पाठ्यक्रम में जुड़ेगी संतों की जीवनी -प्रो. देवनानी

महर्षि दयानन्द सरस्वती में सिंधु शोध पीठ द्वारा मातृभाषा का महत्व विषय पर संगोष्ठी आयोजित
asअजमेर, 12 मार्च। महर्षि दयानन्द सरस्वती के सिंधु शोध पीठ द्वारा मातृभाषा का महत्व विषय पर आयोजित संगोष्ठी में शिक्षा राज्य मंत्राी प्रो. वासुदेव देवनानी ने कहा कि मातृभाषा से राष्ट्र प्रेम पैदा होता है। मातृ भाषा वह नदी है जिसके सदा सलिला रहने से व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़े रखती है।
प्रो. देवनानी ने कहा कि भाषा के इतिहास, साहित्य तथा बोलने वाले व्यक्तियों द्वारा आपसी विचार विमर्श करने से भाषा की उत्तरोत्तर उन्नति होती रहती है। भाषा में उत्पन्न विविधता उसे आगे बढ़ाने के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। भाषा एक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहा कि मां और मातृभाषा का महत्व बताने की आवश्यता नहीं होती है। अन्य देशी एवं विदेशी भाषाएं मातृभाषा के अस्तित्व को नष्ट करने के लिए प्रयासरत रहती है। इससे हिंगलीश की तरह एक मिली जुली भाषा तैयार हो जाती है। जिसे बोलने वालों की संस्कृति में भी मिलावट आने लगती है। अन्य भाषाएं ज्ञानवर्द्धन के लिए पढ़ना ठीक है लेकिन उन्हें स्टेटस सिम्बल बनाना गलत है। अपनी मातृ भाषा के द्वारा जो मौलिक अभिव्यक्ति प्रकट होती है। वह अन्य भाषा में बोलने पर नकल महसूस होती है। व्यक्ति अपने अन्दर के भाव और प्रतिभा को अपनी मातृ भाषा में ही व्यक्त करे तो उसके व्यक्तित्व में निखार आता है।
प्रो. देवनानी ने राष्ट्र के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले वीर शहीदों, साहित्यकारों एंव महापुरूषों की जीवनियों को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए सरकार के प्रयासों के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि शहीद हेमु कालानी, महाराजा दाहरसेन, वीर संत कंवर राम, प्रेम प्रकाश मण्डल के संस्थापक स्वामी टेंऊराम तथा श्री चन्द्र महाराज की जीवनी एवं कृतित्व के बारे में आगामी सत्रा से विद्यार्थी पढ़ सकेेंगे।
उन्होंने कहा कि सिंधु शोध पीठ के माध्यम से सिंधी भाषा और संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार होगा। नई पीढ़ी सिंधु निवासियों के पुरूषार्थ और पराक्रम से अवगत होगी। सिंधु प्रदेश के भक्तों, संतों एवं साहित्यकारों द्वारा मानव जाति के विकास में किए गए योगदान के बारे में सभी जान पाएंगे।नई पीढ़ी के जज्बातों में सिंध को जीवित रखने में शोध पीठ अपना महत्वपूर्ण योगदान देगी। मातृ भाषा के विकास से ही अखण्ड सांस्कृतिक भारत का निर्माण संभव है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी ने कहा कि सिंधु शोध पीठ की उपस्थिति विश्वविद्यालय के लिए गर्व का विषय है। विश्वविद्यालय द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख रूपयों की राशि शोध एंव प्रकाशन पर खर्च की जा रही है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा के विकास के लिए हमें अंग्रेजी के मनोविज्ञानिक दबाव से बाहर आना होगा।
सिंधु शोध पीठ की निदेशक प्रो. लक्ष्मी ठाकुर ने कहा कि सिंधुवासी भारत में केवल अपनी बोली लेकर आए थे। इसी के बल पर वर्तमान में सिंघु संस्कृति प्रफुल्लित हो रही है। हमारी मातृभाषा मां की तरह होती है जो बिना मांगे सबकुछ दे सकती है। उन्होंने कहा कि पीठ द्वारा 14 अगस्त को सिंधु स्मृति दिवस मनाए जाने तक शोध पत्रिका का प्रकाशन भी किया जाएगा। जुलाई माह में हिन्दूस्तान में सिंधुओं का योगदान विषय पर काॅनफ्रेंस का भी आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर सिंधी साहित्य से जुड़े विद्वान एवं शिक्षक उपस्थित थे।

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