**धर्म की ज्योति जला कर दी नैतिक मूल्यों की शिक्षा **महर्षि दयानंद सरस्वती के 137 बलिदान दिवस पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
अजमेर । प्रदेश के राज्यपाल व महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलाधिपति कलराज मिश्र ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने अंतर्मन की अनुभूति को साकार करके सामाजिक कुरीतियों को मिटाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान समाज व राष्ट्र को प्रदान किया हैं। दयानंद ने धर्म की जोत जलाकर उसके प्रकाश में समाज व राष्ट्र को नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी प्रदान की है । दयानंद निसंदेह युगदृष्टा व वैचारिक क्रांति के अग्रदूत थे। बुधवार को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय की बृहस्पति भवन के स्वराज सभागार में महर्षि दयानंद के 137 वें बलिदान दिवस की मौके पर विश्वविद्यालय की दयानंद शोधपीठ के तत्वावधान में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महर्षि दयानंद सरस्वती विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल मिश्र ने उक्त विचार व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि दयानंद ने वैदिक ज्ञान के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधकार को दूर किया था, तात्कालिक परिस्थितियों में महर्षि दयानंद ने लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भी लामबंद किया था। दयानंद ने कहा किशब्द ब्रम्ह के समान होते थे, उन्होंने अपनी वैचारिक शक्ति में इसका उपयोग किया था। शब्द का शब्द का उपयोग व भाषा का आरोह अवरोह कैसा हो इसकी जानकारी के साथ ही दयानंद को देवनागरी लिपि की भी अच्छी जानकारी थी, इसी आधार पर दयानंद ने अपनी विचार शक्ति के माध्यम से आमजन को पुरुषार्थ कर जीवन जीने के लिए अभी प्रेरित किया था । उन्होंने कहा कि दयानंद को सामूहिक के साथ सहानुभूति का भाव उत्पन्न करने के लिए भी अनेक वर्षों तक देशाटन करना पड़ा था, उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार रुप देते हुए मनुष्य प्रकृति व समाज में भी तारतम्यता का भाव स्थापित किया था, उन्होंने देवत्व व जीवत्व अथवा जीवित की अनुभूति को आम जन तक पहुंचाया था। उन्होंने कहा कि ज्ञान होना वह उसकी अनुभूति होना दोनों अलग-अलग हैं इसमें सामंजस्य का भाव होना जरूरी है। महर्षि दयानंद ने इन दोनों में सामंजस्य स्थापित किया। राज्यपाल मिश्र ने संगोष्ठी में लगभग 30 मिनिट के अपने उद्बोधन में महर्षि दयानंद के जीवन से जुड़े ऐसे अनेक महत्वपूर्ण प्रसंगों का भी उल्लेख किया। उन्होंने दयानंद के किशनगढ़ के नव ग्रह मंदिर पुष्कर के मंदिर में समय बिताना व मसूदा में कार्यक्रम आयोजित करना के साथ ही अजमेर आगमन व समय समय पर लोगों में जागृति उत्पन्न करने तथा अजमेर के प्रति लगाव का भी उल्लेख किया ।
उदघाटन सत्र के प्रारंभ में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी.सिंह ने स्वागत उद्बोधन प्रस्तुत किया।उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में दयानंद शोध पीठ के साथ ही चार शोध पीठ पृथ्वीराज चौहान ऐतिहासिक शोध पीठ, सिंधु शोध पीठ, अंबेडकर शोध पीठ भी समानांतर कार्य कर रही हैं । तीन वर्ष में दयानंद शोध पीठ पुष्पित व पल्लवित हुई हैं और आगे भी इसके प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने उद्घाटन सत्र में उपस्थित जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी व आर्य गण का स्वागत किया। संगोष्ठी के संयोजक व दयानन्द शोध पीठ के निदेशक प्रो. प्रवीण माथुर ने शोध पीठ के कार्यों की जानकारी दी । उन्होंने बताया कि शोध पीठ के तत्वावधान में जल्द ही विश्वविद्यालय में एक वैदिक पार्क का निर्माण किया जाएगा। 2020 में दयानंद आह्लाद विषय पर दो दिवसीय प्रतियोगिता भी आयोजित की जाएगी । इसके अलावा एक शाम ऋषि के नाम भजन संध्या का आयोजन भी आगामी वर्ष 2020 में दयानंद के बलिदान दिवस पर आयोजित किया जाएगा। उद्घाटन सत्र के सारस्वत अतिथि श्रीमत दयानंद आश्रम गुरुकुल गौतम नगर नई दिल्ली के अधिष्ठाता स्वामी प्रणवानंद ने कहा कि कोई भी विचार एकदम से प्रचार एवं प्रसारित नहीं होता है, जब तक विचारों में क्रांति का अंकुरण ना हो। उन्होंने कहा कि विचारों में जिज्ञासा का भाव होना जरूरी है। ज्ञान के प्रसार के लिए व पाखंड को दूर करने के लिए काशी में 6 बार क्रांति की थी। उन्होंने कहा कि भाषा की शुद्धिकरण में दयानंद का महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक वर्ण उच्चारण लिखी जिसने जिसने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति की थी। कार्यक्रम के आरंभ में ऋषि उद्यान के ब्रहमचारी द्वारा मंगलाचरण किया गया। अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन किया गया। कुलाधिपति को विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरपी सिंह, पूर्वछात्र संघ अध्यक्ष, डॉ शक्ति प्रताप सिंह, कर्मचारी संघ के अध्यक्ष दिलीप शर्मा व सहायक कर्मचारी संघ अध्यक्ष कर्मचारी गुट्टा राम, छात्र संघ सचिव प्रदीप यादव द्वारा पुष्पगुच्छ भेंट कर अभिनंदन किया गया। सारस्वत अतिथि श्रीमत दयानंद आश्रम गौतम नगर नई दिल्ली के प्रणवानंद व वानप्रस्थ साधक आश्रम रोजड़ गुजरात के प्रमुख आचार्य आचार्य सत्यजित का शोध पीठ के निदेशक प्रो. प्रवीण माथुर ने माल्यार्पण कर स्वागत किया । उद्घाटन सत्र का संचालन प्रो. रितु माथुर ने किया. राष्ट्रगान के साथ उद्घाटन सत्र का समापन हुआ।
उद्घाटन के बाद हुए 2 सत्र:- संगोष्ठी में उद्घाटन के बाद दो सत्र आयोजित किए गए ।इसमें प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए परोपकारिणी सभा अजमेर के अध्यक्ष वेदपाल प्रधान ने कहा की स्वामी जी वेदों के द्वार थे अर्थात वेद को जानने का आग्रह अवसर स्वामी जी ने प्रदान किया एवं वेद जो आज भी वैज्ञानिक है, प्रमाणिक है को जानने समझने एवं जीवन में अपनाने का हमें शुभ अवसर प्रदान किया। सत्र के सारस्वत अतिथि अनुसंधान केंद्र जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक लंबोदर मिश्र थे । सत्र के मुख्य वक्ता वैदिक मिशन मुंबई के अध्यक्ष डॉ सोमदेव शास्त्री ने कहा कि स्वामी जी ने कहा था कि वाणी से कि हर कर्मों का फल मिलता है तथा रात्रि के पापों के लिए प्रातः दिन भर के पापों के लिए संध्या को संध्या उपासना करनी चाहिए तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में महर्षि दयानंद निर्वाण स्मारक न्यास भिनाय कोठी के कार्यकारी प्रधान डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने कहा कि विश्वविद्यालय मैं स्वामी जी पर शोध कार्य होने चाहिए उन्होंने कहा स्वामी जी ने गोपालन पशुपालन व्याकरण शिक्षा सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य किए महात्मा गांधी ने भी स्वामी जी के संदेशों को अपनाया। द्वितीय सत्र दोपहर 3:30 बजे से आयोजित किया गया । सत्र की अध्यक्षता स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने की। मुख्य वक्ता आचार्य सत्यजीत ने कहा कि की स्वामी जी सामाजिक क्रांति के पहले अग्रदूत अर्थात संदेश वाटते जिन्होंने संपूर्ण भारतीय समाज के उत्थान की बात सोची एवं इसके लिए तन मन धन से प्रयास किया स्वामी जी ने विचारी क्रांति का सूत्रपात किया किसी भी समाज की शक्ति उसकी वैचारिक क्रांति होती थी समाज स्वामी जी ने वेदोक्त सूत्र दिए स्वामी जी की अध्यात्म धर्म और नैतिकता को समाज की शक्ति बताकर कहा कि सभी धर्म के साथ जुड़े हुए हैं धर्म प्रकृति के साथ एवं प्रकृति जीव के साथ जुड़ी हुई है। विशिष्ट अतिथि के रूप में आर्य समाज के प्रधान रासा सिंह रावत कहा कि धन्य है तुमको एक तू ही जिसने हमें जगा दिया सोकर लूट रहे थे तूने हमें बचा दिया कविता के माध्यम से स्वामी जी के द्वारा भारत में किए गए नारी शिक्षा, व दलित उत्थान के कार्यों को बताया। सत्रो का संचालन सुश्री प्रिया शर्मा ने किया।
डॉ. राजू शर्मा
मीडिया प्रभारी