परमात्मा एवं गुरु के प्रति प्रेम पैदा करें- संत सुरेंद्र पाल सिंह

केकड़ी:– इंसान के बोल बोल न रह जाएं,बोलों के अनुरूप उसका जीवन हो,कथनी-करनी एक समान हो इंसान खुद का विश्लेषण स्वयं करें वह कहां सही है कहां गलत है यही भक्ति का मार्ग है।उक्त उद्गार हरियाणा अंबाला के मार्कंडेश्वर ब्रांच से आए ज्ञान प्रचारक संत सुरेंद्र पाल सिंह ने अजमेर रोड स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन पर आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किए।
मंडल प्रवक्ता राम चन्द टहलानी के अनुसार संत सुरेंद्र पाल सिंह ने कहा कि परमात्मा के प्रति,गुरु के प्रति जीवन में प्रेम पैदा होना चाहिए क्योंकि परमात्मा एवं गुरु दर पर अकल,स्याणप,चतुराई छोड़नी पड़ती है ज्ञान चक्षु मिलने पर ही अकल गुरुमत में बदलती है फिर जीव गुरु के कान से सुनता है और गुरु की आंख से ही देखता है।
पान कटोरे हैं इसमें निंदा,नफरत, वैर,विरोध,चुगली नहीं होनी चाहिए इसमें भक्ति का रस घोल कर ह्रदय से पीना चाहिए जिससे आनंद मिलता है।
इंसान को परमात्मा एवं गुरु के प्रति प्रेम में दौड़ दौड़ कर आना है जो दीवाने होते हैं और रुकते नहीं है अवतार वाणी का एक-एक शब्द पावन है जो जीने की राह बताते हैं ऐसे ही ग्रंथों की एक-एक लाइन जीवन जीने की कला सिखाती है अगर आप किसी का भला नहीं कर सकते हो तो किसी का बुरा ना करें,न ही सोचें सबका भला मांगे,गुरु वाले इंसान का सिर हर पल झुका ही रहता है हमें गुरु के शब्द दिल में रखकर एक परमात्मा का आधार लेना है जितना प्यार हम अपने परिवार से,रिश्तों से,पैसों से करते हैं उतना ही हम प्यार परमात्मा से,गुरु से और गुरु के वचनों से करें तो हमारा पार उतारा निश्चित है।
स्वांस- स्वांस परमात्मा का सिमरन करना है पल-पल इसको याद करना है तो परमात्मा भी हमें याद करेंगे हमारे हर कार्य वे स्वयं करेंगे।गुरसिख के होठों पर हमेशा गुरु की बात होती है दिल में प्यार होता है पूर्ण रूप से वह समर्पित होता है।
इंसान को मैं मेरी की अज्ञानता समाप्त कर तू तेरी वाला जैसा जीवन जीना चाहिए जिस इंसान को किसी प्रकार की चाहना नहीं होती है वही असल में शहंशाह होता है।
हे परमात्मा मेरा मुकद्दर लिखने वाले आप स्वयं हो मैं तुमसे क्या मांगू बस प्यार और प्यार ही मांगना है जीवन में भक्ति मांगनी है जिससे जीवन जीना सहज हो जाता है।
सत्संग के दौरान मुकेश,टोपनदास,पूजा,कालूराम,देवानंद, नीलम,रामचंद,रेखा,मांगीलाल, नरेश,आशा,संगीता,गोपाल,माया, शीतल,सुमन,समृद्धि,ओम आदि ने गीत विचार भजन प्रस्तुत किए संचालन केकड़ी ब्रांच मुखी अशोक रंगवानी एवं संत का स्वागत पूरणप्रकाश रंगवानी ने किया।

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