*पाप के प्रायश्चित बिना वैराग्य नहीं =सोम्यदर्शन मुनि*

प्रशांतमना श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि संयम और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ने के लिए वैराग्य का होना अति आवश्यक है लेकिन जब तक व्यक्ति अपने द्वारा किए हुए पापों का प्रायश्चित नहीं कर लेता है ,तब तक उसके जीवन में वैराग्य नहीं आ सकता है. पाप का प्रायश्चित करने के लिए सबसे पहले व्यक्ति को पाप को पाप मानना होगा। जीवन में गलतियों का होना स्वाभाविक है मगर उनके स्वीकार का भाव बहुत कम लोगों को ही होता है, ज्यादातर व्यक्ति स्वयं गलती करके अपना दोष दूसरों पर डालने का प्रयास करते हैं ।मगर दूसरों की गलती देखना सबसे आसान काम है और स्वयं के दोष और स्वयं की कमी को देखना सबसे मुश्किल कार्य है। गलती स्वीकार करने के पश्चात उस पाप का प्रायश्चित करने का प्रयास होना चाहिए ।इसके लिए किसी योग्य गुरु या व्यक्ति के पास जाकर अपनी गलती को प्रकट करना चाहिए, कि मुझसे गलती या दोष हुआ है पाप का प्रकटीकरण भी एक बहुत बड़ा पुरुषार्थ है यह पाप के स्वीकार से कठिन कार्य है , पाप को प्रकट करने के बाद गुरुआदि
से योग्य प्रायश्चित मांगना चाहिए और प्रायश्चित थोड़ा कठोर ग्रहण करना चाहिए, ताकि भविष्य में फिर गलती का दोहरान ना होने पाए। छोटा या मन के अनुकूल प्रायश्चित लेने पर पाप के प्रति वह घृणा का भाव नहीं आएगा जो कि आना चाहिए ।क्योंकि विद्यालय में देरी पर आने पर अगर टीचर सजा ना देवे तो बालक देरी से आने की आदत का त्याग नहीं कर पाता है ,और जैसे ही सजा दी जाती है समय पर आना शुरू हो जाता है ।उसी प्रकार वैराग्य भाव यदि जीवन में लाना चाहते हैं तो अपने पापों का प्रायश्चित करने का प्रयास करें ।अगर ऐसा प्रयास रहा तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा
आज की धर्म सभा में विमलेश खटोड़ पुत्र स्वर्गीय मोहन लाल खटोड़ ने आठ की तपस्या के प्रत्याखान किए जिनका स्वागत संपत पोखरणा ने तेले के तप के संकल्प के साथ लिया। इसी के साथ श्रीमती ऋषिता बरमेचा धर्मपत्नी अभिषेक बरमेचा ने सात उपवास की तपस्या के एवं आदित्य चौधरी पुत्र पीयूष चौधरी ने गुरुदेव के मुखारविंद से 6 की तपस्या के प्रत्याखान लिए।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेडा ने किया
पदम चंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*

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