शिक्षा राष्ट्रीय मूल्यों से रूबरू कराने का माध्यम भी बने

अजमेर 03 अगस्त। हरिणाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा है कि शिक्षा का उद्देश्य सरकार चलाना, किसानी करना, उधोग धन्धे चलाना या पेशेवर को तैयार करने तक ही सीमित न हो अपितु शिक्षा राष्ट्रीय मूल्यों, अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान से रूबरू कराने का माध्यम भी बने। जब से देश स्वतंत्र हुआ है तभी से शिक्षा में बदलाव पर चर्चा शुरू हो गयी थी और आज भी जारी है। ’’एक भारत श्रेष्ठ भारत‘‘ की संकल्पना को साकार करने की दिशा में सोच, संस्कृति और आस्था में समन्वय होना जरूरी है जो शिक्षा के माध्यम से किया जा सकता है। मानव में सोच के लिए श्रेष्ठ माध्यम विद्यालय है जहाँ से उसे संस्कार और शिक्षा दोनों मिलते है। यदि सोच बदलनी है तो शिक्षा को राजनीति से पूर्णतया दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि प्रति बीस वर्ष में एक पीढ़ी बदल जाती है परन्तु किसी भी राष्ट्र के मूल्य, संस्कृति और उसकी सांस्कृतिक पहचान न बदले यह कार्य शिक्षा को करना होगा। जिस राष्ट्र में व्यक्ति रहता है उस राष्ट्र के प्रति आस्था और गौरव का अटूट भाव जागृत करने की दिशा मे भी शिक्षा ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।

श्री सोलंकी शुक्रवार को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में विद्यालयीन शिक्षा का वर्तमान स्वरूप एवं भावी दिशा विषय पर आयोजित त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बोर्ड परिसर स्थित सभागार में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होनंे कहा कि किसी भी राष्ट्र को तभी स्वतंत्र माना जाता है जब वहाँ के नागरिक अपने देश के जीवन मूल्यों और संस्कृति से पूर्णतया जुड जाये। गांधी जी भी शिक्षा में मूल परिवर्तन के हामी थे। उनका मानना था कि शिक्षा से तीन ‘‘आर’’ रीडिंग, राईटिंग और अर्थमेटिक हावी है परन्तु उनके स्थान पर तीन ‘‘एच’’ हेड, हेन्ड और हार्ट होने चाहिए अर्थात् जो हेड सोचे उसे हार्ट माने और हेन्ड उसे मूर्त रूप प्रदान करें। प्रधानमंत्री ने भी देश में बुनियादी बदलाव लाने के लिए पांँच ‘‘स’’ सोच, सम्पर्क, सहयोग, संस्कार और संकल्प की अवधारणा पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थान ने उल्लेखनीय नवाचार किये है जो देश के लिए रोल मॉडल है।

शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि देश से मेकाले वाली शिक्षा को विदा करने का अब समय आ गया है। राजस्थान से तो इसकी विदाई लगभग हो चुकी है। शिक्षा को जीवकोपार्जन और भोगवादी विचारधारा से उबार कर इसमें संस्कार और चरित्र का समावेश किया गया है। मेरा भारत महान रटाने के स्थान पर स्कूली विद्यार्थी को इस बात का अहसास कराया जा रहा है कि मेरा भारत क्यों महान है। इसके लिए विद्यालयों में भारतीय दर्शन गलियारों का निर्माण कराया गया है। स्कूली पाठ्यक्रम में 200 से अधिक वीरांनगानाओं की गाथाओं के पाठों का समावेश किया गया है। पिछले दो वर्षों से विद्यालयों में पी.टी.एम. के साथ-साथ माता-टीचर्स मीट भी प्रारम्भ की जा चुकी हैं और आगामी 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश में शिक्षा को नया रूप देने के लिए तीन ‘‘टी’’ की अवधारणा टीमवर्क, ट्रान्सपेन्सी और टेक्नोलॉजी को अपनाया गया है।

श्री देवनानी ने कहा कि पिछले चार वर्षों मंे प्रदेश के शिक्षा बोर्ड के माध्यमिक और उच्च माध्यमिक परीक्षाओं के उत्तीर्ण प्रतिशत में 22 प्रतिशत की उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है जो इस प्रदेश की शिक्षा की गुणवत्ता को दर्शाती है। इस वर्ष 19 लाख बच्चों का विद्यालयों में नामांकन बढ़ा है। उन्होंने कहा कि सरकार सभी सरकारी विद्यालयों को एक से पांच स्टार की रेटिंग प्रदान करने जा रही है। अब तक ढाई हजार विद्यालयों को फाइव स्टार रेटिंग प्रदान की जा चुकी है।

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए शिक्षा संस्कृति न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कहा है कि वर्तमान में देश के लगभग सभी प्रमुख पदों पर अपनी मातृभाषा में सरकारी विद्यालयों में पढे लोग आसीन है परन्तु अपने बच्चों के संबंध में वे सभी अब सरकारी विद्यालयों से विमुख हो चुके है। उत्तर प्रदेश बोर्ड में इस वर्ष 10 लाख विद्यार्थी हिन्दी विषय में ही फेल हो गये। देश में गुणवत्ता की दृष्टि से देखे तो अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों के प्रति तेजी से वातावरण बना है परन्तु लोग क्यों भूल जाते है कि माँ, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा के संबंध में स्वतंत्र भारत में सन् 1949 में राधाकृष्ण आयोग उच्च शिक्षा के लिए बना। दूसरा आयोग माध्यमिक शिक्षा के लिए सन् 1952 में बना और सन् 1964 समग्र शिक्षा के लिए बना। परन्तु विद्यालयी और प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए अब तक कोई आयोग नहीं बना। ऐसे में कैसे शिक्षा की नींव मजबूत होगी। देशभर के अनेक राज्यों में सरकारी विद्यालय बन्द हो रहे है। लोगों की मानसिकता हो गई है कि भले खाना कम मिले, निजी जरूरतों पर अंकुश लगा दिया जाये परन्तु अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के निजी विद्यालयों में ही पढा़ना है। देश को बदलना है तो सबसे पहले शिक्षा में परिवर्तन लाना होगा। देश में जो भी समस्या है उसका मूल कारण शिक्षा है। समस्या नहीं अब तो समाधान पर ही चर्चा होनी चाहिए।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के चरित्र निर्माण प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक देशराज शर्मा ने कहा कि त्रि-दिवसीय कार्य गोष्ठी में 19 राज्यों के प्रतिनिधि भाग ले रहे है। इसके अतिरिक्त एन.सी.ई.आर.टी, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राष्ट्रीय ओपन स्कूल और नवोदय विद्यालय जैसे 15 शैक्षिक निकायों के प्रतिनिधि भी शिरकत कर रहे है। आगुन्तकों का स्वागत करते हुए राष्ट्रीय कार्यशाला की आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने कहा कि इस कार्याशला मंे जो चिन्तन आयेगा वह देश की भावी शिक्षा की दिशा तय करेगा।

कार्यक्रम का संचालन बोर्ड के निदेशक (गोपनीय) जी.के.माथुर और राजीव चतुर्वेदी ने किया। अन्त में बोर्ड सचिव श्रीमती मेघना चौधरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

उप निदेषक (जनसम्पर्क)

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