सतगुरु हमें प्यार नम्रता सहनशीलता का पाठ पढ़ाते हैं

केकड़ी;–
आज इंसान अज्ञानतावश हाथ में कटोरा लेकर खड़ा है जबकि सतगुरु हमें तीन लोक की संपदा देना चाहते हैं हम बूंद हैं सद्गुरु सागर है हमें सागर से जोड़ना चाहते हैं पर हम चालाकियां चतुराई कर परेशान हो रहे हैं उक्त उद्गार सन्त गोपाल ने अजमेर रोड स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन पर आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किए।
मंडल प्रवक्ता राम चन्द टहलानी के अनुसार संत गोपाल ने कहा कि आज का इंसान दुनिया में नाशवान वस्तुओँ की ओर अंधी दौड़ लगा रहा है जबकि सद्गुरु हमें धैर्य धारण कराना चाहते हैं। प्यार,नम्रता,सहनशीलता का पाठ पढ़ाते हैं।इंसान को परमात्मा की, सतगुरु की रजा में रहकर भक्ति करनी है प्रभु के आगे अपने आप को समर्पित जीवन जीना है भक्ति स्वार्थ कि नहीं करनी परमार्थ की करनी है जिससे संतोष मिलता है हमें लोग लालच दुनियावी वस्तुओं का नहीं करना है लोभ,लालच सेवा का,दानशीलता का,सत्कार का,परोपकार का करना है हमेशा सत्संग सेवा सुमरन का दान मांगे। जिस प्रकार पत्ता डाली से जुड़ा है तो हरा भरा है इसी प्रकार इंसान परमात्मा का स्मरण कर उस की भक्ति करता है तो आनंदित रहता है।मन के विकारों को त्यागकर सहनशीलता अपना कर हमें परमात्मा की भक्ति से जुड़कर उसके आदेशों उपदेशों को जीवन में अपनाकर आनंद स्वरूप से जुड़कर आनंद में रहना है सद्गुरु हमें जात पात के हर बंधन से मुक्त कराते हैं पर इंसान इससे दूर होकर संकीर्ताओं में जीवन जीकर दुखी हो रहा है।सद्गुरु हमें ज्ञान देकर विशाल परमात्मा के दर्शन दीदार कराते हैं फिर हमारी सोच विशाल बननी चाहिए,विकारों को त्यागकर विशालता से जुड़कर परमात्मा की भक्ति करने पर इंसान की मुक्ति संभव है सारी कायनात एक प्रभु परमात्मा की बनाई हुई है इस एक परमात्मा की सोच हमें विशाल बनाती है पूरी कायनात का मालिक बनाती है फिर इंसान को परेशान होने की आवश्यकता नहीं है इसकी रजा में रहकर सेवा सत्कार करते हुए मौज में रहना है।
सत्संग के दौरान शीतल,गौरव, मोहित,सानिया,वंश,दिव्या,माया, मुकेश,संगीता,नमन,टोपन दास, निशा,दीपक टहलानी,आशा रंगवानी,समृद्धि,किशोर आदि ने गीत विचार प्रस्तुत किए संचालन नरेश कारिहा ने किया।

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