धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वाले धर्म विरोधी

dargaah deewanअजमेर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिष्ती के वंशानुगत सज्जादानशीन धर्म प्रमुख एवं दरगाह दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन अली खान ने कहा कि आतंकवाद और धर्म के बीच किसी संबंध को निश्चित तौर पर खारिज करना चाहिए। धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वाले धर्म विरोधी हैं। और हमें सूफीवाद के संदेश का व्यापक प्रचार प्रसार करना चाहिए जो इस्लाम एवं उच्चतम मानव मूल्यों पर खरा उतरता है। यह एक ऐसा काम है जिसे राज्यों, समाजों, संतों, विद्वानों, धर्म प्रमुखोे एवं सूफियों को निश्चित तौर पर करना होगा तभी समाज से आंतकवाद जैसी घिनौनी साजिषों का पर्दाफाष होगा।
दरगाह दीवान ख्वाजा साहब के 804 सालाना उर्स के समापन की पूर्व संध्या पर खानकाह शरीफ में पंरपरागत रूप से आयोजित होने वाली महफिल के बाद आयोजित वार्षिक सभा में देष की विभिन्न दरगाहों के सज्जादगान, सूफियों, एवं धर्म प्रमुखों, को संबोधित कर रहे थे। उन्होने कहा कि आतंकवादी बेगुनाहों की जान लेने को जिहाद बताते हैं और लोगों गुमराह करके नरसंहार करवाया करते हैं हकीकत में यह इस्लाम नहीं लेकिन कैसे समझाया जाए लोगों को जब दुनिया को दिख यही रहा है कुछ गिनती के आतंकवादी ऐसा करते रहे और इस्लाम बदनाम होता रहा है और जो लोग मजहब के नाम पर मासूमों की हत्याऐं करते है मुसलमानों और इस्लाम को उनसे बड़ा नुकसान कोई नहीं पहुंचाता।
उन्होने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विष्व के चिष्तिया सूफियों को तवज्जो देने की सराहना करते कहा की नरेन्द्र मोदी इतिहास को दोहरा रहे है जिस तरह मुगल और मराठा शासक और अग्रेजों ने सूफियों को मान सम्मान देकर समाज में उचित स्थान दिया आज आजाद भारत में सरकार भी वर्तमान परिवेष मे सूफियों की प्रासंगिता पर जोर दे रही है। क्योकि सूफी समुदाय ही बिना धार्मिक भेदभाव के सबको साथ लेकर चलने की वकालत करता है।
दरगाह दीवान ने कहा कि गरीब नवाज के उर्स में सभी धर्मों सम्प्रदायों के जायरीनों का बिना भेद भाव के शामिल होना अनेकता में एकता की ऐसी अनूठी मिसाल है जो विष्व में और कहीं नहीं मिलती जिससे यह साबित हो जाता है कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के सूफीवाद के प्रचार-प्रसार से इन्सानियत मोहब्बत का पैग़ाम मिला है इसी लिये सूफी प्रेम का मार्ग के साथ मनुष्य की आध्यात्मिकता को प्रकट करने वाली जीवनशैली है। सूफीवाद ने इस्लाम के अन्तर्गत एक बुद्धिजीवी परम्परा की शुरुआत की और उसका विस्तार किया।
सज्जादानषीन ने इस्लाम का उदारवादी चेहरा प्रस्तुत करते हुऐ कहा कि सूफी मुसलमान हमेशा से उदारवादी हैं, जो इस्लाम की सबसे प्यारी पहचान है, सूफी परम्पराओं को लेकर आज भी इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ खड़े है इस्लाम में भी कट्टरपंथी लोगों का बोलबाला रहा है, लेकिन नरमपंथी सूफीवाद ने उन्हें हमेशा पराजित किया है इसी लिये उदारवादी मुस्लिम आज पहाड़ जैसी चुनौती का सामना कर रहे है। उन्होने कहा कि अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह देश में सूफीवाद का बड़ा केंद्र हैं यहां से पूरी दुनिया में इस्लाम के शांति और भाईचारे का पैगाम जारी है। इतना ही नहीं इस्लाम के नैतिक मूल्यों को स्थापित करने और आतंकवाद के खिलाफ वैचारिक लड़ाई में सूफीवाद अहम भूमिका निभा सकता है।
दीवान ने कहा कि सूफी संतो के पास आज भी इस्लाम के प्रचार प्रसार का पुरातन तरीका है जबकि कट्टरवाद जेहादी मुस्लिम के पास आधुनिक इन्टरनेट का पूरा साजो सामान और हथियार अब उदारवादी मुस्लिम जगत को नई रणनीति के बारे सोचना होगा उन्होने उपस्थित धर्म प्रमुखों, सज्जादगान और सूफियों, मषायखों का आव्हान किया कि कट्टरवादी मुस्लिम का चेहरा उनकी विचारधारा को दुनिया के सामने लाकर इसका पर्दाफाश करना चाहिऐ। उन्होने कहा कि वर्तमान में इस्लाम के नाम पर जहर फैला रहे लोगों से आम मुसलमान को सतर्क रहने की जरुरत है वहीँ आम मुसलमान को इस्लाम विरोधी ताकतों से लड़ने का जज्बा भी खोना नहीं चाहिए।
सूफीवाद को धर्मान्तरण की बुनियाद बताने वालों की दलीलों को खारिज करत हुऐ दरगाह दीवान ने कहा कि धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को गरीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए। ख्वाजा के दर पर हिन्दू हों या मुस्लिम या किसी भी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी जियारत करने आते हैं। उन्होने कहा कि हजरत गरीब नवाज ने कभी भी अजमेर में इस्लाम का प्रचार-प्रसार नहीं किया। यहां उन्होंने अपने जीवन के अंत तक रहकर हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता कायम रखते हुए गरीब, लाचार, अपाहिजों और दुखियों की सेवा की। हुजूर गरीब नवाज ने यहां गरीबों की मुश्किलों को दूर किया इसीलिए उनको ख्वाजा गरीब नवाज कहा जाने लगा।
उन्होने कहा कि सूफियों के प्यार भरे इस्लामी सन्देश की ही ऐसी कशिश है कि आज भी देश में ऐसी सैंकड़ों दरगाहें हैं जिनकी देख रेख गैर मुस्लिम कर रहे हैं। सूफियों की पे्रम करूणा की वजह ही है कि भारत से पूरी दुनिया में इस्लाम के शांति और भाईचारे का पैगाम का प्रसार हुआ है। इस लिऐ सूफी परंपरा का साम्प्रदायिकरण करना गलत है। उप्होने कहा कि सूफीवाद ने बड़ी ही कोमलता और प्रेम से स्वयं को पूरे विश्व में स्थापित कर लिया है। भारत में इसे लाने का श्रेय महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को जाता है, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी अजमेर में बितायी और आज भी अजमेर शरीफ को धर्म-सम्प्रदाय के भेद-भाव से परे उनके पवित्र दरगाह के शहर के रूप में ही जाना जाता है।
इस पारंपरिक आयोजन में देष प्रमुख चिष्तिया दरगाहों के सज्जादगान व धर्म प्रमुखों में शाह हसनी मियां नियाजी बरेली शरीफ, मोहम्मद शब्बीरूल हसन गुलबर्गा शरीफ कर्नाटक, अहमद निजामी दिल्ली, सैयद तुराब अली हलकट्टा शरीफ आध्रप्रदेष, सैयद जियाउद्दीन अमेटा शरीफ गुजरात, बादषाह मियां जियाई जयपुर, सैयद बदरूद्दीन दरबारे बारिया चटगांव बंगलादेष, सहित भागलपुर बिहार, फुलवारी शरीफ यु.पी., उत्तरांचल प्रदेष से गंगोह शरीफ दरबाह साबिर पाक कलियर के अलीषाह मियां, गुलबर्गा शरीफ में स्थित ख्वाजा बंदा नवाज गेसू दराज की दरगाह के के सज्जदानषीन सैयद शाह खुसरो हुसैनी, नायब सज्जादानशीन सैयद यद्दुलाह हसैनी, दरगाह सूफी कमालुद्दीन चिष्ती के सज्जानषीन गुलाम नजमी फारूकी, नागौर शरीफ के पीर अब्दुल बाकी, दिल्ली स्थित दरगाह हजरत निजामुद्दीन के सैयद मोहम्मद निजामी, सहित देशभर के सज्जादगान मौजूद थे।

द्वारा सज्जादनशीन एवं मुस्लिम धर्म प्रमुख दरगाह दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन अली खान अजमेर शरीफ।

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