आज की नारी सब पर भारी” आधी आबादी को क्यों न मिले पूरी आजादी ?

केकड़ी 8 मार्च(पवन राठी)
आज की महिलाएं पुराने रीति रिवाजों और मिथकों को तोड़कर न सिर्फ आगे बढ़ रही हैं। बल्कि अपने दम पर सफलता के फलक को छू कर लोगों के लिए मिसाल कायम कर रही हैं। राह में मुश्किलें आईं, अपने और परायों ने ताने दिए, अनर्गल बातें कीं, लेकिन उन सब को दरकिनार करते हुए अपने जज्बे, जुनून और जिद के चलते अपने कदम आगे बढ़ाती गईं। ऐसे तमाम उदाहरण दुनिया में हर जगह हैं। आज बेशक 8 मार्च 2021 को विश्व महिला दिवस मनाया जा रहा है। भारत में जब तक महिलाएं सुरक्षित नहीं होगी तब तक इन दिवसों की सार्थकता नहीं होगी। प्रतिदिन हैवानियत की हदें लांघी जा रही हैं। महिलाओं की अस्मिता का जनाजा निकाला जा रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक मंहिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। आज हर जगह दुशासन महिलाओं की इज्जत नीलाम कर रहे हैं। भले ही आज हम महिला दिवस मना रहे हैं पर ऐसे आयोजन केवल मात्र औपचारिकता भर रह गए हैं क्योंकि हर वर्ष एक संकल्प लिया जाता है कि महिलाओं को अत्याचारों से मुक्ति दिलाई जाएगी। सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, मगर धरातल की सच्चाईयां बेहद ही खौफनाक तस्वीरें प्रस्तुत कर रही हैं। आधी दुनिया पर बढ़ते अत्याचार देश के लिए अशुभ संकेत हैं। आज महिलाएं हर क्षेत्र में सफलता की बुलंदियां छू रही हैं। चांद तक अपनी काबलियत का परचम लहरा रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए सैंकड़ों कड़े कानून बनाए गए हैं, मगर यह कानून सरकारी फाईलों की धूल चाट रहे हैं। बेटियों की सुरक्षा के दावे कहां हैं। आज महिलाओं पर अनगिनत अत्याचार हो रहे हैं मगर सरकारों की कुंभकरणी नींद नहीं टूट रही है। आज कोई भी विश्वास के योग्य नहीं रहा है किस पर विश्वास करें, अपने ही हैवान बन रहे हैं। आज बाबुल की गलियां ही नरक बन गई हैं, रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। बहु-बेटियां घर में ही असुरक्षित हैं समय-समय पर ऐसे घिनौने कर्म होंतें है कि कायनात कांप उठती है कि आदमी इतने नीच काम क्यों कर रहा है। महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। हालांकि आज नारी में काफी बदलाव आ गया है। अब नारी महज रसोई तक सिमटी हुई नहीं है, न ही वह भोग्या है। अब वह पुरुष से कहीं आगे निकल चुकी है। नारी का एक वर्ग ऐसा भी है जो संभ्रांत वर्ग की तो है लेकिन वह है परतंत्र। ऊपर से वह स्वतंत्र नजर आती है लेकिन अंदर-अंदर घुटन भरी जिंदगी ‍जीने को विवश है। उसे किचन से लेकर ऑफिस तक हर जगह खपना पड़ता है। सुबह से पति के लिए नाश्ता, टिफिन, फिर बच्चों के लिए और देवर, सास-ससुर के लिए, फिर स्वयं के ऑफिस जाने की तैयारी क्या क्या नहीं करना पड़ता है उसे। ऐसी जिंदगी पहले से ज्यादा जटिल हो गई है। पहले तो सिर्फ घर की चहारदीवारी में ही कैद होकर रहना पड़ता था परंतु अब तो घर में घरवालों की सुनो ऑफिस में बॉस की। आज की नारी का सफर चुनौती भरा जरूर है, पर आज उसमें चुनौतियों से लड़ने का साहस आ गया है। अपने आत्मविश्वास के बल पर आज वह दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना रही है। आज की नारी आर्थिक व मानसिक रूप से आत्मनिर्भर है। परिवार व अपने करियर दोनों में तालमेल बैठाती नारी का कौशल वाकई काबिले तारीफ है। किसी को शिकायत का मौका नहीं देने वाली नारी आज अपनी काबिलीयत व साहस के बूते पर कामयाबी के मुकाम तक पहुंची है। नारी को अपने करियर संबंधी किसी भी निर्णय को लेने से पहले बहुत सोचना-समझना पड़ता है। परिवार के प्रति उसके द्वारा थोड़ी सी भी कोताही बरतने पर परिवार के सदस्यों की शिकायतें शुरू हो जाती हैं और उस पर कटाक्ष किए जाने लगते हैं। ऐसे में परिवार और कार्यालय में स्वयं को बेहतर सिद्ध करने की वह हरसंभव कोशिश करती है और आदर्श बनकर सबका दिल जीत लेती है। नारी के साथ असुरक्षा की भावना हर जगह होती है। महानगरों में आए दिन होती छेड़छाड़, बलात्कार व हिंसा संबंधी घटनाएं नारी को भयाक्रांत करने व अपने कदम पीछे लेने को मजबूर करती हैं परंतु उनका मजबूत मनोबल उसे हारने से रोकता है और उसका यही मनोबल निरंतर आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। नारी के लिए लैंगिक के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक स्तर पर भी असुरक्षा की भावना होती है। सामाजिक स्तर पर परित्यक्ता व विधवा जैसे शब्द उसके मार्ग का रोड़ा बनकर उसे आगे बढ़ने से रोकते हैं पर इतने पर भी वह अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का सही मौका तलाश ही लेती है और कामयाबी के नित नए कीर्तिमान रचती जाती है। चुनौतियों का हंसकर स्वागत करने वाली महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। कल तक भावनात्मक रूप से कमजोर महिलाएं आज आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं तथा अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण फैसले स्वयं कर रही हैं। अपनी क्षमताओं से महिलाओं ने आज पुरुषों को पीछे छोड़ते हुए परिवार व समाज में एक अलग पहचान बनाई है। आत्मनिर्भर बनकर आज महिलाएं हर चुनौतियों का सामना कर रही हैं। इसके बाद नारी का निम्न वर्ग तो आज भी बहुत उपेक्षित है। कामवाली बाई हो या रोजनदारी का कार्य करने वाली, नारी को दिनभर मेहनत मजदूरी करना पड़ती है। ऐसे निम्न वर्ग में पुरुष ‍अधिकांशत: शराबी, जुआरी ही रहते हैं। घर में मदद तो दूर एक गिलास पानी मटके में से भरकर स्वयं नहीं पीते। फिर ऊपर से नारी को प्रताड़ित करना। मारना-पीटना आम बात है। रोज-रोज झगड़ा करना तो जैसे शगल बन गया है। झुग्गी झोपड़ी में तो और भी भयावह स्थिति है। कहीं-कहीं तो तन ढंकने के कपड़े तक नहीं है। पेट भर खाना जहां मुश्किल से मिलता हो वहां ऐशोआराम की बात बेमानी है।

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