देश में लगभग 30 प्रतिशत तक है प्रीमेच्योर शिशुओं की मृत्यु दर (मोर्टेलिटी रेट)
अजमेर, 27 जनवरी ()। अजमेर के मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में पिछले 120 दिनों में 30 से ज्यादा प्रीमेच्योर शिशुओं का सफल उपचार किया गया। देश में प्रीमेच्योर शिशुओं की मृत्यु दर (मोर्टेलिटी रेट) लगभग 30 प्रतिशत तक है। मित्तल हॉस्पिटल में जिन प्रीमेच्योर शिशुओं का इलाज कर जान के जोखिम से बाहर किया गया उनमें अधिकांश 6 से 8 माह की गर्भावस्था में पैदा हुए थे। इन प्रीमेच्योर शिशुओं का औसत वजन 750 -1500 सौ ग्राम था। सामान्य तौर पर स्वस्थ जन्में शिशुओं का वजन ढाई से चार किलो तक होता है।
डॉ रोमेश गौतम ने बताया कि प्रीमेच्योर बच्चे को जन्म से ही मॉं के दूध पर रखा जाता है। टोटल पेरेंटल न्यूट्रिशन दिया जाता है। प्रीमेच्योर नवजात शिशुओं को संक्रमण रहित, वार्म वातावरण में रखना, नवजात पर निरंतर नजर बनाए रखना, बीमारी को पकड़ कर उसका तुरंत उपचार शुरू करना शिशु के वजन और विकास में अपेक्षित वृद्धि के प्रमुख कारक होते हैं। मित्तल हॉस्पिटल में संसाधनों की दृष्टि से नवजात शिशुओं के लिए सभी अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं, जिससे नवजात शिशु के श्वास, ऑख, ब्रेन, हार्ट, कान आदि से संबंधित किसी भी परेशानी की जांच व उपचार तुरंत संभव हो पाता है।
मदर कंगारू केयर के मिले अच्छे परिणाम.
उन्होंने बताया कि जहां जरूरी समझा जाता है वहां नवजात शिशुओं को कंगारू मदर केयर दी जाती है। इसके तहत नवजात शिशुओं को मॉं की छाती पर चिपका कर बैठाया जाता है। इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं जिसमें बच्चे की ग्रोथ के अलावा माता के दूध में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
प्रीमेच्योर के उपचार में टीम भावना को ही श्रेय.
मित्तल हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमेश गौतम ने बताया कि इस सक्सेस रेट के बहुत से कारक हैं। इसलिए इसका श्रेय किसी एक को देना उचित नहीं होगा। प्रीमेच्योर शिशुओं का विभिन्न स्तरों पर खास ध्यान रखना होता है, लिहाजा प्रसूता व नवजात शिशुओं के साथ उनसे जुड़े चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ, अभिभावक, परिवारजन, उपलब्ध साधन-संसाधन, वातावरण सभी के सहयोग और समन्वय को सामूहिक ही श्रेय दिया जा सकता है।
प्रीमेच्योर डिलेवरी से बचा जा सकता है….
-स्त्री-पुरुष का विवाह अधिक विलम्ब से ना हो ।
-समुचित खान-पान पर पूरा ध्यान रहे।
-गर्भावस्था में कदाचित तनाव या बीमारी ना हो।
-अप्रत्याषित घटना-दुर्घटना से बचा जाए ।
-गर्भावस्था में आवष्यक शारीरिक श्रम, व्यायायाम बना रहे।
-चिकित्सक से निरंतर सम्पर्क और जांच में कोताही ना हो।
निदेषक मनोज मित्तल ने बताया कि मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में एक ही छत के नीचे नवजात शिशु से संबंधित सुपरस्पेशियलिटी सेवाओं में नियोनेटोलॉजिस्ट सहित प्रसूति एवं स्त्री रोग तथा बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों की वृहद अनुभवी टीम है। इसके अलावा हार्ट, न्यूरो, यूरो, ओंको, नेफ्रो, गैस्ट्रो आदि सभी तरह की सुपरस्पेशियलिटी चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के कारण गंभीर अवस्था में पहुंचने वाले मरीजों को पूरी शिद्दत से संभाला जाता है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में कोरोना के तीसरी लहर ऑमिक्रोन के कम्यूनिटी स्प्रेड के दौर में मित्तल हॉस्पिटल पहुंचने वाले रोगियों की पूरी टीम भावना से संभाल की जा रही है। इस दौरान कोविड नियमों का पालन मरीज और परिवाजन के लिए पूर्ण रूप से अनिवार्य है।
ज्ञातव्य है कि मित्तल हॉस्पिटल केंद्र, राज्य सरकार (आरजीएचएस) व रेलवे कर्मचारियों एवं पेंशनर्स, भूतपूर्व सैनिकों (ईसीएचएस), ईएसआईसी द्वारा बीमित कर्मचारियों एवं सभी टीपीए द्वारा उपचार के लिए अधिकृत है।