्यात दोहाकार नरेश शंाडिल्य ने ‘जुगनू बोला चांद से उलझ न यूंबेकार। मंेैने अपनी रोशनी पाई नहीं उधार‘, शशिकांत ने ‘असलीयत आदमी की कब पता लगती है चेहरे से‘ शेर सुनाए। उमेश कुमार चौरसिया ने अजमेर का गीत सुनाकर सबको अजमेर के प्राकृतिक व सांस्कृतिक गौरव से परिचित कराया। हास्य कवि रासबिहारी गौड़ ने मन को छू लेने वाली कविता सुनाई, डॉ अशोक मैत्रेय ने मुक्तकों का पाठ किया तथा अनन्त भटनागर ने आधुनिक कविता सुनाई। उर्मिला‘उर्मि‘, प्रीति ‘सरू‘, डॉ चेतना उपाध्याय, प्रदीप गुप्ता इत्यादि ने भी कविताएं सुनाई। अध्यक्षता भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक दिनेश मिश्र ने की तथा संचालन अनिल वर्मा मीत ने किया।
उमेश कुमार चौरसिया
संयोजक
संपर्क-9829482601

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