जल से भावनात्मक जुड़ाव के लिए किया मेडिटेशन

untitledअजमेर,19 मार्च। महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्विद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग व इको डवलपमेंट एंड रिसर्च सैल अहमदाबाद के संयुक्त तत्वाधान में एक दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन महिला एवं बाल विकास मंत्राी श्रीमति अनिता भदेल द्वारा किया गया। इसमें जल के साथ भावनात्मक जुड़ाव के लिए संभागियों ने हार्टफुलनेस पद्धति से मेडिटेशन किया।
कार्यशाला में मुख्य अतिथि श्रीमति अनिता भदेल ने भी प्रो. माथुर के व्याख्यान का पुरजोर समर्थन किया व मुख्यमंत्राी जल स्वावलंबन अभियान को जन आंदोलन का रूप देने की आवश्यकता बताई। उन्होंने ‘जल‘ को प्रकृति का अनुपम उपहार बताया और कहा कि जल का संरक्षण हर जिम्मेदार नागरिक का परम कत्र्तव्य है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में बारिश कम होने के कारण जल संरक्षण और भी जरूरी हो जाता है। उन्होंने सरकार की बूंद-बूंद सिंचाई योजना को भी विस्तृत रूप से बताया और कहा कि किसान खुशहाल होने पर ही देश में खुशहाली आ सकती है। जल सरंक्षण एक अति संवेदनशील मुद्दा है और इसके लिए जल चेतना, जन भागीदारी अति आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोढ़ानी ने पेयजल की भयावह स्थिति से अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि आजादी से अब तक देश की आबादी 3 गुना हो गई और पानी की उपलब्ध मात्रा केवल एक तिहाई ही रह गई है। उन्होंने विश्व स्तर पर कुल पानी का .007 प्रतिशत हिस्सा ही मानव उपयोगी बताया। उन्होंने बताया कि संसार भर की कुल आबादी का 16 प्रतिशत हिस्सा भारत में है। चूंकि जल संरक्षण नहीं होने से वर्षा का 18 प्रतिशत जल ही प्रयोग में आता है 82 प्रतिशत व्यर्थ बह जाता है अतः इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होेंने कहा कि जल संकट आर्थिक विकास का परिणाम है और 2033 तक लगभग 60 प्रतिशत जल खत्म हो जाएगा। अतः इसका सदुपयोग अति आवश्यक है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. के.सी. शर्मा ने अपने व्याख्यान में अजमेर की झीलों की दशा के बारे में बताया कि कृषि में उपयोग लिए जा रहे कीटनाशकों से पानी व कृषि उत्पादों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने आनासागर, बूढ़ा पुष्कर व पुष्कर तथा सांभर झील पर किए गए शोध परिणामों की विस्तृत जानकारी दी।
क्योटो, जापान के कुमाजावा टेरूकाजू ने आॅनटोलाॅजी तकनीक पर आधारित सामाजिक-पारिस्थितिकी तंत्रा की सामूहिक पहुंच पर विस्तृत व्याख्यान दिया। तकनीकी का उपयोग कर प्राकृतिक स्त्रोतों के बचाव व प्रबन्धन पर जोर दिया एवं जन भागीदारी को महत्वपूर्ण बताया।
पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. प्रवीण माथुर ने कार्यशाला की विस्तृत जानकारी के साथ जल स्वावलंबन के बारे में बताया। उन्होंने अपने व्याख्यान में जल के खत्म होते स्त्रोतों के पुर्नभरण व नमभूमि की उपयोगिता पर विशेष बल दिया। उन्होंने अजमेर की आनासागर झील (नमभूमि) की दुर्दशा व उसको बचाने के परम्परागत तरीकों की जानकारी भी दी। उन्होंने विकास के चलते विज्ञान के सहयोग से जल स्वावलंबन की तकनीकी जानकारी भी दी और राजस्थान सरकार द्वारा चलाए जा रहे मुख्यमंत्राी जल स्वावलंबन अभियान के द्वारा जल स्त्रोतों पर किए जाने वाले कार्यों के बारे में बताया।
वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बी.पी. सारस्वत ने भी जल को सार्वजनिक सम्पत्ति बताया व इसको बचाने के सामूहिक प्रयासों पर बल दिया। उन्होंनंे कहा कि हमें उन सब लोगों तक पानी पहुंचाना है जो अपने निवास स्थान से दूर-दराज के क्षेत्रों से पीने का पानी लेकर आते हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान का क्षेत्राफल देश के कुल क्षेत्राफल का 10 प्रतिशत है परन्तु पेयजल की उपलब्धता केवल 1 प्रतिशत है। इसलिए ‘जल है तो कल है‘ को आत्मसात करना होगा। उन्होंने राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्राी जल स्वावलंबन अभियान की विस्तृत जानकारी कार्यशाला में संभागियो को प्रदान की।
जवाहर लाल नेहरू मेडिकल काॅलेज के सहायक आचार्य डाॅ. विकास सक्सेना ने कार्यशाला में बताया कि पानी का प्रभाव हमारी भावना पर और हमारी भावनाओं का प्रभाव पानी पर पड़ता है। हम किस भावना से पानी को ग्रहण करते हैं व उसे किस प्रकार पीते हैं उसका बहुत गहरा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है क्योंकि हमारा शरीर 72 प्रतिशत पानी का ही बना हुआ है। उन्होंने इस अवसर पर हार्टफुलनेस पद्धति से ध्यान करवाकर रिलेक्ससेशन द्वारा संभागीय को मेडिटेशन के बारे में अनुभूति करवायी।
इसी क्रम में डाॅ. मानसी बाल भार्गव ने अपने व्याख्यान में कहा कि अच्छी अर्थव्यवस्था स्वच्छ पर्यावरण से ही संभव है। किसी भी व्यवस्था की सफलता उसके ज्ञान प्रबन्धन में निहित है। उन्होंने समस्या का केन्द्र आम व्यक्ति ही बताया और समाधान भी आम व्यक्ति में ही निहित होना बताया। उन्होंने कहा कि स्मार्ट सिटी, स्मार्ट आनासागर से ही होगी, स्मार्ट आनासागर, स्मार्ट लोगों से ही होगा। उन्होंने अजमेर वासियों को आगे आकर अपने पास संग्रहित ज्ञान को एक साथ लाने के लिए आमंत्रित किया और इसे ही आनासागर संरक्षण की शुरूआत बताया।
कार्यशाला के तकनीकी सत्रा में केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के डाॅ. देवेश शर्मा ने जल उपयोग तथा जलग्रहण क्षेत्रा में होने वाले परिवर्तन पर अपने विचार रखे। उन्होंने जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभाव से सहभागियों को रूबरू करवाया।
जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अधिशाषी अभियन्ता श्री अनिल जैन ने जल प्रबनधन में नई सोच, नवाचार पर बल देते हुए सिंगापुर में किए जा रहे प्रभावी जल प्रबंधन की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आज बढ़ती आबादी, बढ़ती जल की मांग, प्रदूषण व अन्य पर्यावरणीय प्रभावों के चलते शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट जल को शुद्धिकृत कर पुनः उपयोग में लेना ही एक मात्रा विकल्प है जो आने वाले वर्षांंे में जल संकट को दूर करने में सहायक होगा। प्राकृतिक रूप से उपलब्ध उपयोगी जल के स्त्रोत सीमित होते जा रहे हैं। इसके लिए अत्यंत प्रभावी जनसहभागिता की आवश्यकता भी होगी।
तकनीकी सत्रा जयपुर के अमित खण्डेलवाल ने सरकार, समाज, पानी विषय पर अपना शोध पत्रा प्रस्तुत किया।

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