पूरी सांस के लिए शिशु 58 दिन तक वेंटीलेटर और बाई—पेप पर रहा
विवाह के 13 साल बाद हुआ था शिशु, 25 सप्ताह में ही जन्मा
नियोनेटोलॉजिस्ट, गायनोकोलॉजिस्ट एवं शिशु रोग विशेषज्ञों ने दिया उपचार
अजमेर, 23 फरवरी ()। मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर अजमेर में प्री टर्म डिलीवरी के साथ, लो बर्थ वेट (एलबीडब्ल्यू) जन्मे एक शिशु को 97 दिन बाद उसके माता—पिता की गोद में सौंप दिया। शिशु को जन्म से 58 दिन तक वेंटीलेटर और बाई—पेप पर गहन चिकित्सा निगरानी में रखा गया। प्रसूता को विवाह के 13 साल बाद यह पहला बच्चा था। गर्भवती होने के 25 सप्ताह में ही जोखिमपूर्ण अवस्था में उसका प्रसव कराया गया। जन्म के समय शिशु का वजन मात्र 770 ग्राम था और उसका जीवन रक्षित रख पाना बहुत ही चुनौती भरा था।
मित्तल हॉस्पिटल के गायनोकोलॉजिस्ट डॉ अंजू तोषनीवाल, नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमेश गौतम, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ श्वेता कोठारी और मेटरनिटी एवं एनआईसीयू नर्सिंग स्टाफ ने टीम भावना से बच्चे के साथ मेहनत कर उसे सुरक्षित कर उसके माता—पिता को सौंप दिया। हॉस्पिटल से घर जाते समय शिशु का वजन 1950 ग्राम हो गया था।
मित्तल हॉस्पिटल की सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट अंजू तोषनीवाल ने बताया कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में सेवारत हरियाणा सोनीपत निवासी सत्येन्द्र कुमार की धर्मपत्नी सीमा का जोखिमपूर्ण अवस्था में प्रसव कराया गया। प्रसूता के 25 सप्ताह का बच्चा था। उसके पानी आने लग गया था। उन्होंने बताया कि सामान्य रूप से पूर्ण प्रसव में 37 से 40 सप्ताह का समय लगता है। समय पूर्व प्रसव से नवजात का वजन भी मात्र 770 ग्राम था, लिहाजा उसकी रक्षा चिकित्सकों के लिए बड़ी चुनौती हो गई थी।
मित्तल हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमश गौतम ने बताया कि अजमेर संभाग में एक मात्र मित्तल हॉस्पिटल ही है जहां प्री टर्म डिलीवरी के साथ, लो बर्थ वेट (एलबीडब्ल्यू) नवजात का जीवन रक्षित बनाए रखने के लिए सभी सुपरस्पेशियलिटी सेवाएं और साधन उपलब्ध है। शिशु को टोटल पेरेंटल न्यूट्रेशन पर रखा जाता है। इस पद्धति से नवजात का वजन बढ़ता है। उन्होंने बताया कि इस शिशु के साथ बीच में ऐसी भी अवस्था आई जबकि उसका वजन नीचे गिरकर 650 ग्राम तक पहुंच गया। बच्चे के जीवन को लेकर अगले पल का भी भरोसा करना मुश्किल हो रहा था। किन्तु एनआईसीयू नर्सिंग स्टाफ की मेहनत, शिशु को हरहाल में सुरक्षित कर पाने की टीम भावना ने आखिर सफलता दिलाई। इस तरह के जोखिम वाली अवस्था में शिशु को हर थोड़ी देर में संभाला जाता रहा।
प्री टर्म डिलीवरी में शिशु का बचाना ही मकसद नहीं होता……..
मित्तल हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमश गौतम ने कहा कि प्री टर्म डिलीवरी में शिशु को बचाना ही मकसद नहीं होता, बच्चा जीवित रहने के बाद भी अच्छे से बोल सके, समझ सके, चल सके, खा—पी सके, उठ—बैठ सके यानी उसके सारे अंग सही से काम करने लगे इस सब को भी जांचा जाता है। डिस्चार्ज के समय खास तौर पर नवजात के दिमाग की सोनाग्राफी कराकर जॉचा जाता है। उन्होंने बताया कि प्रसूता सीमा का बच्चा जन्म के बाद 58 दिन तक वेंटीलेटर व बाई—पेप पर रहा जो कि एक चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ के धैर्य, देखरेख और मेहनत को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि शिशु के उपचार में अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ दीपक अग्रवाल, नर्सिंग अधीक्षक राजेन्द्र गुप्ता, एनआईसीयू स्टाफ स्वर्णलता एंड्रयूज एवं टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
डॉ रोमेश गौतम ने बताया कि सितम्बर 2021 के बाद अब तक करीब डेढ़ सौ प्रीमेच्योर जन्में शिशुओं को उनके माता—पिता की गोद में सुरक्षित सौंपा जा चुका है। देश में प्रीमेच्योर शिशुओं की मृत्यु दर (मोर्टेलिटी रेट) लगभग 30 प्रतिशत तक है। यह सब हॉस्पिटल में एक ही छत के नीचे उपलब्ध सभी सुपरस्पेशियलिटी चिकित्सा सुविधा व आधुनिक संसाधनों और माकूल वातावरण का नतीजा है।
प्रसूता और नवजात को मिलता है उपयुक्त वातावरण……………
निदेशक मनोज मित्तल ने बताया कि प्रीमेच्योर शिशुओं को संक्रमण रहित वार्म वातावरण में रखना, नवजात पर निरंतर नजर बनाए रखना, बीमारी को पकड़ कर उसका तुरंत उपचार शुरू करना, शिशु के वजन और विकास में अपेक्षित वृद्धि पर बराबर निगरानी रखना प्रमुख होता है। मित्तल हॉस्पिटल में संसाधनों की दृष्टि से नवजात शिशुओं के लिए आधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं, जिससे नवजात शिशु के श्वास, आँख, ब्रेन, हार्ट, कान आदि से संबंधित किसी भी परेशानी की जाँच व उपचार तुरंत संभव हो पाता है। उन्होंने मित्तल हॉस्पिटल में प्रीमेच्योर शिशुओं के उपचार में नए आयाम स्थापित किए जाने का श्रेय चिकित्सकों व स्टाफ की टीम भावना को देते हुए सभी को बधाई दी।
