पूर्व शिक्षा मंत्री व अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी ने कहा है कि पिछले तीन साल में राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था पाताल लोक में गुम हो गई है। छात्र व अभिभावक कहीं भवन ढूंढ रहे हैं, तो कहीं शिक्षकों को। लेकिन न भवनों का पता है और ना ही शिक्षकों का। काॅलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के सैकड़ों पद खाली पड़े हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मखौल उड़ाया जा रहा है। कांग्रेस के शासनकाल में उच्च शिक्षा व स्कूली शिक्षा की स्थिति ’’आंधा चढ़ग्या ऊंट, चढ़ता ही हांक्या घणा, गई नकेला टूट, राम रखालो राजिया’’ जैसी हो गई है। यह राजस्थानी कहावत आज हर विद्यार्थी, अभिभावक और आमजन की जुबान पर है। उच्च शिक्षा का कांग्रेसीकरण होता जा रहा है। विद्यालयों को राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है। शिक्षा की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यदि कांग्रेस सरकार रीट पेपर लीक मामले की जांच सीबीआई से नहीं कराती है, तो अगली बार हमारी सरकार आने पर इसकी सीबीआई जांच कराकर दोषियों को जेल भेजा जाएगा।
देवनानी ने सोमवार को विधानसभा में शिक्षा व्यवस्था पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा, उन्हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा 26 फरवरी, 2022 को कोटा खुला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में दिया गया भाषण याद आ रहा है, उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य बनने की दिशा में प्रतिबद्धता से काम कर रही है, जिससे प्रदेश के विद्यार्थियों को दूसरे राज्यों में उच्च अध्ययन के लिए जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। देवनानी ने कहा, वाक्य सुनने में बहुत सुंदर लगते हैं, परंतु हकीकत कुछ और ही है। शिक्षा की दुर्दशा की कहानी कुछ और ही है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा एनआईआरफ (नेशनल इंस्टीट्यूट रैकिंग फ्रेमवर्क) में राजस्थान के उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रदर्शन ने राज्य की शिक्षा में गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हंै। पहले तो किसी ने आवेदन ही नहीं किया। बाद में गिने-चुने संस्थानों ने आवेदन किया तो प्रथम दो सौ में भी जगह नहीं बना सके। यह संस्थान कैसे जगह बनाते, क्योंकि धरातल पर उनकी स्थिति क्या है, यह जानने की किसी को फुर्सत नहीं है।
देवनानी ने कहा कि राज्य के 372 काॅलेजों में से 80 प्रतिशत काॅलेज नैक से बाहर हैं, केवल 73 काॅलेजों को नैक एक्रीडेशन हुआ, जिनमें से भी केवल पांच काॅलेजों को ए ग्रेड मिली। जब काॅलेजों की यह स्थिति बनी हुई है, तो कैसे मानें कि राज्य उच्च शिक्षा में अग्रणी गिना जाएगा। राज्य के 80 प्रतिशत काॅलेज बिना प्राचार्य के चल रहे हैं। यानी कुल 372 काॅलेजों में से केवल 70 काॅलेजों में नियमित प्राचार्य हैं, जबकि 2 वर्ष पूर्व विधानसभा में तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री ने आश्वासन दिया था कि 2020 के सत्र से पहले प्राचार्य नियुक्त हो जाएंगे, जो आज तक नियुक्त नहीं हुए। यानी सरकार के लिए विधानसभा में दिए गए आश्वासनों का भी कोई महत्व नहीं है। उन्होंने कहा कि काॅलेजों में प्राचार्य नियुक्त करने के लिए डीपीसी नहीं हो रही है। इसका एक ही कारण है कि सीनियरिटी में राजीव गांधी स्टडी सर्कल के लोग नहीं आते।
देवनानी ने कहा कि काॅलेजों में शारीरिक शिक्षकों एवं पुस्तकालय अध्यक्षों के 90 प्रतिशत पद रिक्त हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि किस प्रकार नैक एक्रीडेशन कराया जाएगा, जबकि नैक के लिए इन पदों पर नियुक्ति होने का मापदंड है। स्टाफ प्रयोगशाला सहायक के 791 में से 427 पद खाली हैं। सारे काॅलेजों के लिए बजटीय प्रावधान 42 लाख रूपए रखा गया है अर्थात प्रत्येक काॅलेज के लिए केवल 11 हजार रूपए हैं। इतनी सी राशि में कैमिस्ट्री, बायोलाॅजी के कंज्यूमर आइटम भी नहीं आ सकते हैं, तो बच्चे क्या प्रेक्टिकल करेंगे।
देवनानी ने कहा कि पदोन्नतियां लंबे समय से लंबित हैं। वरिष्ठ-चयनित वेतनमान एवं एसोसिएट प्रोफेसर पद की पदोन्नतियां तीन साल से लंबित चल रही हैं। काॅलेजों में शिक्षकों व विद्यार्थियों के अनुपात में भारी अंतर है। 110 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक है। यूजीसी कला स्नातक में 30 विद्यार्थियों पर एक, विज्ञान में 25 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक है। काॅलेजों में 40 प्रतिशत पद खाली हैं। शैक्षणिक व अशैक्षणिक पदों में स्वीकृत 12 हजार 799 में से खाली 6 हजार 432 पद खाली हैं। नए खोले गए कुल 177 काॅलेजों में 657 में से 600 पद खाली हैं, जो विद्यार्थियों के साथ धोखा है। आयुक्तालय में अपने चहेतों को डेपुटेशन पर लगा दिया जाता है, जिससे काॅलेजों में शिक्षकों की कमी बनी रहती है और विद्यार्थी परेशान होते हैं। यदि यही स्थिति रहती है, तो यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिक्षकों के बिना विद्यार्थियों की गुणवत्ता क्या होगी।
जर्जर भवनों में चल रहे हैं काॅलेज
देवनानी ने कहा कि पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी के क्षेत्र कोलायत, बज्जू उनके पैतृक गांव हदा और देशनोक में छोटे-छोटे जर्जर, धर्मशाला एवं स्कूल भवनों में काॅलेज चल रहे हैं। किसी-किसी काॅलेज में केवल 2 या 3 कमरे ही हैं। मुख्यमंत्री ने दिवंगत विधायकों के नाम से जो काॅलेज खोले हैं, उनमें भी सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षक और मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था नहीं कर पाई है। राजसमंद में पूर्व मंत्री किरण माहेश्वरी के नाम खोले गए कन्या काॅलेज में स्थाई शिक्षक नहीं लगाए गए हैं। काॅलेज के लिए भवन बनाने का बजट में क्या प्रावधान, इसकी कोई जानकारी नहीं है। इसलिए अब सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि यह काॅलेज सोसायटी के अन्तर्गत चलेंगे। सरकार ने पहले से वित्तीय स्वीकृति नहीं दी, ना भवन की व्यवस्था की और ना ही स्टाफ लगाया है। जब सरकार पर दबाव पड़ा, तो सौ करोड़ रूपए की स्वीकृति दी और स्टाफ भी व्यवस्थार्थ लगाया। काॅलेजों के भवन के लिए करीब 11 सौ करोड़ रूपए की जरूरत है लेकिन वर्ष 2021-22 में 60 करोड़ और वर्ष 2022-23 में कुल 177.50 दिए गए हैं। समझ में नहीं आता है कि इतनी कम राशि से भवन कैसे बनेंगे।
यही हाल विश्वविद्यालयों का
देवनानी ने कहा कि काॅलेजों जैसा ही हाल विश्वविद्यालयों का भी है। इनमें स्वीकृत में से सैकड़ों पद खाली पड़े हैं, जिन्हें भरने के लिए सरकार की तरफ से कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। राजस्थान विश्वविद्यालय में 1016 में से 525, महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में 49 में से 32, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर में 59 में से 42, महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय, भरतपुर, सीकर व बांसवाड़ा में 30 में से 30 पद खाली पड़े हैं।
मखौल उड़ा रहे हैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति का
देवनानी ने कहा कि दरअसल राज्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मखौल उड़ाया जा रहा है। मल्टी डिसिप्लिनरी उच्च शिक्षण संस्थान खोलने की बात कही गई है। तीन हजार छात्रों के संस्थान मात्र 2-4 कमरों में चल रहे हैं। इनको स्वायत्ता नहीं दी गई है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि चाॅइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम से शिक्षक व भौतिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे, लेकिन इनमें से एक भी उपलब्धि सरकार के पास नहीं है। पिछले बजट में चार सौ करोड़ रूपए से फाइनटैक डिजिटल यूनिवसिटी, जोधपुर में, दो सौ करोड़ रूपए से इंस्टीट्यूट आॅफ एडवांस लर्निंग जयपुर में और दो सौ करोड़ रूपए से राजीव गांधी सेंट्रल फाॅर एडवांस स्टेडियम जयपुर में खोलने की बात कही गई, लेकिन इनमें से एक को भी धन आवंटित नहीं किया गया है। राजस्थान विश्वविद्यालय में लाईबे्ररी डिजिटल बनाने की बात कही गई, जो अभी तक प्रारंभ नहीं हुई है।
यह सरकार राजस्थान की या जोधपुर की? अजमेर का क्या कसूर
देवनानी ने सवाल किया कि यह सरकार राजस्थान की है या केवल जोधपुर की है। उच्च शिक्षा के अधिकांश संस्थान और विश्वविद्यालय जोधपुर में ही खोले जा रहे हैं और खोले गए हैं। इनमें जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, नेशनल लाॅ यूनिवर्सिटी, आईआईएम,एआईएमएस, डाॅ.सर्वपल्लवी राधाकृष्णा राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, सरदार पटेल यूनिवर्सिटी आॅफ पुलिस, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ फैशन टेक्नोलाॅजी, इण्डियन इंस्टीट्यूट एण्ड हैण्डलूम टेक्नाॅलोजी, स्टेट इंस्टीट्यूट एण्ड हाॅटल मैनेजमेंट, फिटनेस डिजिटल यूनिवर्सिटी,
राजस्थान स्टेट स्पोर्टस इंस्टीट्यूट आदि हैं। उन्होंने सवाल किया कि अजमेर ने क्या कसूर किया। उन्होंने कहा, अजमेर की जनता का केवल इतना सा कसूर है कि उसने चार बार से लगातार भाजपा विधायकों को चुना है और वह इसी कसूर की सजा पा रही है।
अदालत के आदेशों की पालना नहीं
देवनानी ने कहा कि स्थानांतरण और स्टे में अदालतों के आदेशों की पालना नहीं की जाती है। रूक्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को 13 महीने से वेतन नहीं दिया गया है। उच्च शिक्षा को केवल राजीव स्टडी सर्कल के लोग चला रहे हैं। प्रश्नों के उत्तर गलत दिए जा रहे हैं। आयुक्तालय में 10 के स्थान पर 15 पद हैं और सभी खाली बता दिए। रीट पेपर लीक मामले में जिन लोगों को सस्पेंड किया गया था, उनके मुख्यालय जयपुर या आसपास रखे गए हैं, जबकि अन्य लोगों को सजा के तौर पर दूर-दूर भेजा जाता है।
कुलपति नियुक्ति में मनमानी
देवनानी ने कहा कि प्रदेश में विश्वविद्यालयों की स्थिति दयनीय है। सुखाडि़या विश्वविद्यालय, उदयपुर की स्थिति तो और भी बुरी है। वहां के कुलपति का महिला संकाय सदस्यों के साथ आचरण ठीक नहीं है। काॅमर्स के एक संकाय सदस्य को हार्टअटैक तक हो चुका है। संकाय सदस्यों में भय का वातावरण बना हुआ है। पत्रकारिता विश्वविद्यालय में ओम थानवी को अयोग्य होने के बावजूद कुलपति बनाया गया, जबकि वे ना तो प्रोफेसर थे, ना उनके पास पीएच.डी. की उपाधि थी और ना ही यूजीसी के मापदंड पूरे करते हैं। उनके एम.काॅम. में बहुत कम अंक रहे। यदि केवल पत्रकारिता का अनुभव होने के आधार पर थानवी को कुलपति बनाया जा सकता है, तो विधि विश्वविद्यालय में किसी वकील, टेक्निकल विश्वविद्यालय में किसी टेक्नोक्रेट और कृषि विश्वविद्यालय में किसी कृषक को कुलपति क्यों नहीं बनाया जा सकता है। प्रदेश में 20 में से 14 कुलपति दूसरे राज्यों के हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने राजस्थान यूनिवर्सिटी की सिडीकेट में रामलखन मीणा को मनोनीत कर दिया है, जो कोचिंग इंटीट्यूट चलाते हैं और केन्द्रीय विश्वविद्यालय, किशनगढ़ से बर्खास्त हैं। इसी प्रकार जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में 28 लोगों को कोर्ट में मामला चलने के बावजूद बहाल कर दिया गया, जबकि पूर्व में गठित कमेटियों ने अयोग्य ठहरा दिया था। इन लोगों की आज भी उस समय की योग्यता नहीं है।
उच्च शिक्षा का कांग्रेसीकरण
देवनानी ने कहा कि उच्च शिक्षा का कांग्रेसीकरण किया जा रहा है। सीएए के विरोध में राहुल की रैली में दबाव काॅलेज लेक्चररों को ले जाया गया। एक काॅलेज लेक्चरर डाॅ. बयनसिंह ने मंत्री के साथ मंच शेयर किया, जबकि कोई भी सरकारी कर्मचारी राजनीति में भाग नहीं ले सकता है। स्कूल शिक्षा का बेड़ा गर्क
स्कूली शिक्षा का बेड़ा गर्क
देवनानी ने कहा कि राजस्थान की वर्तमान स्कूली शिक्षा व्यवस्था भी बेहाल है। आमजन केवल एक ही बात कह रहा है- ‘‘आंधा चढ़ग्या ऊंट, चढ़ता ही हांक्या घणा, गई नकेला टूट, राम रूखालो राजिया।’’ उन्होंने कहा कि दिसम्बर 2018 से आज तक शिक्षा के बारे में उन्नति नहीं, अवनति का काल रहा है। भाजपा सरकार के नेतृत्व में 5 साल में शिक्षा ने नए आयाम स्थापित किए थे। हर क्षेत्र में शिक्षा की चर्चा होती थी। सरकारी स्कूलों को और शिक्षकों को अपनी गरिमा का अहसास था। लेकिन अब विद्यालयों को राजनीति का अखाडा बना दिया है। डीपीसी नहींे हो रही है, जबकि हमने रिकाॅर्ड तोड़ डीपीसी कराई। 3 वर्ष तक डीईओ प्रिन्सिपल, लेक्चरर, सैकण्ड ग्रेड, किसी की डीपीसी नहीं हो पाई। समय पर माॅनिटरिंग नहीं होने का हश्र यह हुआ कि जयपुर में 543 निरीक्षण अधिकारियों में से 380 तो निरीक्षण पर गए, बाकी औपचारिकता हुई। 3 दिन पहले ही डीईओ की डीपीसी कराई है। स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल की घोषणा की, लेकिन कोई नियम नहीं बनाया है। सरकार ने 3800 स्कूलों को सीनियर से सीनियर सैकण्डरी स्कूल में क्रमोन्नत करने की घोषणा की, जबकि हमने 7000 स्कूल क्रमोन्नत किए, पद दिए, स्टाफ पैटर्न लागू किया। लेकिन कांग्रेस सरकार ने इन सबकी धज्जियां उड़ा दीं। देवनानी ने कहा कि 4 हजार से ज्यादा अध्यापक डेपुटेशन पर घर के पास स्कूल में लगाए गए हैं। 28 अगस्त को सीकर में अध्यापिका नियुक्त की गई और 3 सितम्बर को बीकानेर में डेपुटेशन पर लगा दिया गया।
महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम, झूठी वाहवाही
देवनानी ने कहा कि महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोलने के नाम पर खूब वाहवाही लूटी जा रही है। लेकिन हकीकत में सरकार नेएक भी नया स्कूल नहीं खोला है। हिन्दी मीडियम स्कूलों को बंद कर महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल का बोर्ड लगा दिया है। अध्यापक वही हैं, बिल्डिंग वही है। केवल हिन्दी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चे बेघर हुए। उनकी कोई व्यवस्था नहीं की गई। उन बच्चों के साथ अन्याय हुआ है। यदि सरकार को अंग्रेजी माध्यम की स्कूलें खोलनी ही थी, तो पहले नई बिल्डिंग बनाती, नया स्ट्रक्चर खडा करती, हर पर 6-7 करोड खर्च करती। जबकि हमारी सरकार ने विवेकानंद माॅडल स्कूल खोले। हरेक पर 6-7 करोड़ खर्च किए। कांग्रेस सरकार ने केवल एक लाख रूपए स्ट्रक्चर के व 50 हजार मरम्मत के लिए रखे हैं। क्या इतनी कम राशि में यह सब-कुछ संभव है। सरकार को हाईकोर्ट की फटकार भी लगी कि सरकार जबरदस्ती हिन्दी मीडियम को इंग्लिश मीडियम में नहीं बदल सकती है। सीएम के गृह जिले जोधपुर के पीलवा गांव में 600 बच्चों वाले स्कूल को अंग्रेजी मीडियम करने को गलत करार दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा के स्तर में हम बहुत पीछे हैं। इस कारण गल्र्स स्कूल 350 व 1000 स्कूल हिन्दी मीडियम के बंद हुए। छात्राओं की पढाई को बढावा देने की दुहाई देने वाली इस सरकार ने 350 स्कूल बंद किए। उन्होंने कहा कि 7 लाख बच्चियां गार्गी पुरस्कार से वंचित हो गई हैं। 10वीं व 12वीं की बच्चियों को 75 प्रतिशत से ज्यादा अंक लाने पर प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर 3000 व 5000 रूपए प्रोत्साहन राशि देते आए हैं। इस बार 7 लाख बच्चियों ने अर्हता प्राप्त की, जिनको इस प्रोत्साहन पुरस्कार से बंचित किया है। पुरस्कार में देने के लिए 383 करोड़ रूपए सरकार की जेब में नहीं है।
स्कूलों में अव्यवस्था
देवनानी ने कहा कि 63 हजार 858 में से 18632 स्कूलों में बिजली कनेक्शन ही नहीं। जहां है, वहां बिल भरने के लिए पैसे नहीं है। सरकार को स्कूलों में बिजली, पानी व इंटरनेट निःशुल्क करना चाहिए, जब कहीं जाकर स्कूलों का भला होगा। 21 हजार 500 स्कूलों में बच्चों के लिए बैठने की जगह नहीं। 92000 अतिरिक्त कक्षा कक्षों की आवश्यकता है, जबकि बजट में 3500 कमरे बनाने की घोषणा की, इतने में क्या होगा? विकास शुल्क 500 से 2100 तक ले रहे हैं, तो फिर कैसे कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार कहती है कि स्कूलों में नामांकन बढ़ा है, लेकिन असलियत तो यह है कि कोरोनाकाल में आर्थिक मंदी आने से लोगों के पास प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाया है। उन्होंने कहा कि गत 3 वर्षों से बच्चों को लैपटाॅप नहीं मिल रहे हैं। 8वीं, 10वीं व 12वीं की बोर्ड की परीक्षा में प्रत्येक जिले के प्रथम 100 स्थान तथा परीक्षा में टाॅप आने वाले कुल 27000 बच्चों को लैपटाॅप नहीं दिए गए हैं। इस प्रकार सरकार कैसे गुणवत्ता बढाएगी। हमारे शासनकाल में लैपटाॅप दिए जाते थे, जिसे कांग्रेस सरकार ने बंद कर दिया। उन्होंने कहा कि कक्षा एक से आठवीं तक बच्चों को 100एमएल-150 एमएल दूध दिया जाता था, जो बंद कर दिया गया है। सरकार ने 9 मार्च से गर्म भोजन बच्चों को देने के आदेश तो जारी कर दिए, लेकिन अब तक राशि स्कूल में नहीं पहुंची। कैसे मिलेगा गर्म भोजन? अध्यापक अपनी जेब से व्यय करें, यही नियति इस सरकार की नजर आती है।
नई शिक्षा नीति की मंशा नहीं
देवनानी ने कहा कि नई शिक्षा नीति लागू करने की राज्य की मंशा नहीं दिखाई देती। 2019 में पूर्व आईएएस ओंकारसिंह की अध्यक्षता में समिति बनाई, उस समिति का क्या हुआ? रिपोर्ट कहां गई? समिति ने 24 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति के संबंध में क्या कदम उठाए। भाजपा शासनकाल में आंगनबाडि़यों को स्कूल परिसर में लाकर 18000 आंगनबाडियों को स्कूल शिक्षा से जोड़ा था। उस योजना को कांग्रेस सरकार ने आगे नहीं बढ़ाया। व्यावसायिक शिक्षा 6वीं से लागू है, लेकिन सरकार ने इस योजना के लिए एक पैसा नहीं दिया। त्रिभाषा पाॅलिसी-अंग्रेजी, हिन्दी व तीसरी भाषा में से विद्यार्थी कौनसी भाषा पढ़ेंगे, पूछा ही नहीं जाता है। गे्रजुएशन 4 साल की करने पर भी कोई विचार नहीं किया गया है। अनुसंधान ओरिएंटेशन पर भी कोई विचार नहीं किया जा रहा है।
शिक्षा की उड़ रही धज्जियां
देवनानी ने कहा कि विद्यार्थी तो बढ़े लेकिन सुविधाएं नहीं बढ़ाई गई है। अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं फोटो स्टेट व बाजार में बिक रहे पेपरों के सहारे कराई गई। परीक्षा का महत्व नहीं रहा। 12वीं भूगोल की प्रयोगात्मक कार्य अभ्यास पुस्तिका नहीं छपवाई गई। 10 लाख भूगोल की फर्जी पुस्तकें मार्केट में बिकी हैं। शारीरिक शिक्षा का मजाक बनाया जा रहा है। 45000 स्कूलों में शारीरिक शिक्षक ही नहीं हैं। ़65वीं जिला व राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के नाम पर खानापूर्ति की गई है। 45000 हजार स्कूलों की टीम ही नहीं गई है। 10 लाख बच्चों की छात्रवृति अटकी हुई है। एससी, एसटी, ओबीसी-एमबीसी-2021-22 की छात्रवृति अटकी है। वर्ष 2020-21 की यूसी केन्द्र को नहीं भेजी।
केवल महापुरूषों के अपमान मेें है रूचि
देवनानी ने कहा कि स्कूली शिक्षा में व्यवस्थाएं इसलिए बिगडी कि पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंदसिंह डोटासरा को शिक्षा में रूचि नहीं थी। उनकी रूचि आरएसएस, मोदी व भाजपा को गालियां में देने में रही है। पूर्व शिक्षा मंत्री ने महापुरूषों का अपमान किया। महाराणा प्रताप व अकबर की लड़ाई को सत्ता का संघर्ष बता दिया, जबकि महाराणा प्रताप का अकबर से संघर्ष स्वतंत्रता-स्वाभिमान के लिए था। पूर्व शिक्षा मंत्री ने सारा ध्यान ड्रेस व साइकिलों का रंग बदलने में लगाया। डोटासरा इटालियन कोचिंग से सीखा इतिहास हमें न बांचंे। डोटासरा की रूचि केवल एक ही परिवार के प्रति निष्ठा जताने में है, जबकि उन्हें सावरकर, सुभाष बोस सहित सभी क्रांतिकारी पसंद नहीं हैं।
वरना हमारी सरकार जेल भेजेगी
देवनानी ने कहा कि कांग्रेस व पेपर लीक का चोली दामन का संबंध है। रीट पेपर लीक मामले में पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंदसिंह डोटासरा, तकनीकी शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष गर्ग और राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डीपी जारोली का त्रिगुट है। उनके साथ अजमेर के जी.के. माथुर भी शामिल हैं। राजनीतिक संरक्षण के कारण आज तक इन लोगों के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई। जारोली को गिरफ्तार कर एसओजी पूछताछ करे तो सच सामने आ जाएगा। सीबीआई जांच से तो असलियत सामने आ जाएगी। हम सत्ता में आएंगे तो इस मामले की सीबीआई जांच कराएंगे और दोषियों को जेल भेजेंगे। राजीव स्टडी सर्कल के नेतृत्व में पेपर लीक कांड हुआ है। बनेसिंह, सुभाष यादव, प्रदीप पारासर, बैरवा आदि सारे घपलेबाज राजीव स्टडी सर्कल से जुड़े हुए हैं। इनमें बड़े सूत्रधार सरगना डाॅ. गर्ग हैं। 150 प्रश्न एक ही बुक से आएं। लेकिन हम बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड नहीं होने देंगे।