केकड़ी:- 27 सितंबर(नि सं)कोरना काल मे ऑनलाइन संगत में प्रवचन करते हुए सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि हमें अपने जीवन में वाणी को सोच समझकर काम में लेना है। तलवार का घाव तो समय आने पर भर जाता है पर वाणी का घाव नहीं भरता,कहा भी गया है कि निरंकार है मौन कितना हम भी कम बोला करें,तोले बिन रचना से अपनी हम न कुछ बोला करें।
केकड़ी ब्रांच मुखी अशोक रंगवानी के अनुसार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने अपने विचारों में कहा कि सब्र भी देखा है तारीख की नजरों में, लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई है।
घर परिवार में प्यार तब बन पाता है जब हम एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं जहां हम एक दूसरे का अनादर करते हैं तो हम अपने आनंद को खो देते हैं।
मानव जीवन में सत्संग,सेवा, और सुमरन के साथ-साथ संतों का संग होना जरूरी है तो हम आध्यात्मिकता का लाभ प्राप्त कर परमात्मा की भक्ति का आनंद उठा पाते हैं।
हमें किसी के भी खाने पीने पहनने पर नफरत नहीं करनी है क्योंकि यह सब वातावरण के हिसाब से तय होता है। हर इंसान में परमात्मा की अंश आत्मा काम कर रही होती है हमें सब का आदर सत्कार करना है जिस इंसान ने अपने जीवन में ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया है तो मरने के बाद आत्मा को पता होता है वह आवागमन से चक्र से मुक्त होकर अपने निज घर को चली जाती है।
जब करने कराने वाला स्वयं परमात्मा है तो हमें किसी बात की चिंता नहीं करनी चाहिए सहजता को प्राप्त कर आनंद की अवस्था में हमें जीवन जीना है।