सेंट्रल जेल में कवि सम्मेलन मुशायरे का आयोजन किया गया

आज दिनांक 2 फरवरी 2020 मौलाना अबुल कलाम आजाद कल्याण संस्थान की ओर से गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में स्थानीय सेंट्रल जेल में कवि सम्मेलन मुशायरे का आयोजन किया गया संस्थान के अध्यक्ष डॉ सैयद मंसूर अली व उपाध्यक्ष कमल गंगवाल ने जानकारी देते हुए बताया की संस्था द्वारा पिछले 21 वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है इसी कड़ी में कैदियों में अच्छे आचार विचार लाने के उद्देश्य से गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में कवि सम्मेलन मुशायरे का आयोजन किया गया जिसकी मुख्य अतिथि उप वन संरक्षक श्रीमती सुदीप कौर व कार्यक्रम की अध्यक्षता जेलर श्री नरेंद्र स्वामी जी ने की इस मौके पर श्रीमती कौर ने संबोधित करते हुए कैदियों से कहा कि जो गलती से हो गई उसका पश्चाताप कर आने वाले जीवन आप अच्छा जी और सामाजिक क्षेत्र में अपना नाम रोशन करें कार्यक्रम का सफल संचालन फरहाद सागर व कमल गंगवाल ने किया कार्यक्रम के अंत में संस्था के महासचिव सैयद रब नवाज़ जाफरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया कार्यक्रम में संस्थान की तरफ से हसन मोहम्मद खान, पार्षद दीनदयाल शर्मा, सिरातल खान, पूर्व पार्षद विष्णु माथुर, गजेंद्र पंचोली शरद कपूर,फरहाद सागर आदि मौजूद रहे।
मशहूर शायर तसदीक फर्रुखाबादी ने इस तरह अपनी देशभक्ति का इजहार किया,
हिंदू भी बोलता है यह कहता है मुसलमान,
भारत रहा है और रहेगा सदा महान ।
सोहेल इशरत ने अपने कलाम में कुछ इस तरह इजहार किया,
जमाने को समझने में हुई अक्सर खता हमसे जिसे हम बेवफा समझे उसी ने की वफा हमसे।
डॉ बृजेश माथुर ने अपनी कविता कुछ इस तरह पेश की।।
इंसान हो जाता बुरा मजहब कभी नहीं,
गुलजार है अपना वतन मख्तल कभी नहीं।
गंगा धर शर्मा हिंदुस्तान ने अपनी कविता में कहा,
वतन परस्ती की राह में ना हमसे आगे कोई हो।
हम करें वतन की खातिर काम चाहे कोई हो।
संस्थान के महासचिव सैयद रब नवाज जाफरी ने कविता में देशभक्ति कुछ इस तरह जाहिर की।
जो मेरे देश के हैं गद्दार,
नहीं है जिनको इससे प्यार,
वो हिंदुस्तान छोड़ दें।
कवित्री ध्वनि मिश्रा ने अपने कविता में कहा गीत मेरा गुनगुना के देखना,
लुत्फ यादों का उठाकर देखना।
शायर सादिक अली ज़की ने कुछ इस तरह अपने अशआर पेश किए ।
नफरत की यह धूल कहां से लाते हो वक्त इतना फिजूल कहां से लाते हो ।
मजहबो के नाम पे जो तुम चुभो रहे हो
धोखे के यह शूल कहां से लाते हो। संस्था के अध्यक्ष डॉ मंसूर अली ने अपनी ग़ज़ल में कुछ इस तरह कहा कि
कभी करम तो कभी जुल्म ढाए जाते हैं,और हर एक दौर में हम आज़माए जाते हैं।
इसके अलावा कई शायर और कवियों ने अपनी रचनाएं पेश की जिसमें मुख्य रूप से राजेशभटनागर,अहमद हसन जलालपुरी, तेज सिंह कच्छावा,डॉ विनीता जैन, पंडित करण जी,श्रीमती सुमन शर्मा आदि कवियो ने अपनी रचनाओं से जेल में देश भक्ति की खुशबू महका दी।

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