ग़ालिब जैसा न कोई हुआ और न होगा

मिर्ज़ा ग़ालिब की 222 वी जयंती पर हुआ आयोजन

इंटैक अजमेर चेप्टर व पृथ्वीराज फाउन्डेशन के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को पुष्कर रोड़ स्थित वृंदावन गार्डन में उर्दु अदब के महान् शायर मिर्जा असद उल्लाह बेग खान ग़ालिब की 222वीं जयंती मनाई गयी। इस अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन मे पद्मश्री डॉ चंद्रप्रकाश देवल ने कहा कि ग़ालिब जैसा न कोई हुआ और न होगा, वो कह देते हैं कि ‘फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल, दिल-ए-ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया। कोई वीरानी सी वीरानी है, दश्त को देख के घर याद आया। गालिब जीवन को पूरे अंदाज़ मे जीते रहे। उन्होंने फारसी, उर्दू और अरबी भाषा की पढ़ाई की थी। उनके दादा मिर्ज़ा क़ोबान बेग खान अहमद शाह के शासन काल में समरकंद से भारत आए थे। उन्होने दिल्ली, लाहौर व जयपुर में काम किया और अन्ततः आगरा में बस गए।

प्रसिद्द लेखक बखशीश सिंह ने गोपीचंद नारंग के शोध पत्र को मिसाल के रूप मे पढ़ा और बताया कि ग़ालिब के शेर आज भी लोगों की जुबान पर होते हैं। सैनिक पृष्ठभूमि के गालिब ने लीक से हटकर जीवन जिया और हर संवेदना को अपनी शायरी मे कह दिया। उन्होंने बताया किया कि ग़ालिब ने दर्द, पीड़ा, प्यार, मोहब्बत और फकीरी आदि सभी को आत्मसात कर लिया था और उसके नकारात्मक पहलू को भी खूब एन्जॉय किया। उन्होंने ग़ालिब के कई शेर सुनाकर महफिल को रूहानी बना दिया।
युवा साहित्यकार श्रुति गौतम ने कहा कि गालिब एक असाधारण शब्द साधक थे। हमारे खून का रंग जब सफेद हो जाता है उस लहू को वापस रंग देने के लिए हमको ग़ालिब की तरफ लौटना होता है। आप सियासत ले लीजिए, जिंदगी का कोई भी फलसफा ले लीजिए, इश्क ले लीजिए गम ले लीजिए, जिंदगी के हर फलसफे पर उनकी शायरी है। उनकी फ़ाकाकशी में भी रईसी ऐसी थी कि वे दलिए को भी दाल पुलाव कहां करते थे। उनकी यह खासियत भी थी कि वह खुद को कभी किसी से कम नहीं समझते थे साथ ही दूसरों को भी कमतर नहीं समझते थे।
डीएवी कॉलेज के प्राचार्य डॉ लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा कि अभाव मे भी भावों को सटीक अभिव्यक्त करना अगर कोई सीखे तो मिर्जा ग़ालिब से सीखे। उन्होंने एक खूबसूरत गजल सुनाकर बहुत दाद बटोरी।

इंटैक अजमेर चेप्टर के कन्वीनर महेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा कि गालिब का पूरा व्यक्तित्व बहुआयामी था। वो मन की बात अपनी शायरी मे कहते थे। उनके देखे से जो आ जाती है मन पर रौनक, वो समझते हैं, बीमार का हाल अच्छा है। उन्होंने ग़ालिब के आशिकी और फकीरी मिजाज से जुड़े पहलूओं पर भी प्रकाश डाला।

शिक्षाविद डॉ. के.के. शर्मा ने कहा कि गालिब ग़ालिब हमारी बहुत बड़ी धरोहर है, सिर्फ किले और महल ही विरासत नहीं होते अपितु सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत उनसे कई और बड़ी है। वे एक मानवीय संवेदना से भरे शायर थे।
स्वागत भाषण में पृथ्वीराज फाउन्डेशन के समन्वयक दीपक शर्मा ने कहा कि पिछले आठ वर्ष से अजमेर शहर निरंतर अजीम शायर मिर्जा गालिब का स्मरण करता आ रहा है।
संचालन करते हुए प्रसिद्द लेखिका डॉ. पूनम पांडे ने मिर्जा गालिब और उनकी जीवन यात्रा से जुड़े कुछ अनूठे प्रसंग साझा किये। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि किस तरह मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू के एक ऐसे शहंशाह हैं जिनका शेर जिंदगी के किसी भी मौके पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस अवसर पर मुकेश भार्गव, धवनि मिश्रा ने भी अपने विचार रखे। इससे पूर्व कार्यक्रम का आगाज़ महफिल में शमा जलाकर किया गया । अंत में पृथ्वीराज फाउन्डेशन के उपाध्यक्ष ऋषि राज सिंह ने सभी का आभार जताया। कार्यक्रम में दीप्ति चिनारिया, झरना वर्मा, संदीप पांडे, नदीम खान, राजेश कश्यप, जिनेश सोगानी, सूर्य प्रकाश कटारिया, हंसराज, घनश्याम जांगिड़, गिरीश बिंदल आदि भी उपस्थित थे।

(दीपक शर्मा)
98285 49049

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