जन्म-मरण से परम मुक्ति का स्थान सिद्ध अवस्था है

श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ अंतर्गत चल रहे चातुर्मास धर्म आराधना जिनवाणी प्रवचन में मुनि गुरूवंदन विजयजी महाराज ने विजय कलापूर्ण सूरि आराधना भवन, पुष्कर रोड़ धर्म सभा में बतलाया कि जन्म-मरण से परम मुक्ति का स्थान सिद्ध अवस्था है, व्यवहारिक एवं आध्यात्मिक भाषा में जिसे हम मोक्ष कहते हैं। उसकी प्राप्ति के लिये जो मार्ग बतलाया गया है वह है – विनय – श्रद्धा-गृहस्थ-संत-साधु-अरिहंत एवं सिद्ध। विनय – प्रभु की सेवा एवं उनके उपकार का अनुकरण। श्रद्धा-परमात्मा के वचन में पूर्ण श्रद्धा। गृहस्थ – परमात्मा के बताये हुए मार्गानुसार जीवन। सज्जनता – आंखों में करूणा, वाणी में विनम्रता, मन में निर्मलता एवं वचन में पवित्रता। संत – गुणवान बनने की प्रक्रिया – अपने दोष नष्ट करने की प्रक्रिया, अरिहंत – फल स्वरूप प्राप्त हुआ पद। सिद्ध – अनन्द आनन्द – सुखों की प्राप्ति।
रिखबचंद सचेती
मंत्री

error: Content is protected !!