योग केवल शारीरिक दक्षता, कुशलता प्राप्त करने के लिए आसन अथवा प्राणायाम करने तक ही सीमित नहीं है अपितु योग का स्वरूप अत्यंत व्यापक है। जहाँ विश्व में भोग संस्कृतियों का आधिक्य है वहीं भारत की संस्कृति योगमय जीवन आधारित त्याग एवं सेवा से पूरित जीवन शैली है। भारतीय सांस्कृतिक जीवन अखण्ड एवं एकात्म स्वरूप लिए हुए है जिसमें व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र और उससे विश्व तथा परमात्मा तक जुड़ा हुआ है और यह अखण्डमण्डलाकार आकृति में है, जिसमें सब एक दूसरे के अंर्तसंबंधित, परस्परालंबी तथा एक दूसरे के पूरक हैं। आज विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है कि दक्षिण ध्रुव पर ओजोन लेयर पतली होने में कहीं न कहीं मेरे फ्रिज या वातानुकूलन संयत्र से निकलने वाली हानिकारम गैस का भी योगदान है। इस अंर्तसंबंधी योग को हमारे ऋषि एवं मुनियों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व ही विश्व को दिया गया था जिसे आज का विज्ञान सिद्ध कर रहा है। उक्त विचार विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी राजस्थान के प्रांत कार्यपद्धति प्रमुख डॉ. स्वतंत्र शर्मा ने श्री माहेश्वरी प्रगति संस्थान एवं महेश कल्याण समिति के द्वारा विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी शाखा अजमेर के सहयोग से संचालित किए जा रहे योग एवं ध्यान सत्र के चतुर्थ दिन अभ्यास कराते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने बताया कि त्याग और सेवा का जीवन केवल यज्ञ से ही सिद्ध किया जा सकता है जिसमें नरयज्ञ समाजधारणा के लिए, पितृयज्ञ अपने कुल की परम्पराओं को सम्मान देने के लिए, देव यज्ञ प्रकृति के संरक्षण हेतु, ऋषि यज्ञ स्वाध्याय हेतु तथा ब्रह्मयज्ञ स्वयं को जानने का साधन है। सत्र प्रतिदिन प्रातकाल 6.00 से 7.30 तक संचालित हो रहा है।
आज के अभ्यास में सूर्यनमस्कार के साथ अर्द्धकटि चक्रासन, पादहस्तासन तथा अर्द्धचक्रासन का अभ्यास सूक्ष्म चैतन्यता जागरण अनुभूति के साथ आवर्तन ध्यान की पद्धति से कराया गया। इस अवसर पर विवेकानंद केंद्र के नगर संचालक डॉ. श्याम भूतड़ा, रामकृष्ण विस्तार के संचालक दिनेश नवाल, योग शिक्षक शशांक बजाज, युवा प्रमुख अंकुर प्रजापति उपस्थित थे।
सत्र की व्यवस्था में श्री माहेश्वरी प्रगति संस्थान व महेश कल्याण समिति के सर्वश्री जयदेव सोमानी, सुरेंद्र लखोटिया, ज्वाला प्रसाद कांकानी, राकेश झंवर, मुरारी तोषनीवाल, गौरव मिलक,कमल काबरा, मुकेश मूंदड़ा , अनिल काहल्या , अंजनी भूतड़ा, अंकुश मुरक्या आदि ने अपना सहयोग प्रदान किया।