अजमेर 11 फरवरी 2017। सिख पंथ के 10वें गुरु गोविंद सिंह साहेब के 350वें प्रकाशोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता संग्राम में उनके अद्भुत त्याग, बलिदान और योगदान को राष्ट्र जागरण के निमित्त जन-जन तक पहुंचाने हेतु डॉ. हेडगेवार स्मृति सेवा प्रन्यास और श्री माधव स्मृति सेवा प्रन्यास, अजमेर के सयुंक्त तत्वावधान में आज जवाहर रंगमंच में एक ‘‘प्रबुद्धजन संगोष्ठी’’ का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रख्यातवादी चिंतक व लेखक श्रीमान् हनुमान सिंह जी राठौड़ ने अपने उदबोधन में कहा कि श्री गुरू गोविन्द सिंह का उपकार किसी एकमत, पंथ या सम्प्रदाय पर नहीं अपितु यह उत्सव उनके हम पर ऋण से उऋण होने का एक मात्र उपाय हैं। जो त्रेता युग में श्री राम ने कहा, द्वापर में श्री कृष्ण ने कहा वहीं कलियुग में श्री गुरू गोविन्द सिंह जी ने कहा जब जब धर्म की हानि होती है तब-तब महापुरूषों को आना पड़ता है। आततायी सत्ता का विरोध करने वाले। धर्म का संस्थापक होता है। धर्म की स्थापना के लिए बलिदान की परम्परा चाहिए। गुरू गोविन्द सिंह जी ने उदाहरण अपने घर से दिया। सर्वस्व बलिदान का आश्वासन दिया। खालसा स्थापना के समय उसका उद्देश्य प्रकट किया-धर्म के लिए शिक्षा देने वाला ‘‘खालसा’’। भक्ति और शक्ति क्षीण होने से स्वाभिमान समाप्त हो गया। पूर्वजों और देश को भूल गये। केवल दिल्लीश्वरों व जगदश्विरों का भाव पैदा हो गया। गुरू जी ने बताया सच्चा पातशाह मैं इसलिए घोड़ा व शस्त्र धारण किया। संत योद्ध के रूप में वैभव प्रदर्शन किया कलगी धारण की। साधारण जन को सिंह बनाया। सरदार बनाया जिसका सर ऊँचा रहेगा, धर्म का अनुसरण करेगा। उन्होने बताया कि हम दीन नहीं थे शासक थे। भारतीय दर्शन के अनुरूप पुर्नजन्म के सिद्धान्त के अनुरूप फिर-फिर लड़ने का भाव दिया। सामर्थ्य पैदा करने के लिए कहा सवा लाख से एक लड़ाऊँ। समाज में समरसता समाप्त होने से मुगल शासन स्थापित हुआ। इसलिए खालसा सृजना को एकजुट करने के लिए वर्गो को एक किया। गुरू नानक देव व जगदगुरू शंकराचार्य के विचारों को जीवंत रूप दिया। इसलिए स्वामी विवेकानन्द ने कहा भारतीय युवकों को गुरू गोविन्द सिंह को आदर्श रखना चाहिए। गुरूजी ने पारस से पारस बनाया बलिदानों की परम्परा खड़ी का बंदा बैरागी जैसे उदाहरण खड़े किये। समाज को जागृत किया इसलिए समाज ने अपने परिवार से एक पुत्र को केशधारी बनाया। समस्त धर्मो का संरक्षण करने के लिए देश को परम्परा दी, स्वाभिमान के लिए खालसा पंथ दिया। अपने द्वारा प्राण हथेली पर लेकर चलना, यह भाव गुरू जी ने स्थापित किया। हम मरना जानते है पर पहले लड़ना जानते है इसलिए रण में अपनी जीत का निश्चय करने का मंत्र दिया। इस निश्चय से सभी युद्धों में जीत प्राप्त की। अत्याचार सहने पर भी अकाल पुरूष पर विश्वास का उदाहरण प्रस्तुत किया। ऐसा उदाहरण आध्यात्म की भूमि के कारण संभव है। धर्म की हानि से गुलामी और धर्म के स्वाभिमान से हम विश्व गुरू की ओर अग्रसर होते है। राज करेगा खालसा का यही अर्थ है – वसुदैव कुटुम्बकम या कृणवन्तो विश्वभार्यभ्। संसार में धर्म के शासन की स्थापना इससे आतंकवाद नहीं, युद्ध नहीं। हमारी संस्कृति में सबसे कमजोर का भी सम्मान, इसलिए गुरू का लंगर क्योंकि बड़ों ने कहा है बांटकर खाना। सामुहिक प्रार्थना ही संगत। सामूहिक प्रार्थना नहीं हो, सामूहिक युद्ध लड़ने का सामर्थ्य नहीं। इस कमजोरी को दूर करने का प्रयत्न किया। अंतिम समय में भी देश व समाज के लिए जीवन समर्पित किया। समाज को पुत्र मानकर – आत्मीयता जताई। इसका प्रसार किया। हम महापुरूष को अवतार मानकर उसकी पूजा करते है अनुसरण नहीं करते इस समस्या का समाधान दिया – अपने पश्चात् गुरू ग्रन्थ साहिब की स्थापना कराई गुरू स्थान पर। श्री गुरू ग्रन्थ में अपनी कोई वाणी नहीं रखी ऐसी निर्लिप्पता दर्शायी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथी श्रीमान् दिलिप सिंह ने कहा कि गुरू गोविन्द सिंह ने कहा कि हम सब मानव एक है। गुरू गोविन्द सिंह जी ने अपने प्रयासों से भारतीय संस्कृति को मुगल शासकों से बचाया। भारत की संस्कृति के लिये एवं हिन्दूत्व की रक्षा के लिये अपने आप को न्यौछावर कर दिया।
विशिष्ट अतिथी श्रीमान् जे.एस. सोड़ी ने कहा कि सिखों ने देश को योग के बारे में बताया तथा गुरू तेजबहादुर ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये बलिदान दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्रीमान् नवीन गोखरू ने कहा कि गुरू गोविन्द सिंह का संस्कार और मार्ग दर्शन बहुत शक्तिशाली था और उन्होने लोगों को संस्कारित किया।
कार्यक्रम का संचालन श्रीमान् अनिल जी ने किया। वक्ताओं का परिचय व स्वागत श्रीमान् सुनील दत्त जी जैन ने किया। कार्यक्रम में श्रीमान् रामप्रकाश जी बंसल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम के अंत में ममता तुलसियानी ने वन्दे मातरम् गीत गाया गया।
कार्यक्रम में शहर के प्रबुद्धजन व विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी व कार्यकर्ता उपस्थित थे।
(निरंजन शर्मा)
डॉ. हेडगेवार स्मृति सेवा प्रन्यास
मो.नं.: 98280171560