१३३वाँ तीन दिवसीय ऋषि मेले का भव्य शुभारम्भ

dsc_0299दिनांक ४ नवंबर २०१६ शुक्रवार- प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी भारतीय नवजागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द का १३३वाँ बलिदान समारोह महर्षि की तपस्थली ऋषि उद्यान, अजमेर में ‘ओ३म्Ó ध्वजारोहण के साथ तीन दिवसीय ऋषि मेले का भव्य शुभारम्भ हो गया।
१०.०० बजे ध्वजारोहण पश्चात् मेले के उद्घाटन सत्र के अपने संबोधन में परोपकारिणी सभा के उपप्रधान और गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के उपकुलपति वैदिक विद्वान् डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने कहा भारतीय संस्कृति में मेलों के द्वारा प्रेरक और जनहितकारी वैदिक और ऋषियों के संदेशों का प्रचार-प्रसार किया जाता है। इस अवसर पर हम सब आज संकल्प लें कि हम वैदिक आदर्शों को अपने जीवन में धारण कर जन-जन में इनका प्रचार करते हुये विश्व का कल्याण करेंगे। महर्षि दयानन्द का सम्पूर्ण जीवन अंधविश्वास निवारण और वैदिक ज्ञान प्रकाश के द्वारा जन कल्याण के लिये समर्पित था। आज महर्षि के विश्व कल्याण के अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये कृत संकल्प होने का दिन है।
इससे पूर्व प्रात: ५.०० बजे से ६.३० बजे तक आसन-प्राणायाम-ध्यान-संध्या का कार्यक्रम चला। ३१ अक्टूबर से ही ऋषि उद्यान की भव्य यज्ञशाला में प्रात: सायं दो सत्रों में चल रहे ”ऋग्वेद पारायण यज्ञÓÓ के आज ५वें दिन यज्ञ के ब्रह्मा सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान् आचार्य सत्यानन्द वेदवागीश ने अपने उद्बोधन में कहा कि जातवेद सर्वव्यापक ईश्वर सभी उत्पन्न और प्रसिद्ध पदार्थों को यथार्थत: जानता है और उनका विचारपूर्वक निर्माता भी है। ऋग्वेद की ‘औषधि सूक्तÓ (१० वें मंडल के) की व्याख्या हुये कहा कि अवैदिक पाप कर्म करने से ही रोग होता है और आयु क्षीण होती है। असत्य भाषण, अखाद्य आहार और दुराचरण से रहित होने पर हम वास्तविक नैरोग्य को प्राप्त होते हैं।
वेदानुसार जीवन-यापन करने से हम सदा निरोग और स्वस्थ रहते हैं। दान की महिमा को प्रतिपादित करते हुये आपने कहा कि सुपात्र को दान देने वाले उत्तम स्वास्थ्य और अमरत्व को प्राप्त करते हैं।
प्रात: यज्ञोपरांत वेद प्रवचन के अपने उपदेश में प्रख्यात वेद विदुषी आचार्या डॉ. सूर्यादेवी चतुर्वेदा ने कहा कि अविद्याग्रस्त ही इन्द्रियों के विषयों में फँस जाते हैं क्योंकि वे उनके दु:खद परिणाम को नहीं जानते, परन्तु विद्वान् सुख के मूल ईश्वर को जान उसके आदेश का पालन करते हुये अपने को इन्द्रिय-विषयों से ऊपर उठा लेता है। महर्षि मनु के अनुसार सातों इन्द्रियों में से यदि एक भी विचलित हो जाय तो हमारी सारी प्रज्ञा का क्षरण होने लगता है, जैसे जल से भरे घड़े के एक छिद्र से ही उसका सारा जल गिर जाता है। जब हमसे प्रज्ञा दूर हो जाती है तो हम विषयों में फँस जाते हैं। प्रज्ञावान पुरुष अपनी नींद पर, क्रोध पर और इन्द्रियों पर संयम प्राप्त कर ब्रहनवर्चस प्राप्त कर जीवन को सफल कर लेता है।
कल सायंकालीन यज्ञ के मुख्य यजमान अमेरिका से पधारे क्राइम साईबर विशेषज्ञ श्री रजत आर्य थे। आज प्रात: कालीन यज्ञ के यजमान गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति सपत्नीक डॉ. सुरेन्द्र कुमार और दैनिक भास्कर पत्र समूह के उच्चाधिकारी श्री जगदीश जी शर्मा थे।
वेदगोष्ठी का उद्घाटन- आज ऋषि उद्यान के सरस्वती भवन में ३ दिनों तक चलने वाली ‘वेदगोष्ठीÓ का उद्घाटन महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, अजमेर के उपकुलपति शिक्षाविद् प्रो. कैलाश सोडानी ने किया। गोष्ठी के संचालक कुरुक्षेत्र (हरियाणा) विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार ने कहा कि गोष्ठी का उद्देश्य ऋषियों की दृष्टि से वैदिक ज्ञान का प्रकाश कर विश्व कल्याण करना है। शिक्षाविद डॉ. सोडानी ने भारतीय नवजागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द की चर्चा करते हुये कहा वेद विद्या को पुन: प्रकाशित करने हेतु स्वयं ईश्वर ने विश्व कल्याण हेतु उनके हृदय को प्रकाशित किया।
वेदगोष्ठी में अपना विचार व्यक्ति करते हुये डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि ऋषि उद्यान में लगातार ३० वर्षों से ऋषि मेले पर वेदगोष्ठी का आयोजन होता आ रहा है। इसमें शोध पत्रवाचक विद्वानृ को पारितोषिक दिया जाता है और अंत में उनका संकलन प्रकाशित किया जाता है। इस गोष्ठी का विषय है-”महर्षि दयानन्द दर्शन की वेदमूलकताÓÓ वैदिक ज्ञान के आधार पर ही हम अन्धविश्वास व सामाजिक कुरीतियों को दूर कर मानव निर्माण और राष्ट्र निर्माण कर सकते हैं। वैज्ञानिक आईन्सटीन भी वैदिक सिद्धान्तों के प्रशंसक थे।
महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में दयानन्द शोध पीठ स्थापित।
डॉ. सोडानी द्वारा- महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में ‘दयानन्द शोधपीठÓ स्थापित हुई- इस घोषणा पर सभागार हर्ष मिश्रित करतल ध्वनि से गूंज उठा।
देश के सभी विश्वविद्यालयों में दयानन्द शोध पीठ स्थापित करने के लिये प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के प्रस्ताव पर हर्ष व्यक्त करते हुये प्रधानमन्त्री को शुभकामनायें दी गईं। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. सूर्यादेवी चतुर्वेदा ने की।
चतुर्वेद कण्ठस्थीकरण वेद प्रतियोगिता का उद्घाटन- ऋषि उद्यान के अनुसन्धान भवन में हुआ । परोपकारिणी सभा के मन्त्री श्री ओम्मुनि ने कहा कि इस बार प्रतियोगिता के विजेताओं को २ लाख का पुरस्कार दिया जायेगा।
गोरक्षा मानव रक्षा है- मुख्य पंडाल में ११.०० बजे से १२.३० बजे तक ”गाय का महत्त्व और गोरक्षा की आवश्यकता क्यों?ÓÓ विषय पर गहन परिचर्चा चली। परिचर्चा में बोलते हुये ऐतिहासिक गुरुकुल झज्झर, हरियाणा के प्रधानाचार्या ने यजुर्वेद को उद्घृत करते हुये कहा कि- मानव-मात्र के लिये गाय जितना उपकारी अन्य कोई भी प्राणी नहीं है। गाय आर्य वैदिक संस्कृति की धूरी, कृषि और आर्थिक जीवन का आधार है।
गाय एक चलता-फिरता औषधालय है। हरियाणा गोरक्षादल के अध्यक्ष आचार्य योगेन्द्र जी ने कहा कि सिर्फ भारतीय नस्ल की गायें ही औषधीय गुणों से भरपूर और मानव हितकारी है। उन्होंने गो रक्षा को मानव रक्षा के लिये आवश्यक बताया। अन्य विद्वानों ने गो दूग्ध, दही, मूत्र, गोबर आदि के मानव उपयोगी औषधीय गुणों की चर्चा की जिनका अनुमोदन आज आधुनिक विज्ञान भी कर रहा है।
२.०० से ५.०० बजे तक ”राष्ट्र निर्माण में आर्य समाज की भूमिकाÓÓ विषय पर बोलते हुये प्रो. डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार ने कहा कि जन-जन में वेद ज्ञान का प्रसार कर ही हम कुरीतियों, अन्धविश्वासों और पाखण्डों को दूर कर राष्ट्र निर्माण कर सकते हैं। आज आर्य समाज को सबके लिये अनिवार्य व समान शिक्षा, स्पृश्यता-निवारण, जातिवाद, क्षेत्रवाद की जगह मानव एकता के लिये प्रयास करना चाहिये। सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. राजेन्द्र जी जिज्ञासु, अबोहर, पंजाब ने कहा कि वैदिक ज्ञान और दण्ड व्यवस्था से ही विश्व से आतंकवाद का नाश होगा। परिचर्चा अभी जारी है।
पांडुलिपि-पुस्तक प्रदर्शनी- आज ऋषि उद्यान में दुर्लभ ऐतिहासिक महत्त्व की पुस्तकें, पाण्डुलिपियों, महर्षि दयानन्द के हस्तलिखित ग्रन्थ, महर्षि के खडाऊ, रेत घड़ी आदि दैनिक उपयोग की वस्तुओं की भव्य प्रदर्शनी लगाई गई।
पुस्तक प्रकाशकों-विक्रेताओं की दुकानें सजी- दिल्ली आदि विभिन्न स्थानों से देश के चोटी के पुस्तक प्रकाशक और विक्रताओं ने अपनी-अपनी दूकानें सजा ली हैं। इनमें वेद, ऋषि ग्रन्थ, उच्चकोटि के ज्ञानवद्र्धक साहित्य और स्वामी दयानन्द की पुस्तकें उपलब्ध है। इन्हें खरीदने वालों की भी खासी तादाद है। पुस्तकों के अलावा यज्ञादि से जुड़े बरतन, हवन कुंड, स्टीकर, पोस्टर, औषधियाँ आदि भी खरीदे जा रहे।
रात्रि ८.०० से १०.०० बजे तक ”धर्मान्तर समस्या और समाधानÓÓ विषय पर परिचर्चा चलेगी।
दिनंाक ५ नवम्बर के कार्यक्रम
५.०० से ६.३० बजे तक- आसन प्राणायाम-ध्यान संध्या ७.०० से ९.०० बजे तक-यज्ञ, वेद पाठ
९.०० से ९.३० बजे तक- वेद प्रवचन-डॉ. प्रो. वेदपाल, मेरठ
१०.०० से १२.३० तक- भजन और शिक्षानीति देश का भविष्य-परिचर्चा
२.०० से ५.०० बजे तक-महर्षि दयानन्द के विचारों की प्रासंगिकता- परिचर्चा
रात्रि ८.०० बजे से १०.०० बजे तक-डॉ. धर्मवीर कृतज्ञता सम्मेलन
ऋषि उद्यान में बिखरी हैं स्वामी दयानन्द की अस्थियाँ परोपकारिणी सभा, अजमेर महर्षि दयानन्द की उत्तराधिकारिणी सभा है।
गहरा रिश्ता है अजमेर से नवजागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द का- अजमेर महर्षि दयानन्द की कर्मभूमि के साथ-साथ निर्वाण स्थली भी है। अजमेर में स्वामी दण्डी जी के नाम से विख्यात थे। यहाँ महर्षि दयानन्द का एक मौलवी तथा पादरी शूलब्रेड व जॉन रोबसन से शास्त्रार्थ हुआ था। स्वामी जी ने पाखंडियों द्वारा प्रचारित अन्धविश्वास व कुरीति उन्मूलन के लिये अजमेर के डिप्टी कमिश्नर मेजर ए.जी. डेविडसन से मिले थे। गो रक्षार्थ यहीं कर्नल बु्रक्स से भी मिले। बाबूूलाल जैनी से भी यहीं स्वामी जी का धर्मविषय वार्तालाप हुआ था। जिसके बाद बाबूलाल जी ने स्वामी जी से सहमति प्रकट की। अजमेर में स्वामी जी के उपदेश से अनेक लोगों ने कंठियाँ उतार फेंकी, जिनमें सावर के ठाकुर भी थे।
इसी बीच ऋषि उद्यान की सजावट में आज चार चाँद लग गया है। रंगीन बल्वों की मनोहारी लडिय़ों से पूरा ऋषि उद्यान जगमगा उठा है। देश के कोने-कोने से और विदेशों से विद्वान्, साधु महात्मा व श्रद्धालु जन पधार चुके हैं। अभी ऋषि उद्यान में एक ‘लघु विश्वÓ सिमट आया है।

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