संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया कि व्यक्ति को इस मनोरथ को जीवन में आचरित करने का प्रयास कि मैं कब इस पापमय संसार को छोड़कर संयम मय जीवन को स्वीकार करूंगा। संयम जीवन को विरले व्यक्ति ही स्वीकार कर सकते हैं ।वह आत्माएं संसार में धन्य होती है जो संयम के राजमार्ग की ओर अग्रसर होती है। ऐसी ही एक विरल आत्माओं में नाम आता है पूज्य गुरुदेव श्री लीछमण दास जी महारासा, जिनका आज पुण्य स्मृति दिवस है जिन्होंने इसी अजमेर की धरा पर संयम जीवन को अंगीकार किया ।स्वयं की शादी का सामान लेने गांव से अजमेर पधारें, मगर गुरुदेव श्री वीरभान जी महारासा का प्रवचन सुनकर शादी करने की बजाय संयम जीवन को स्वीकार कर लिया। यौवन की दहलीज पर संयम जीवन को स्वीकार कर अंत समय तक साधना की अनेक सिद्धियों, उपलब्धियों को प्राप्त करते हुए संयम साधना के सजग प्रहरी के रूप में अपने आप को जिन शासन में समर्पित रखा ।आज भी लिछमन दास जी महाराज का जीवन हमारे सामने एक आदर्श जीवन चरित्र के रूप में उपस्थित है हम सभी का आज के दिवस यह संकल्प होना चाहिए कि हम आपके उज्जवल जीवन से कोई न कोई गुण अवश्य ग्रहण करें ।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो सर्वत्र मंगल ही मंगल होगा
आज पूज्य गुरुदेव के पुण्य स्मृति दिवस के उपलक्ष में सामूहिक नीवी तप एवं सामयिक की पचरंगी का कार्यक्रम रखा गया जिसमें 200 से अधिक निवी तप के प्रत्याख्यान हुए। श्रद्धालुओं ने त्याग व उत्साह के साथ अच्छी संख्या में कार्यक्रम में भाग लिया ।धर्म सभा को बलवीर पीपाड़ा ने संबोधित किया
पदम चंद जैन
* मनीष पाटनी,अजमेर*