*अक्सर बारिश के दिनों में दिखाई देती थी*
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*आजकल के बच्चों ने तो ना देखा ना सुना होगा इस कीट के बारे में
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*केकड़ी_12 जुलाई।
मानसून सत्र के दौरान आषाढ़-सावन की बारिश के दौरान अक्सर दिखाई देने वाली सावन की डोकरी अब कहीं नजर नहीं आती। अगर यही हाल रहा तो खण्डवृष्टि, अल्पवर्षा का यह श्रावणी कीट नई पीढ़ी के लिए डायनासोर की तरह किस्सा बनकर रह जाएगा। लाल सुर्ख मखमली आवरण में लिपटा यह जीव अब बहुत कम नजर आता है वो भी केवल गांवों में। इसे इंद्रगोप यानि इंद्र की गाय, इंद्र वधु, ममोल और बूढ़ी माई के नाम से भी जाना जाता है। वहीं इस श्रावणी कीट को हिंदी में बीरबहूटी अंग्रेजी में रेड वेलवेट माइट, अरबी में अकसक, पारसी में किमे मखमल कागन, लेटिन में म्यूरेला ऑक्सिडेंटलिस के नाम से जाना जाता है। इस कीट की लंबाई मात्र 1 सेमी तक होती है।
बरसात के प्रारंभ में खेत खलिहान, बगीचों व रेतीली भूमि पर रेंगने वाला यह कीट स्पर्श मात्र से नववधू की तरह संकुचित हो जाता है। इसलिए इसे इंद्र वधू की संज्ञा भी दी गई है। एक समय था जब पहली रिमझिम के साथ बहुतायात में नजर आने वाली सावन की डोकरी खासकर बच्चों में कौतूहल का विषय होती थी। बरसात के दिनों में बच्चे इसे हथेली में रखकर खेला करते थे, लेकिन आज के बच्चों को नहीं मालूम कि सावन की डोकरी ( बीरबहूटी ) भी कोई जीव है।
सुंदर सलोनी दिखने वाली सावन की डोकरी का आयुवेर्दिक महत्व भी कम नहीं है। प्रसिद्ध वैद्य प्रेमचंद भाल के अनुसार यह कीट कसैले रस वाला, उष्ण या गरम प्रकृति का होता है। इसे आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। वात व कफ तथा दमा खांसी को ठीक करने में यह कीट बेहद असरदार है। यह शुष्क कीट यूनानी दवा विक्रेताओं के पास भी बीरबहूटी या किमे मखमल के नाम से मिलता है। इस कीट को सुखा कर दवा बनाने के काम मे लिया जाता है। सूखने के बाद इसका रंग चटख लाल से केसरिया हो जाता है। शिथिल स्तन पर दूध के साथ पीसकर लेप करने से कई प्रकार के गुप्त रोग ठीक हो जाते हैं। कुल मिलाकर इसे देसी विभाग्रा का नाम दें तो koi अतिशयोक्ति नही होगी।