योग में शोध को बढ़ावा देने की आवष्यकता – प्रो सोडानी

DSC_0060DSC_0130प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन की सफलता के पश्चात् योग के क्षेत्र में नवीन अनुसंधानों के लिए आज संपूर्ण विष्व भारत की ओर देख रहा है। आज आवष्यकता इस बात की है कि योग के क्षेत्र में शोध को अधिकाधिक बढ़ावा दिया जाए। स्वास्थ्य को लेकर विष्व स्तर पर तय मानकों तक पहुंचने में हमें समय लग सकता है किंतु भारत में प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी शुल्क के स्वस्थ रहने का उपाय केवल योग ही दे सकता है। यदि व्यक्ति स्वस्थ रहता है तो उसकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है। विद्यार्थी महत्वाकांक्षी हो सकता है किंतु स्वास्थ्य की कीमत पर धन कमाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। उक्त विचार महर्षि दयानन्द सरस्वती विष्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 कैलाष सोडानी ने द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के परिप्रेक्ष्य में विष्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा संपोषित ‘योग द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य का उन्नयन’ विषय पर एक कार्यषाला के उद्घाटन के अवसर पर व्यक्त किए। इस कार्यषाला का आयोजन दिनांक 6,7 एवं 9 मई 2016 को महर्षि दयानन्द सरस्वती विष्वविद्यालय, अजमेर के पतंजलि भवन में किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में केवल दयानन्द विष्वविद्यालय द्वारा ही योग को लेकर अभूतपूर्व कार्य किया जा रहा है एवं एक स्वतंत्र विभाग की स्थापना करते हुए इस वर्ष में डेढ़ करोड़ रूपये के निर्माण कार्यों की स्वीकृति प्रदान की गई है जिससे नैचुरोपैथी की संपूर्ण इकाई का प्रारंभ अगले सत्र से करने की दिषा में विष्वविद्यालय प्रयासरत है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वेदान्ता ग्रुप के इकाई प्रमुख के सी मीणा ने कहा कि आज योग के माध्यम से वर्तमान जीवन के खानपान की अषुद्धियाँ, प्रदूषण इत्यादि को दूर किया जा सकता है। अपनी जीवन शैली को सुधारने के लिए योग की आवष्यकता आज सिद्ध की जा चुकी है।
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता के रूप में बोलते हुए दिल्ली से पधारे स्वामी ओंकार चैतन्य ने कहा कि जीवन में अज्ञान ही अंधकार है। अज्ञान के कारण ही हम अपने स्वरूप की विस्मृति कर देते हैं। अज्ञान को दूर करने का मार्ग योग बताता है। जब तक हम शरीर और मन के स्तर पर जीते हैं तभी तक हम भ्रम में रहते हैं। उन्होंने आत्मा के साक्षात्कार का मार्ग बताते हुए कहा कि आत्मा से सीधा साक्षात्कार संभव नहीं है क्योंकि हम स्वयं ही आत्मा हैं। योग के माध्यम से चित्त की वृत्तियों को दूर करते हुए ही इसे प्राप्त किया जा सकता है।
कार्यषाला के प्रथम तकनीकी सत्र योग और आधुनिक जीवन को संबोधित करते हुए विष्वविद्यालय के खाद्य एवं पोषण विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. गुलराज कौर कलसी ने कहा कि जीवन में आहार एवं विहार पर समुचित नियंत्रण करते हुए योग के यथोचित लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।
द्वितीय तकनीकी सत्र में जयपुर स्थित योगा पीस फाउण्डेषन के अध्यक्ष डॉ. ढाकाराम ने ताड़ासन का प्रायोगिक अभ्यास कराते हुए उससे प्राप्त लाभों का जीवन्त अनुभव प्रतिभागियों को कराया। उन्होंने कहा कि सुखी व्यक्ति विस्तार लेता है और दुखी व्यक्ति संकुचित होता है। इस जगत के निर्माण के बाद ईष्वर प्रसन्न हुआ इसी का प्रमाण है कि एक महीने का बालक भी अकारण ही हंसता रहता है। मनुष्य की प्रकृति सदैव प्रसन्न रहने की ही बनी है क्योंकि प्रत्येक मनुष्य अपने आप में ईष्वर की एक विलक्षण अनुकृति है।
कार्यक्रम निदेषक ए जयन्ती देवी ने बताया कि इस कार्यषाला का उद्देष्य जन-सामान्य को योग में हो रहे नवीन प्रयोगों की जानकारी देना तथा योग के संबंध में विभिन्न भ्रांतियों का निराकरण करना है। कार्यक्रम में विष्वविद्यालय से प्रो. मनोज कुमार, प्रो. षिव प्रसाद, प्रो. के सी शर्मा, प्रो भारती जैन, डॉ. अष्विनी तिवारी, सूरज मल राव तथा अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन योग विभाग के डॉ. लारा शर्मा ने किया।
कार्यषाला निदेषक जयन्ती देवी ने बताया कि 7 मई को प्रातः 8 बजे से कार्यषाला प्रारंभ होगी जिसमें योग से संबंधित विभिन्न प्रायोगिक एवं सैद्धांदिक विषयों पर विषय विषेषज्ञों का मार्गदर्षन प्राप्त होगा।
डॉ. लारा शर्मा
9414499727

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