जारोली व माथुर ने फोड़ा ’’कूलड़ी में गुड़’’, इन दोनों से ही होनी चाहिए गहन पूछताछ-देवनानी

-नियमों के अनुसार किसी भी संविदा कार्मिक को गोपनीय कार्य नहीं सौंपा जा सकता, तो फिर माथुर और लौरी को किस हैसियत से दी जिम्मेदारी
-जारोली व माथुर को तुरंत पदों से हटाकर एसओजी के हवाले किया जाए, ताकि हो जाए ’’दूध का दूध, पानी का पानी’’
-पहले ही अनियमितताओं के आरोप से घिरे माथुर को ही क्यों दी पेपर छपाई व परीक्षा संचालन संबंधी कार्य की जिम्मेदारी
-रीट का लेखा कार्य रिटायर्ड लैब टेक्नीशन को क्यों ?

प्रो. वासुदेव देवनानी
अजमेर, 18 अक्टूबर। पूर्व शिक्षा मंत्री व विधायक अजमेर उत्तर वासुदेव देवनानी ने आरोप लगाया है कि राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट-2021) को कराने में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष व रीट समन्वयक डी.पी. जारोली और सेवानिवृत्त संविदा कर्मचारी होने के बावजूद अतिरिक्त समन्वयक के रूप में परीक्षा संचालन संबंधी कार्य देख रहे जी.के. माथुर ने ’’कूलड़ी में गुड़ फोड़ा’’ और दोनों ने सारे हथकंडे अपनाए। इनके साथ जयपुर में काॅर्डिनेटर बनाए गए प्राइवेट व्यक्ति प्रदीप पाराशर की भी अहम् भूमिका रही। नतीजतन, 26 लाख अभ्यर्थियों का भविष्य दांव पर लग गया है। यदि पेपर लीक मामले की सीबीआई जांच और जारोली व माथुर को तुरंत पदों से हटाकर गहनता से पूछताछ की जाए, तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। बोर्ड में बड़ी संख्या में स्थाई कर्मचारी और अधिकारी होने के बावजूद पूरा कामकाज संविदा कर्मचारियों और सेवानिवृत्त अधिकारियों के जिम्मे छोड़ना भी पूरे मामले में संदेह को जन्म देता है।
देवनानी ने जारी बयान में कहा कि बोर्ड से परीक्षा नियंत्रक जैसे महत्वपूर्ण पद से सेवानिवृत जी.के. माथुर वही व्यक्ति है, जिनकी नियुक्ति पर ही कई बार सवाल खड़े हुए थे, लेकिन एक बार भी कार्यवाही नहीं हुई। उनकी नियुक्ति दैनिक वेतनभोगी कुशल श्रमिक के रूप में हुई थी, बाद में उन्हें बोर्ड में नियमित कर दिया गया। तकनीकी योग्यता नहीं होने के बावजूद उन्हें किताबों की छपाई जैसे अहम् अनुभाग का काम दे दिया। यह भी जांच का विषय है कि तकनीकी योग्यता नहीं होने के बावजूद माथुर को कैसे प्रमोशन पर प्रमोशन दिए जाते रहे और वे परीक्षा नियंत्रक जैसे पद तक पहुंच गए। जबकि वर्ष 2013 में तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष डाॅ. सुभाष गर्ग के कार्यकाल में वित्तीय सलाहकार नरेंद्र तंवर द्वारा किए गए घोटाले की सरकार द्वारा कराई गई आॅडिट में 3.30 करोड़ रूपए काम नियमानुसार निविदा के बिना करवाने के लिए माथुर को दोषी माना गया, लेकिन बोर्ड ने उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की, उल्टे उन्हें प्रमोशन देकर उपकृत कर दिया।
देवनानी ने कहा कि रीट पेपर लीक मामले में अभी तक जो प्रमाण सामने आए हैं, उससे इस संदेह को बल मिलता है कि एसओजी द्वार पकड़े गए आरोपियों के तार जारोली, माथुर और पाराशर से जुड़े हुए रहे हैं। यह सवाल बार-बार मन में उठता है कि जब पूरे प्रदेश में जिला काॅर्डिनेटर सरकारी अधिकारियों को बनाया गया था, तो केवल जयपुर में प्राइवेट व्यक्ति पाराशर को किस हैसियत और नियम से काॅर्डिनेटर बनाया गया। सवाल यह भी उठता है कि बोर्ड के पास अधिकारियों और कर्मचारियों की भरमार होने के बावजूद रिटायर्ड कार्मिकों को संविदा पर लगाकर पेपरों की छपाई सहित अन्य सभी संबंधित गोपनीय कार्य क्यों व किस हैसियत से सौंपे गए। जिस अधिकारी पर पहले ही अनियमितता के आरोप लगते रहे, उसे ही फिर से रीट में क्यों लगाया गया और क्यों महत्वपूर्ण कार्य सौंपे गए।
देवनानी ने रीट पेपर लीक मामले में अनेक ऐसे सवाल उठाए हैं, जिनके जवाब ढूंढने और संदिग्ध जिम्मेदार लोगों से एसओजी द्वारा गहनता से पूछताछ की जाए, तो सब कुछ सामने आ जाएगा। उन्होंने कहा, वैसे तो यह पेपर लीक मामला बहुत ज्यादा गंभीर है, इसलिए इसकी सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए, क्योंकि वही एक ऐसी एजेंसी है, जो पूरे मामले से परत हटाकर सच्चाई सामने ला सकती है। लेकिन अभी एसओजी जांच कर रही है, तो उसे भी बोर्ड अध्यक्ष जारोली, जी.के. माथुर और पाराशर से गहनता से पूछताछ करनी चाहिए। सरकार को इन दोनों व्यक्तियों को तुरंत प्रभाव से पदों से हटाकर एसओजी के हवाले करना चाहिए, ताकि एसओजी इनसे गहन पूछताछ कर सके।
देवनानी ने यह सवाल भी मांगते हैं जवाब
-सरकारी नियमों के अनुसार, किसी भी तरह का गोपनीय कार्य संविदा पर लगे रिटायर्ड कार्मिकों से नहीं कराया जा सकता है, तो फिर माथुर को किस नियम के तहत गोपनीय कार्य का जिम्मा सौंपा गया।
-रीट के सभी निर्णय करने के लिए समन्वय समिति होती है, जिसमें सेवारत अधिकारी ही शामिल होते हैं। इसके बावजूद जी.के. माथुर और मदन लोरी को समन्वय समिति में अतिरिक्त समन्वयक क्यों बनाया गया। पूर्व प्रकाशन निदेशक ए.आर. खान को सलाहकार क्यों बनाया गया। माथुर को परीक्षा संचालन संबंधी सभी कार्य, खान को परीक्षा संबंधी सामान्य जानकारी और लोरी को परीक्षा केंद्र एवं संचालन संबंधी सभी व्यवस्थाओं का जिम्मा क्यों सौंपा गया। जबकि यह सभी लोग परीक्षा संबंधी कोई भी कार्य करने और निर्णय लेने के लिए अधिकृत नहीं हैं।
-पेपर सैट कराने का जिम्मा माथुर और उनके खास चहेते मुकेश जैन को सौंपा गया। जैन भी रिटायर्ड कर्मचारी है। जबकि यह अति गोपनीय कार्य बोर्ड के किसी वरिष्ठ अधिकारी को ही सौंपा जाना चाहिए था। यदि इन दोनों की काॅल डिटेल की जांच कराई जाए, तो सब कुछ सामने आ सकता है।
-रीट में लेखा संबंधी कार्य पृथ्वीराज चैहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर के रिटायर्ड लैब तकनीशियन 70 वर्षीय ओमप्रकाश नामक व्यक्ति को क्यों सौंपा गया है। लैब तकनीशियन लेखा संबंधी कार्य कैसे कर सकता है। जबकि नियमानुसार किसी भी रिटायर्ड व्यक्ति को 65 साल की उम्र के बाद संविदा पर भी नहीं रखा जा सकता है। इस व्यक्ति को महज इसलिए लगाया गया, ताकि उनसे धन संबंधी हेरफेर कराई जा सके। यही नहीं, खान भी 70 साल की उम्र पार कर चुके हैं। उन्हें भी किसी भी नियम के तहत संविदा पर नहीं लगाया जा सकता है।
-परीक्षा वाले दिन 26 सितंबर को पूरे राज्य में नेटबंदी करा दी गई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि जब नेटबंदी कराने का निर्णय पहले ही हो चुका था, तो परीक्षा केंद्रों पर करोड़ों रूपए खर्च कर सीसीटीवी कैमरे क्यों लगवाए गए। यह भी संदेह होता है कि परीक्षा केंद्र पर सीसीटीवी कैमरे लगे ही नहीं थे, लेकिन उनका भुगतान उठा लिया गया। क्या बोर्ड यह बता सकता है कि कितने केंद्रों पर सीसीटीवी से रिकाॅर्डिंग हुई और उसके क्या परिणाम रहे।
-कम्प्यूटर कार्य में मोटी रकम खर्च करने के बावजूद अभ्यर्थियों को किस आधार पर 5-5 सौ किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र आवंटित किए गए। क्या कम्प्यूटर फर्म ने जो केंद्र आवंटित कर दिए, उन्हें ही बोर्ड ने अंतिम निर्णय मान लिया। बोर्ड ने यह क्यों नहीं सोचा कि 5-5 सौ किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र आवंटित करने से अभ्यर्थियों पर क्या असर पड़ेगा। क्या अभ्यर्थियों को आसपास के जिलों ही केंद्र आवंटित नहीं किए जा सकते थे।
-बोर्ड अध्यक्ष जारोली की प्रेस काॅन्फें्रस में माथुर और लोरी किस हैसियत से जारोली के दायें-बायें बैठे हुए थे। परीक्षा कराने के लिए नियुक्त काॅलेज लेक्चरर व अन्य शिक्षकों को माथुर ने किस हैसियत से प्रशिक्षण दिया था।

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