योगमय जीवन पद्धति की धुरी है धर्मचक्र – डाॅ. स्वतन्त्र शर्मा

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मनुष्य के सामाजिक, आर्थिक, भावनात्मकता के साथ साथ आध्यात्मिक जीवन को भी अच्छे स्वास्थ्य की दिशा में आवश्यक माना है। भारत का जीवन धर्ममय है जोकि त्याग और सेवा रूपी जीवन मूल्यों से जुड़ा हुआ है। यह धर्मचक्र यज्ञ के रूप में पूरी सृष्टि में चलता है जिससे सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, वायु, जल इत्यादि सभी जुड़े हुए हैं। चौरासी लाख योनियों में मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति होने के कारण धर्मचक्र की पालना करते हुए मानव समाज को धर्मचक्र से जोड़ना ही योग कहा जाता है | उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी राजस्थान प्रान्त कार्यपद्धति प्रमुख डाॅ0 स्वतन्त्र शर्मा ने रेल उद्यान, श्रीनगर रोड पर संचालित किए जा रहे योग सत्र के तीसरे दिन अभ्यास कराते हुए व्यक्त किए। सत्र संयोजक रविन्द्र जैन ने बताया कि आज ग्रुप अभ्यास में सूर्यनमस्कार का प्रशिक्षण दिया गया तथा पोस्ट कोविड प्रभाव के अंतर्गत फेंफड़ों की मजबूती के लिए श्वसन के अभ्यास कराए गए।
नगर प्रमुख भारत भार्गव के अनुसार सत्र प्रतिदिन सुबह 6.00 बजे से संचालित किया जा रहा है। सत्र में विवेकानन्द केन्द्र की ओर से अमृत परिवार संयोजक नाथू लाल जैन तथा युवा प्रमुख अंकुर प्रजापति सहयोग कर रहे हैं।

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